।। दक्षा वैदकर ।।
लो ग अक्सर कहते हैं कि समय बहुत खराब है. किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए. सब झूठ बोलते हैं. ये बातें इतनी ज्यादा बार बोली जाती हैं कि अब हमारे दिमाग में लोगों के प्रति शक जल्दी आता है. हम सामनेवाले की बात पर भरोसा ही नहीं करते. पिछले दिनों मैंने भी यही गलती की. हमारे ऑफिस में कुछ कॉलेज गल्र्स इंटर्नशिप कर रही हैं. पिछले दिनों उनमें से दो लड़कियों को एक असाइनमेंट दिया गया. दोपहर के बाद उनमें से एक का फोन आया. उसने बताया कि साथी इंटर्न की तबीयत अचानक खराब हो गयी है और वह उसे पहुंचाने उसके घर गयी हुई है.
मैंने उससे कहा कि अपनी दोस्त को घर छोड़ दिया हो, तो आप अपने हिस्से का असाइनमेंट पूरा करो. इंटर्न ने जवाब दिया, ‘मैम उसके घर पर मम्मी-पापा कोई नहीं हैं. मैं उसे अकेला कैसे छोड़ सकती हूं.’ मैंने ‘ओके’ कह कर फोन रख दिया. मन ही मन खूब गुस्सा हुई. मुङो लगा कि आजकल की जनरेशन छुट्टी मनाने के कैसे-कैसे बहाने तलाशती है. मम्मी-पापा नहीं हैं, तो क्या हुआ. वह कोई बच्ची थोड़े ही है कि कुछ घंटे अकेले नहीं रह सकती. जरूर इन दोनों इंटर्न का आज काम का मूड नहीं होगा. अब पार्टी करेंगी या मूवी देखेगी. आने दो कल ऑफिस. तब जानूंगी कि ऐसा क्या हो जाता अगर अकेली दोस्त को छोड़ देती तो?
दूसरे दिन जब वे दोनों ऑफिस आयीं, तो मैंने पूछा ‘क्या मम्मी-पापा के बिना तुम घर पर अकेली नहीं रह सकती? कॉलेज जाने वाली लड़कियां हो तुम. कोई बच्ची थोड़े ही हो. हम तो खराब तबीयत में भी अकेले रह चुके हैं.’ इंटर्न ने जवाब दिया, ‘मैम हमारे घर में तीन नौकर हैं. पैरेंट्स ने यह कह रखा है कि अगर घर में सिर्फ नौकर हो, तो घर पर अकेली मत रुकना. आजकल टीवी पर इस तरह के केसेज भी देखने को मिलते हैं कि नौकर ने ही नुकसान पहुंचाया, इसलिए वे सतर्क रहती हैं.’
इंटर्न की बात सुन कर मुङो अपने गलती का अहसास हुआ. मैंने सोचा भी नहीं था कि ये वजह भी हो सकती है. मन ही मन खुद को डांटा भी कि मैं किसी के बारे में बिना सोचे-समङो ऐसा कैसे सोच सकती हूं.
बात पते की..
– लोगों पर भरोसा करना सीखें. सभी इनसानों को एक ही चश्में से न देखें. तब तक कोई स्टेटमेंट न दें, जब तक सामनेवाले से बात न कर लें.
– कई बार हम खुद को सामनेवाले की जगह ठीक तरह से रख नहीं पाते, इसलिए बेहतर है कि किसी की छवि यूं ही दिमाग में खराब न कर लें.