रांची: झारखंड विधानसभा सचिवालय में चपरासी और मेहतर के पद पर नियुक्त 20 कर्मचारी अवर सचिव के पद पर प्रोन्नत हो गये हैं. उन्हें चपरासी से अफसर बनने में 14 साल लगे. सरकार के सचिवालय में कोई चपरासी नियमित प्रोन्नति से कभी अवर सचिव नहीं बन सकता. आयोग के माध्यम से नियुक्त सचिवालय सहायकों को अवर सचिव के पद तक प्रोन्नत होने में 16 साल का समय लगता है.
झारखंड विधानसभा सचिवालय में पिछले दिनों जिन 20 कर्मचारियों को अवर सचिव के पद पर प्रोन्नत किया गया है वे एकीकृत बिहार के समय चपरासी, मेहतर, दरबान, फराश सहित अन्य चतुर्थ वर्गीय पदों पर नियुक्त हुए थे. राज्य विभाजन के बाद वे झारखंड आये. चतुर्थ वर्गीय पदों पर नियुक्त इन कर्मचारियों को सिर्फ नौ साल (2007) में प्रशाखा पदाधिकारी के पद प्रोन्नत किया गया. इसकी पांच साल बाद यानी 2013 के अंत में उन्हें अवर सचिव के पद पर प्रोन्नत कर दिया गया. इसके लिए झारखंड विधानसभा के संशोधित नियुक्ति व प्रोन्नति नियमावली को आधार बनाया गया. इस नियमावली पर राज्यपाल का अनुमोदन नहीं है.
विधानसभा की इस नियमावली पर वैधानिक सवाल उठाये गये थे. राज्यपाल ने इस मामले की जांच के लिए एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था. पर, विधानसभा सचिवालय के असहयोगात्मक रवैये की वजह से आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश लोक नाथ प्रसाद ने त्याग पत्र दे दिया था. इसके बावजूद इसी नियमावली को आधार बना कर विधानसभा सचिवालय के इन कर्मचारियों को प्रोन्नति दी गयी. दूसरी तरफ सरकार में प्रोन्नति के लिए लागू नियमावली के तहत सचिवालय या सरकार के किसी भी कार्यालय में चपरासी के पद पर नियुक्त चपरासी कभी अवर सचिव के पद पर प्रोन्नत नहीं हो सकता. सामान्यत: चपरासी के पद पर नियुक्त कर्मचारी इसी पद पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं.
आंतरिक परीक्षा के सहारे वे लोअर डिवीजन क्लर्क (एलडीसी) और अपर डिवीजन क्लर्क(यूडीसी) के वेतनमान तक पहुंचते हैं. आंतरिक परीक्षा दे कर सहायक के पद तर पहुंचनेवाले सचिवालय के चपरासी को सर्वाधिक भाग्यवान चपरासी माना जाता है. सचिवालय में कर्मचारी चयन आयोग के सहारे सहायकों की नियुक्ति होती है. नियुक्ति के आठ साल बाद उन्हें प्रशाखा पदाधिकारी और 16 साल बाद अवर सचिव के पद पर नियमित प्रोन्नति मिलती है. हालांकि झारखंड सचिवालय के सहायकों को 17 साल बाद प्रशाखा पदाधिकारी में प्रोन्नति मिली है.