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दागियों पर नकेल कसने का फरमान

पुण्य प्रसून वाजपेयी वरिष्ठ पत्रकार अब मोदी सरकार के लिए यह पहला और शायद सबसे बड़ा ‘एसिड टेस्ट’ होगा कि वह दागी सांसदों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तुरंत कार्रवाई शुरू करे, जिससे संसद की साख लौटे और राजनेताओं के प्रति जनता में भरोसा जागे. बीहड़ में बागी रहते हैं, डकैत तो […]

पुण्य प्रसून वाजपेयी

वरिष्ठ पत्रकार

अब मोदी सरकार के लिए यह पहला और शायद सबसे बड़ा ‘एसिड टेस्ट’ होगा कि वह दागी सांसदों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तुरंत कार्रवाई शुरू करे, जिससे संसद की साख लौटे और राजनेताओं के प्रति जनता में भरोसा जागे.

बीहड़ में बागी रहते हैं, डकैत तो पार्लियामेंट में होते है. याद कीजिए, फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के इस डायलॉग पर खूब तालियां बजी थीं. और उसी दौर में जनलोकपाल को लेकर चले आंदोलन के बीच संसद की साख को लेकर भी सवाल उठे. दागी सांसदों को लेकर सवाल किये गये कि संसद की गरिमा बचेगी कैसे? अपराधी और भ्रष्टाचार में लिप्त राजनेता अगर संसद पहुंच जायेगा, तो उसके विशेषाधिकार के दायरे को तोड़ेगा कौन?

खासतौर से बीते दो दशकों में जिस तेजी के साथ आपराधिक मामलों में फंसे राजनेताओं की तादाद लोकसभा में बढ़ती चली जा रही थी और उसी तेजी से गठबंधन सरकारों के आसरे हर कोई सत्ता की मलाई खाने के लिए विचारधारा से लेकर अपने अस्तित्व की राजनीति तक छोड़ रहा था, वैसे में कौन प्रधानमंत्री अपनी गद्दी की कीमत पर दागी सांसदों पर नकेल कसने का सवाल उठाता. यह अपने आप में देश के सामने अनसुलझा सवाल भी था और जवाब नहीं मिल पाने का सच भी था.

लेकिन तीस बरस बाद जनादेश की ताकत ने कायाकल्प किया है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले भाषण में ही दागी सांसदों को लेकर जैसे ही यह सवाल छेड़ा कि फास्ट ट्रैक अदालतों के जरिये साल भर में दागी सांसदों के मामले निपटाये जायें, वैसे ही पहला सवाल यही उठा कि कहीं मोदी ने र्बेके छत्ते में हाथ तो नहीं डाल दिया. जो सवाल बीते दो दशक से संसद अपने ही लाल-हरे कारपेट तले दबाता रहा, उसे खुले तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसे सिक्के की तरह उछाल दिया, जिसमें अब चित या पट होनी ही है.

क्योंकि मौजूदा लोकसभा में 186 सांसद दागदार हैं और यह तादाद बीते दस बरस में सबसे ज्यादा है. बीते दस बरस में मनमोहन सिंह सरकार के वक्त दागी सांसदों का मामला उठा जरूर, लेकिन सरकार गिरी नहीं, इसलिए चेक एंड बैलेंस तले हर बार दागी सांसदों की बात संसद में ही आयी-गयी हो गयी. और तो और, अपराधी राजनेता आसानी से चुनाव जीत सकते हैं, इसलिए खुले तौर पर उन्हें टिकट बांटने में किसी भी राजनीतिक दल ने कोताही नहीं बरती और चुनाव आयोग के बार-बार यह कहने को भी नजअंदाज कर दिया गया कि आपराधिक मामलों में फंसे राजनेताओं को टिकट ही न दें.

मनमोहन सिंह के 10 बरस के कार्यकाल में लोकसभा में तीन बार और राज्यसभा में 5 बार दागी सांसदों को लेकर मामला उठा, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं. वजह यही मानी गयी कि सरकार गठबंधन की है, तो कार्रवाई करने पर सरकार ही न गिर जाये. लेकिन, अब पहली बार पूर्ण जनादेश के साथ जब प्रधानमंत्री मोदी को बिना किसी दबाव में निर्णय लेने की ताकत मिली है, तो दागी सांसदों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की दिशा में सरकार कदम उठायेगी, इसके संकेत दे दिये गये.

