19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अलगाववादियों से बात, नक्सलियों से क्यों नहीं?

सलमान रावी बीबीसी संवाददाता, दिल्ली भारत सरकार माओवादियों से किसी भी तरह की बातचीत के पक्ष में नहीं है. सरकार मानती है कि इसका कोई फ़ायदा नहीं, क्योंकि माओवादियों के पास कोई ‘एजेंडा’ नहीं है. शुक्रवार को दिल्ली में नक्सल प्रभावित 10 राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ बैठक के बाद केंद्र […]

Undefined
अलगाववादियों से बात, नक्सलियों से क्यों नहीं? 3

भारत सरकार माओवादियों से किसी भी तरह की बातचीत के पक्ष में नहीं है. सरकार मानती है कि इसका कोई फ़ायदा नहीं, क्योंकि माओवादियों के पास कोई ‘एजेंडा’ नहीं है.

शुक्रवार को दिल्ली में नक्सल प्रभावित 10 राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ बैठक के बाद केंद्र सरकार इस नतीजे पर पहुंची.

मगर हैरानी यह है कि सरकार ने पूर्वोत्तर के कुछ अलगाववादी संगठनों से बातचीत के संकेत दिए हैं.

गृह राज्यमंत्री किरन रिजीजू ने साफ़ किया कि यह बातचीत अनौपचारिक है, पर उन्होंने कहा कि उन्होंने अधिकारियों को पूर्वोत्तर भारत के गुटों से औपचारिक बातचीत शुरू करने के निर्देश दिए हैं.

उल्फा, एनएससीएन और भारत सरकार के बीच कुछ मुद्दों को लेकर आज भी मामला अटका हुआ है. गृह मंत्रालय को उम्मीद है कि औपचारिक बातचीत से ये मनमुटाव दूर कर लिए जाएंगे.

भरोसे का सवाल

हालांकि राजनाथ सिंह और उनके गृह राज्यमंत्री के बयान ने सामाजिक हलकों में बहस छेड़ दी है. विशेषज्ञों को लगता है कि सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है.

सरकार मानती है कि माओवादियों का अपना एजेंडा है और वो बातचीत पर भरोसा नहीं करते जबकि जानकार कहते हैं कि वार्ता को लेकर सरकार की मंशा भी साफ़ नहीं रही है.

माओवादियों का आरोप है कि वर्ष 2005 में आंध्र प्रदेश सरकार से बातचीत के दौरान वार्ता कर लौट रहे शीर्ष माओवादी नेताओं को मुठभेड़ में मार दिया गया था.

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता अर्जुन मुंडा कहते हैं कि नक्सलवाद से निपटने के लिए एक व्यापक योजना चाहिए, जिसमें विकास और लोगों के राजनीतिक मुद्दे भी शामिल किएं.

मुंडा के मुताबिक़ सिर्फ़ पुलिस कार्रवाई से नक्सलवाद नहीं ख़त्म हो सकता.

पूर्वोत्तर भारत और नक्सलवाद पर नज़र बनाए रखने वाले पत्रकार किसलय भट्टाचार्य का कहना है कि दूरदर्शिता की कमी से नक्सलवाद की समस्या फैलती चली गई.

तालमेल की कमी

वह कहते हैं, "कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री के बीच तालमेल की कमी इससे साफ़ दिखाई पड़ती है."

किसलय के अनुसार पिछले दो दशकों में पूर्वोत्तर राज्यों में हो रहे विद्रोह में काफ़ी बदलाव आया है. 50 से ज़्यादा विद्रोही गुट या तो युद्ध विराम या फिर बातचीत की मेज़ पर आ गए हैं.

Undefined
अलगाववादियों से बात, नक्सलियों से क्यों नहीं? 4

फरवरी 2009 में केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाक़ों के लिए एक ‘इंटीग्रेटेड एक्शन प्लान’ की घोषणा की थी ताकि इन इलाक़ों में ज़मीनी स्तर पर विकास हो सके और लोगों का भरोसा सरकार पर बन सके.

जिन राज्यों में इसे लागू किया गया, उनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश शामिल हैं.

इस योजना के बावजूद नक्सली हिंसा में तेज़ी बनी रही जबकि योजना के अंतर्गत ख़ासा हिस्सा नक्सल विरोधी अभियान में शामिल पुलिस और अर्धसैनिक बलों के लिए दिया गया है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें