।। दक्षा वैदकर।।
सुधीर तीन साल पहले अपना शहर छोड़ कर दूसरे शहर शिफ्ट हुआ था. वहां उसे नौकरी मिल गयी थी. परिवार की खिलाफ जाकर वह यह नौकरी कर रहा था, इसलिए परिवार से आर्थिक सहायता मिलने की उम्मीद करना बेकार था. नया शहर था और सैलरी आने में एक महीना बचा था. सिक्योरिटी मनी देकर मकान भी किराये पर लेना था और सेटल होना था. इन सब के लिए उसे 20 हजार रुपयों की जरूरत थी. वह परेशान नजर आ रहा था. तभी उसके अपने एक पुराने परिचित अंकल को फोन आया. उन्होंने नये शहर में शिफ्ट होने की बधाई दी और कहा कि नये शहर में तुम्हें रुपयों की जरूरत पड़ेगी, इसलिए अपना अकाउंट नंबर बताओ. मैं कुछ रुपये उसमें डाल देता हूं. सुधीर ने संकोच करते हुए मना किया, लेकिन अंकल के फोर्स करने पर अकाउंट नंबर बता दिया. जब उसने अकाउंट चेक किया, तो पाया कि अंकल ने 20 हजार रुपये डाले हैं. वह खुशी से झूम उठा. उसने खुद को सैटल कर लिया और अपने काम में लग गया. पांच-छह महीने में उसने अंकल को उनके रुपये भी लौटा दिये. देखते ही देखते नयी कंपनी में उसे तीन साल बीत गये.
एक दिन उसे पता चला कि उसके साथी कर्मचारी की आंखों का ऑपरेशन होना है और वह रुपयों को लेकर परेशान है. सुधीर ने अकाउंट से बीस हजार निकाले और साथी के हाथों में जाकर दे दिये. साथी आश्चर्यचकित भी हुआ और बेहद खुश भी. उसके भाव देख कर सुधीर को बड़ा संतोष हुआ. उसने उन्हीं अंकल को फोन लगा कर कहा, ‘आपने मुङो बहुत अच्छी सीख दी है. इसे मैं कभी नहीं भूल सकता. थैंक्यू अंकल.’
दोस्तों, हम अक्सर अपने जीवन के उन क्षणों को याद करके ईश्वर को आभार व्यक्त करते हैं, जब किसी ओर से उम्मीद न होने पर अचानक किसी ने हमारी मदद कर दी थी. इन स्थितियों में हम उस मददगार को भी अच्छे मन से याद करते हैं. खुद को मिलनेवाली इस आकस्मिक मदद से तो हम खुश होते हैं, लेकिन क्या आपने कभी अपनी क्षमताओं के अनुरूप किसी दूसरे की मदद की है?
बात पते की..
किसी दूसरे की मदद कर देने से एक तो आप उसकी अच्छी यादों में शामिल हो जाते हैं, साथ ही आपको अपनी क्षमताओं का अहसास होने लगता है.
कुछ लोग मदद करने को एक प्रपंच या वक्त की बर्बादी मानते हैं, जबकि दिल से किसी की मदद करनेवाले इससे अपनी संतुष्टि में इजाफा करते हैं