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अब अयोध्या ‘नो फ्लाइंग जोन’

।। शीतला सिंह ।। संपादक, जनमोर्चा सुरक्षा के नाम पर अयोध्या को तीन भागों-रेड, यलो और ग्रीन जोन में बांटा गया है. अयोध्या के जितने भी प्रमुख मंदिर, जिन्हें आस्था का केंद्र बताया जाता है, वे लगभग सभी यलो जोन में ही आते हैं, जहां कोई व्यक्ति पहुंचने के लिए वाहनों तक का प्रयोग नहीं […]

।। शीतला सिंह ।।

संपादक, जनमोर्चा

सुरक्षा के नाम पर अयोध्या को तीन भागों-रेड, यलो और ग्रीन जोन में बांटा गया है. अयोध्या के जितने भी प्रमुख मंदिर, जिन्हें आस्था का केंद्र बताया जाता है, वे लगभग सभी यलो जोन में ही आते हैं, जहां कोई व्यक्ति पहुंचने के लिए वाहनों तक का प्रयोग नहीं कर सकता.

बाबरी मसजिद ध्वंस के 22 वर्षो बाद अब सुरक्षा के नये प्रबंधों में इसे ‘नो फ्लाइंग जोन’ में शामिल किया जाना है, क्योंकि अब खतरा धरती से अधिक आकाश से संभावित है. अयोध्या रामजन्मभूमि के अधिकृत और सरकार द्वारा नियुक्त पुजारी सत्येंद्र दास, जो 20 से अधिक वर्षो से सेवारत हैं, संस्कृत विद्यालय के शिक्षक अब अपनी नौकरी से सेवामुक्त हो गये हैं. छह दिसंबर, 1992 को मसजिद विध्वंस के बाद अस्थाई मंदिर निर्माण के इतिहास का तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डीवी राय को आधार मानें, तो इस घटना के प्रकाशित तथ्य और पुस्तक में यही बताया गया है कि जब वे दूसरे दिन विध्वंस स्थल पर पहुंचे, तो वहां सादे वस्त्रों में पुलिसकर्मियों की भीड़ थी.

उनका कहना था कि कल तो हम सरकारी दायित्व का निर्वाह कर रहे थे, लेकिन आज वैयक्तिक आस्था के अनुसार मंदिर का निर्माण और उसके लिए वांछित आर्थिक सहायता में योगदान कर रहे हैं, भला वैयक्तिक आस्था से हमको कैसे रोका जा सकता है. बाबरी विध्वंस के अभियुक्तों की सूची में फैजाबाद के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डीवी राय और जिलाधिकारी रवींद्र नाथ श्रीवास्तव भी हैं.

इस मामले में सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का कितना योगदान है और उनमें से कितने श्रद्घा-आस्था के रूप में जुड़े हैं, इसे जानने के लिए विवादित स्थल का दर्शन करनेवालों की सूची पर्याप्त है, जिसमें सिपाही से लेकर पुलिस महानिदेशक, कार्यपालिका के शीर्ष अधिकारियों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल हैं.

यहां तक कि कुछ बड़े पुलिस अधिकारी यह कहते हैं कि मुकदमा चाहे जहां हो, लेकिन रामलला विराजमान को अपनी जगह से हटाने में कोई सक्षम नहीं है. लेकिन एक ही धर्म वाला देश इराक के तीन भागों में विघटन की संभावनाएं यह बताती हैं कि इसके परिणाम क्या हो सकते हैं. तर्क यही है कि यहां आस्था की ही जीत होगी, तथ्य, साक्ष्य, इतिहास की नहीं.

रामलला के प्राकट्य से लेकर 1984 तक अयोध्या में इसकी देखरेख और सुरक्षा का दायित्व एक पतला डंडा लिये थाने का एक ऐसा सिपाही निभाता था, जिसका अन्य स्थानों पर कोई बड़ा उपयोग नहीं किया जा सकता था. लेकिन इस बीच ऐसा कोई हादसा नहीं हुआ, जब किसी आस्था, विरोध और विद्वेष के कारण इस मूर्ति को हटाने की आवश्यकता पड़ी हो. अब सवाल है कि आखिर मसजिद के अस्तित्वहीन होने के कारण रामलला विराजमान को खतरा किन कारणों से किन तत्वों द्वारा संभावित है, वे देशी हैं या विदेशी? आखिर क्यों अयोध्या को नो फ्लाइंग जोन बनाने की बात की जा रही है?

इस बाबत केंद्र की ओर से इस विवादित स्थल के रिसीवर फैजाबाद के आयुक्त दबे मन से कहते हैं कि निर्णय हो गया है, लेकिन अंतिम फैसला केंद्र को करना है, क्योंकि अयोध्या सर्किल एरिया इक्यूजीशन एक्ट के तहत यह भूमि केंद्र के अधीन है. क्या बदली हुई स्थितियों में जब सत्ता में परिवर्तन हो गया है और जिन्हें अब तक मंदिर समर्थक बताया जाता था, वे इस नये निर्णय द्वारा अयोध्या को वर्तमान स्थिति में भी अति संवेदनशीलता के घेरे में रखना चाहते हैं और साथ ही यह भी देखना होगा कि इसके पीछे इस आंदोलन के इतिहास की भांति कोई राजनैतिक कारण तो विद्यमान नहीं है?

6 इंच की मूर्ति के लिए इस पर सरकार 3 अरब रुपये से अधिक वार्षिक खर्च कर रही है लेकिन उसे नये प्रयत्नों की भी आवश्यकता है. सुरक्षा के नाम पर अयोध्या को तीन भागों-रेड, यलो और ग्रीन जोन में बांटा गया है.

अयोध्या के सभी प्रमुख मंदिर यलो जोन में ही आते हैं, जहां कोई व्यक्ति पहुंचने के लिए वाहनों तक का इस्तेमाल नहीं कर सकता और जहां राज्य और केंद्र के सुरक्षाबल की सक्रिय चौकसी दर्शनार्थियों, आस्थावादियों और तीर्थयात्रा ियों के लिए साधक नहीं, बल्कि बाधक ही बनती है. नये राजनैतिक परिवर्तनों के बाद भी इसमें कोई ढील नहीं आयी है. लेकिन राज्य की स्थायी शासक तो नौकरशाही है, जिसे अपनी आय और सुविधा के लिए नये शिगूफे आवश्यक होते हैं, इसलिए अब अतिरिक्त ‘नो फ्लाइंग जोन’ की सुविधा, विधा और प्रयत्नों को तीन अरब में कैसे पूरा किया जायेगा, इसमें भी तो वृद्घि चाहिए.

कहा जा सकता है कि देश की सुरक्षा के लिए जिस प्रकार सेना के खर्चे विवादों से परे हैं, उसी प्रकार रामलला विराजमान की सुरक्षा को भी खर्च सीमा के भीतर नहीं देखा जा सकता. अब उनको नुकसान पहुंचा कर किन उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकती है, जो वर्तमान समीकरणों के विपरीत हो. अब तो बाबरी मसजिद के मुद्दई हाशिम अंसारी भी यही कहते हैं कि उनकी अंतिम इच्छा यही है कि राममंदिर का निर्माण हो ही जाये. लेकिन कठिनाई यह है कि यह मंदिर निर्माण इस नाम पर होने वाली राजनीति को ही चोट पहुंचायेगा और इसकी हवा भी निकल जायेगी.

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