शंकराचार्य स्वारूपानंद का बयान सुन कर ताज्जुब होता है. ऐसे लोगों को शंकराचार्य की उपाधि आखिर क्यों दी जाती है, जो देश को जोड़ने की जगह तोड़ने और धार्मिक उन्माद फैलाने का काम करते हैं. हिंदुओं को साईं बाबा की पूजा नहीं करने का आह्वान करनेवाले स्वारूपानंद अगर सही मायने में धर्म के ठेकेदार हैं तो उन्होंने निर्मल बाबा और आसाराम जैसों के प्रति लोगों को सचेत क्यों नहीं किया?
व्यक्ति किस धर्म के माने और किस धर्म को नहीं, यह उसका स्वविवेक है. इस पर कोई बंदिश नहीं लगा सकता है. हमारे हिंदुस्तान के लोग ‘सर्वधर्म समभाव’ से जीते हैं. जब हमें भगवान ने ही एक समान बनाया है तो इन शंकराचार्य का क्या हक बनता है, हमारे बीच जहर घोलने का? ऐसे ही बयानों से लोगों में कटुता आती है. और यही वजह है कि साधु-संतों से लोगों को विश्वास उठता जा रहा है.
कुणाल कुमार बैद्य, धनबाद