मोदी सरकार ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य सरकारों द्वारा खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने की समय सीमा तीन महीने और बढ़ा दी है. पहले यह चार जुलाई तक थी. पिछली सरकार के कार्यकाल में पारित इस कानून के तहत देश के हर गरीब को प्रतिमाह कम-से-कम पांच किलोग्राम खाद्यान्न अत्यंत कम कीमतों पर उपलब्ध कराना है.
दुर्भाग्य से अभी यह कानून सिर्फ पांच राज्यों- हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब और छत्तीसगढ़- में पूरी तरह से और छह राज्यों- दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और चंडीगढ़- में आंशिक रूप से लागू हो सका है. देश की जनसंख्या के 70 फीसदी हिस्से को राहत पहुंचाने के इरादे से बनाये गये इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू किये जाने की जरूरत है.
लगातार बढ़ती महंगाई से गरीब तबके के लिए समुचित पोषक आहार तक पहुंच दिनोंदिन मुश्किल होती जा रही है. इस वर्ष कमजोर मानसून की वजह से सूखे जैसी स्थिति की आशंका बढ़ती जा रही है. तेल और रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था के मौजूदा संकट में सुधार के आसार कम हैं. इन सारी कठिनाइयों की मार सबसे अधिक गरीबों पर पड़ती है. अगर केंद्र और राज्य सरकारों को खाद्य सुरक्षा कानून को ठीक से लागू करने में व्यावहारिक दिक्कतें आ रही हैं, तो उन्हें दूर करने की कोशिशें ईमानदारी से होनी चाहिए. दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने की जरूरत है.
आवश्यकतानुसार अनुदान की राशि बढ़ाते हुए सरकारी गोदामों में रखे अनाज को गरीब जनता तक ले जाना चाहिए. आजादी के कई दशकों के बाद भी देश की 17 फीसदी जनता गंभीर कुपोषण का शिकार है. यह सरकारों और राजनीतिक दलों की सामूहिक जिम्मेवारी है कि इस कानून के तहत खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करें. साथ ही, यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रशासनिक लापरवाही व अक्षम प्रबंधन इस कल्याणकारी योजना को कहीं विफल न कर दें. दुनिया में एक महाशक्ति के रूप में गिने जाने की आकांक्षा बिना जनता को भरपेट आहार उपलब्ध कराये पूरी नहीं हो सकती है. कुल घरेलू उत्पादन, शेयर बाजार में उछाल, वृद्धि दर आदि से संबंधित आंकड़ों की कलाबाजियां बेमानी है, अगर देश की बड़ी आबादी भूखी है.