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एक विश्व चैंपियन टीम की ऐसी दुर्दशा!

अब तक शानदार रहे लीग मुकाबले पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर अनादि बरुआ की राय अनादि बरुआ फुटबॉल विश्व कप के लीग दौर के मुकाबले अब रोमांचक मोड़ पर पहुंच चुके हैं. एक छोटी-सी चूक बड़ी-बड़ी टीमों के लिए भारी पड़ रही है, तो उभरती हुई टीमें अपना सर्वस्व झोंकते हुए उलटफेर करने को आमादा दिख रही […]

अब तक शानदार रहे लीग मुकाबले

पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर अनादि बरुआ की राय

अनादि बरुआ

फुटबॉल विश्व कप के लीग दौर के मुकाबले अब रोमांचक मोड़ पर पहुंच चुके हैं. एक छोटी-सी चूक बड़ी-बड़ी टीमों के लिए भारी पड़ रही है, तो उभरती हुई टीमें अपना सर्वस्व झोंकते हुए उलटफेर करने को आमादा दिख रही हैं. पेश है पूर्व अंतरराष्ट्रीय भारतीय फुटबॉलर अनादि बरु आ से खेल पत्रकार प्रवीण सिन्हा की बातचीत पर आधारित विश्‍लेषण..

प्रवीण सिन्हा

वरिष्ठ खेल पत्रकार

इस बार विश्व कप में जबरदस्त उलटफेर देखने को मिल रहे हैं. शुरुआती दौर के 16 मैचों पर गौर करें तो स्पेन, इंगलैंड और उरु ग्वे जैसी धुरंधर टीमों को हैरतअंगेज ढंग से हार ङोलनी पड़ी. दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, बोस्निया और कोस्टारिका जैसी टीमों ने अपने दमदार प्रदर्शन से साबित कर दिया कि उन्हें हल्के तौर पर कतई नहीं लिया जा सकता है.

अब तक के मुकाबलों को देखते हुए मैं मानता हूं कि भले ही मौजूदा चैंपियन स्पेन की टीम उलटफेर का शिकार हुई या ऑस्ट्रेलियाई टीम शुरु आती दोनों मैच हार कर विश्व कप से बाहर हो गयी, पर सारी टीमें बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर रही हैं. शुरु आती 16 मैचों में सारी टीमों ने मिल कर कुल 46 गोल दागे जो एक अच्छा स्कोरिंग रेट माना जायेगा.

अन्य विश्व कप की तुलना में यह बेहतर गोल औसत माना जायेगा. वैसे भी, क्रि केट में जब दर्शक चौके-छक्के लगते देखना पसंद करते हैं, तो फुटबॉल में भी ज्यादा से ज्यादा रोमांचक मुकाबले और खूब गोल होते देखना खेल प्रेमियों को भाता है. यह देख कर अच्छा लगा कि ऑस्ट्रेलियाई टीम से ज्यादा उम्मीदें न होने के बावजूद उनके देश से 14-15 हजार लोग विशेषकर फुटबॉल मैच देखने व अपनी टीम की हौसला आफजाई करने के लिए ब्राजील पहुंचे.

उन जैसे लाखों फुटबॉल प्रेमी दुनिया के कोने-कोने से ब्राजील पहुंचे हैं और मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वे सभी खेल का जम कर लुत्फ उठा रहे हैं. अब कोई यह नहीं कह सकता है कि फलां टीम बड़ी है, तो उसकी जीत निश्चित है. फीफा विश्व कप में उतरने वाली हर टीम एक-दूसरे को परास्त करने की क्षमता रखती है, जिससे रोमांच कायम है.

यही नहीं, मैं दावा कर सकता हूं कि पहले दौर के मुकाबलों के बाद जब 16 टीमें नाकआउट दौर में प्रवेश करेंगी, तो मुकाबला और कठिन हो जायेगा. किसी भी टीम के लिए भविष्यवाणी करना आसान नहीं रह जायेगा. बहरहाल, जहां तक विभिन्न टीमों के प्रदर्शन की बात है, तो सबसे पहले मेजबान ब्राजील के बारे में मेरा मानना है कि उन्होंने पहले मैच में अच्छा प्रदर्शन करते हुए क्र ोएशिया को मात दी. लेकिन मैक्सिको के खिलाफ दूसरे मैच में उनका प्रदर्शन काबिलेतारीफ नहीं रहा. मैं मानता हूं कि मैक्सिको का गोलकीपर उनके सामने दीवार की तरह खड़ा था, लेकिन ब्राजील जैसी टीम से इतने मौके गंवाने की किसी को उम्मीद नहीं थी.

अपने घर में अपने दर्शकों के सामने कोई टीम इतने मौके गंवाये, ऐसा नहीं होना चाहिए था.इसी तरह पुर्तगाल की टीम अच्छी है. लेकिन उसका पहला ही मुकाबला जर्मनी जैसी सशक्त टीम से हुआ, जो दृढ़ संकल्प के साथ खेलती दिख रही है. पुर्तगाली खिलाड़ी जब तक तालमेल बिठा पाते उससे पहले ही जर्मन खिलाड़ियों ने ताबड़-तोड़ हमले बोलने शुरू कर दिये. वैसे भी, जर्मन टीम हमेशा अपने प्रतिद्बंद्बियों के लिए टफ साबित होती है. इस बार तो उन्होंने विश्व कप की तैयारियों के लिए अपनी टीम को पहले ही ब्राजील भेज दिया था ताकि खिलाड़ी वहां की परिस्थितियों से सामंजस्य बिठा सकें.

उनकी बेहतर तैयारियों का ही नतीजा था कि अपने पहले ही मैच में उन्होंने टोटल फुटबॉल का बेहतरीन नजारा पेश किया. कमोबेश यही कहानी इंगलैंड के साथ रही और उन्हें इटली से कड़े मुकाबले में हार ङोलनी पड़ी. यहां मैं एक बात की चर्चा करना चाहूंगा कि पुर्तगाल के लिए उनके स्टार स्ट्राइकर रोनाल्डो नहीं चल पाये, तो इंगलैंड के लिए वेन रूनी का भी रंग में न दिखना उन्हें भारी पड़ा. वैसे, इंगलैंड के ज्यादातर खिलाड़ी युवा हैं और कई बार वे जोश में होश खोते दिखे. ताबड़-तोड़ आक्र मण के बावजूद अगर आपकी फिनिशिंग अच्छी नहीं है, तो आप मैच जीतने की उम्मीद नहीं पाल सकते. इंगलैंड के साथ ठीक यही हुआ.

अंत में, गत विजेता स्पेन की लगातार दो हार निराश करनेवाली रही. उनके पास सिर्जयो रामोस, जावी और आंद्रेस इनिएस्टा जैसे स्टार खिलाड़ी थे. इसके बावजूद टीम नीदरलैंड और चिली के खिलाफ ज्यादातर समय दबाव में दिखी. उनके खिलाड़ियों का मौकों का फायदा न उठा पाना या ज्यादा गोल न दाग पाना एक बार फिर सवाल खड़े करता है कि आप जब मैदान पर खेल रहे होते हैं तो क्लब को ज्यादा तरजीह देते हैं या फिर देश को. स्पेन को 1962 के बाद विश्व कप में सबसे करारी हार ङोलनी पड़ी है. जाहिर है, यह उनके लिए आत्ममंथन का समय है. विश्व कप की निराशा को पीछे छोड़ते हुए उन्हें आगे बढ़ना होगा, क्योंकि एक विश्व चैंपियन टीम की ऐसी दुर्दशा पहली बार देखने को मिली है.

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