वैसे हकीकत यह भी है कि महीने भर पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इसकी जानकारी भेजी थी कि दागी सांसदों को लेकर अब यह व्यवस्था की जा रही है कि जिन सांसदों के मामले जिस भी अदालत में चल रहे हैं, वह अदालत एक ‘टाइम फ्रेम’ में मामला निपटाये. अगर सेशन कोर्ट मामले को निपटाने में देरी करेगा, तो मामला खुद-ब-खुद हाइकोर्ट के पास चला जायेगा. और हाइकोर्ट में देरी होगी तो सुप्रीम कोर्ट मामले को निपटायेगा. और यह पूरी प्रक्रिया बरस भर में पूरी कर ली जायेगी.

प्रधानमंत्री ने जो कहा, उसकी जमीन सुप्रीम कोर्ट पहले ही बना चुका है. फर्क सिर्फ इतना है कि इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने हिम्मत नहीं दिखायी और मोदी ने यह जानते-समझते हुए हिम्मत दिखायी कि मौजूदा लोकसभा में सबसे ज्यादा दागी सांसद बीजेपी के ही हैं. और सभी फंस गये तो सरकार अल्पमत में आ जायेगी. क्योंकि 186 दागी सांसदों में से बीजेपी के 98 सांसद दागी हैं. जबकि दूसरे नंबर पर बीजेपी की ही सहयोगी शिवसेना के 15 सांसद दागी हैं. वहीं कांग्रेस के 8, टीएमसी के 7 और एआइएडीएमके के 6 सांसद दागी हैं. बीजेपी की मुश्किल तो यह भी है कि 98 सांसदों में से 66 सासंदों के खिलाफ गंभीर किस्म के अपराध दर्ज हैं. तो क्या मोदी सरकार यह कदम उठायेगी?

दरअसल, सवाल सिर्फ कदम उठाने का नहीं है. सवाल संसद की साख को लौटाने का भी है. क्योंकि सांसदों के खिलाफ जिस तरह के मामले दर्ज हैं, उसमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, चोरी-डकैती, सांप्रदायिकता फैलाने, महिलाओं के खिलाफ अपराध आदि के आरोप हैं. यानी ऐसे आरोप सांसदों के खिलाफ हैं, जो सिर्फ राजनीतिक तौर पर लगाये गये हों या राजनीतिक तौर पर सत्ताधारियों ने आरोप लगा कर राजनेताओं को फांसा हो, ऐसा भी हर मामले में नहीं हो सकता. वैसे बीजेपी के भीतर से बार-बार आपराधिक मामलो में फंसे राजनेताओं को टिकट न देने की बात कही गयी. लेकिन हर बार यह कह कर मामला दबा दिया गया कि राजनीति में आने पर नेताओं को मुकदमों का सामना करना ही पड़ता है. ऐसे में अब मोदी सरकार के लिए यह पहला और शायद सबसे बड़ा ‘एसिड टेस्ट’ होगा कि वह दागी सांसदों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तुरंत कार्रवाई शुरू करे, जिससे संसद की साख लौटे और राजनेताओं के प्रति जनता में भरोसा जागे.

लोकसभा में तो चुन कर दागी पहुंच गये, लेकिन राज्यसभा में तो लोकसभा सदस्यों ने ही दागियों को चुना. मौजूदा राज्यसभा के 232 सदस्यों में से 38 के खिलाफ मामले चल रहे हैं. जिसमें 16 राज्यसभा सदस्यों के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं. देश के लिए यह सवाल इसलिए भी सबसे बड़ा है, क्योंकि संसद के बाद रास्ता विधानसभाओं की ओर जायेगा. अगर संसद की सफाई हो गयी, तो राज्य सरकारों पर भी यह दबाव होगा कि दागी विधायकों के खिलाफ जल्द-से-जल्द फाइल निपटायी जाये. क्योंकि दागी विधायकों की तादाद तो हैरान करनेवाली है. देश के 4,032 विधायकों में से 1,258 दागी हैं.

पूरा मामला इस मायने में भी खासा गंभीर है कि दागी सांसद या विधायकों की संपत्ति में सबसे ज्यादा इजाफा उनके सांसद या विधायक बनने के बाद होता है. देश के कुल 4181 चुने हुए नुमाइंदों में से 3173 नुमाइंदों की संपत्ति उनके सांसद या विधायक बनने के बाद बढ़ जाती है. सिर्फ दागियों की बात करें, तो 98 प्रतिशत दागियों की संपत्ति सौ से दो हजार गुना तक उनके चुने जाने के बाद बढ़ती रही है. दागियों की संपत्ति क्यों बढ़ती है, दागी चुनाव में कैसे जीत जाते हैं, टिकट देते समय दागी को ही क्यों प्राथमिकता दी जाती है, क्या दागियों की वजह से ही चुनाव सबसे महंगा और सत्ता मलाई का प्रतीक बना है, यह सब आनेवाला वक्त तय करेगा, लेकिन शर्त यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दागियों को लेकर अब कोई समझौता न करें.

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