बीते कुछ वर्षो से लगातार बढ़ती महंगाई लोकसभा चुनाव में एक अहम मुद्दा थी. यह अकारण नहीं था. कीमतों पर नियंत्रण के यूपीए-2 सरकार के दावे खोखले साबित हो रहे थे. सोमवार को जारी सरकारी आंकड़ों ने भी इसकी पुष्टि की है. इसमें बताया गया है कि इस वर्ष मई में खाद्य पदार्थो की थोक कीमतों में वृद्धि की दर 6.01 फीसदी तक पहुंच गयी थी, जो अनुमान से अधिक और पिछले पांच महीनों में सर्वाधिक थी. अप्रैल में यह दर 5.2 फीसदी रही थी.
कुछ दिन पहले मई में मुद्रास्फीति की दर उपभोक्ता मूल्यों में 8.28 फीसदी और थोक मूल्यों में 9.50 फीसदी रहने का आंकड़ा सामने आया था. स्वाभाविक रूप से मोदी सरकार ने मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया है और संकेत दिया है कि खान-पान की चीजों की महंगाई को रोकने के लिए वह जरूरी कदम उठायेगी. परंतु यह सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. इसके कई ठोस कारण हैं. मई में थोक मूल्य सूचकांक में हुई वृद्धि का दबाव अगले कुछ महीनों तक खुदरा मूल्यों पर रहेगा.
मौसम विभाग के पूर्वानुमान कमजोर मॉनसून की आशंका जता रहे हैं. पीएमओ में मंत्री जीतेंद्र सिंह ने मौसम विभाग के आकलन के आधार पर कहा है कि इस वर्ष जून से सितंबर के बीच दीर्घकालीन औसत का 90 से 96 फीसदी तक ही बारिश की संभावना है. यदि औसत से कम बारिश हुई तो खरीफ की पैदावार कम हो सकती है. भारत की दो ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 14 फीसदी है. देश की आबादी का दो-तिहाई भाग ग्रामीण क्षेत्रों में है, जहां कृषि ही आय का मुख्य स्नेत है. उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का भी महंगाई पर विपरीत असर पड़ता है.
इस लिहाज से इराक में चरमपंथियों के हमले से पैदा हुई अस्थिरता भी चिंताजनक संकेत है. जाहिर है, महंगाई रोकने के लिए सरकार को समय रहते ठोस रणनीति के साथ कदम उठाना होगा. इस समय सरकार यदि संरक्षण व अनुदान की नीति का सक्रियता से पालन करेगी, तो अर्थव्यवस्था की रफ्तार को ब्रेक लग सकता है. मोदी ने कुछ ‘कड़वी दवाई’ के संकेत भी दिये हैं. अब सबकी नजर आगामी बजट पर होगी, जिसमें सरकार की आर्थिक नीति और रणनीति स्पष्ट हो सकेगी.