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मुजफ्फरपुर की शान, लीची को न करें बदनाम

मुजफ्फरपुर: एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एइएस) का कारण फलों की रानी लीची को कथित तौर पर बताये जाने का विरोध शुरू हो गया है. लीची उत्पादक व व्यवसायी एकजुट हो गये हैं. सबने एक स्वर में कहा, लीची को इस बीमारी का कारण बताने से किसानों व निर्यातकों को काफी नुकसान हो रहा है. मुंबई, बेंगलुरु, […]

मुजफ्फरपुर: एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एइएस) का कारण फलों की रानी लीची को कथित तौर पर बताये जाने का विरोध शुरू हो गया है. लीची उत्पादक व व्यवसायी एकजुट हो गये हैं.

सबने एक स्वर में कहा, लीची को इस बीमारी का कारण बताने से किसानों व निर्यातकों को काफी नुकसान हो रहा है. मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली महानगरों में लीची मार्केट में दहशत का माहौल है. 250 रुपये प्रति किलो बिकने वाली लीची 60 से 80 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है. खरीदार भी दहशत में हैं. बीमारी का कारण स्पष्ट हुए बिना चिकित्सकों को लीची पर बयान देने से बचना चाहिए. लीची उत्पादन कर व बाहर निर्यात कर आजीविका चलाने वाले लोगों की जिंदगी तबाह करने की बड़ी साजिश हो रही है. इस मुद्दे पर किसान नेता भोला नाथ झा, मीनापुर के किसान राजा बाबू, लीचीका इंटरनेशनल के केपी ठाकुर, सेवानिवृत जिला उद्यान पदाधिकारी रामेश्वर ठाकुर व लीची निर्यातक राज कुमार केडिया ने पार्क होटल में संयुक्त प्रेस वार्ता कर लीची को बीमारी का कारण बताने को बड़ी साजिश करार दिया. कहा, किसानों को इस मुद्दे पर एकजुट होकर सरकार से जवाब मांगना होगा. राज्य व केंद्र सरकार से इस पर वार्ता करेंगे.

किसान नेता भोला नाथ झा ने कहा, लीची का इस माटी से दो वर्ष पुराना रिश्ता है. त्रिपुरा से होते हुए यहां पहुंची. लेकिन इस बीमारी का प्रकोप इधर हुआ है. यह मद्रास, सीमांध्र व तेलंगाना के बड़े लोगों की साजिश हो सकती है. लीची सीटी की पहचान को बचाने के लिए बिहार सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करने की जरू रत है. वहीं, भारत सरकार को इस मुद्दे पर उचित फैसला लेना चाहिए.

पूर्व डीएचओ रामेश्वर ठाकुर ने कहा, लीची के समय में एइएस नहीं होता है. एइएस के समय लीची होती है. बीमारी दूषित पानी, दूषित भोजन, मच्छर का प्रकोप या कोई और वजह से हो सकता है. बीमारी होना व बच्चों की मौत बेहद दुखद पहलू है. लेकिन बिना जांच के लीची को बीमारी का कारण बताना किसानों को रीढ़ तोड़ देने वाली बात है. डॉक्टर बीमारी का कारण ग्लूकोज की कमी बताते हैं. इलाज इसे चढ़ाने के बाद शुरू करते हैं. तो लीची में शुक्रोज व फ्रुक्टोज होता है. इसमें फॉस्फोरस, काबरेहाइड्रेट व एंटीऑक्सीडेंट होता है. शक्ति देने वाली वस्तु खाने से बीमारी कैसे हो सकती है? उलझाने वाली बात है.

लीची इंटरनेशनल के केपी ठाकुर ने कहा, किसानों का उत्पाद नहीं बिकेगा तो खेती क्यों होगी. लोग पेड़ लगाने के बजाय कटवा देंगे. पहले 1100 रुपये पेटी लीची थी, अब चार सौ रुपये पेटी भी कोई पूछ नहीं रहा है. बिना जांच रिपोर्ट बयान देना एकदम गलत है. इन बयानों से किसानों के समक्ष रोजी रोटी का संकट हो जायेगा. जहां लीची के ब्रांडिंग बनाये जाने की बात हो रही है. वहां इस बीमारी का नाम लेकर भ्रम फैलाना ठीक नहीं है. बीमारी के वक्त लीची हारवेस्टिंग होती है. मार्केट में लीची नहीं बिक रही है तो किसानों का पैसा कहां से मिलेगा.

लीची व उत्पाद निर्यातक राज कुमार केडिया ने कहा, बीमारी का कोई और कारण हो सकता है. पानी, गरमी, मच्छर इसका कारण हो सकता है. गहन जांच का विषय है. घनी व गंदी बस्ती के कुपोषित बच्चों को यह बीमारी अधिक हो रही है. गोरखपुर, गया, दक्षिण के राज्यों में कहा लीची है. वहां भी बच्चे बीमार पड़ते हैं, मर जाते हैं. लीची बीमारी का कारण नहीं है. लीची को बीमारी का कारण बताना एकदम गलत है. वहीं, राजाबाबू ने कहा, मीनापुर के छपरा में उनका बागीचा है. उसके पास में काफी लोग हैं. अभी तक तो कोई लोग इस बीमारी से प्रभावित नहीं हुए हैं.

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