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फिर हिंसा के कुचक्र की तरफ़ बढ़ता पाकिस्तान

हारून रशीद बीबीसी उर्दू, इस्लामाबाद कराची एयरपोर्ट पर हुए हमले से लगता है कि तालिबान में बंटवारे के बावजूद बड़े हमले करने की उनकी क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा है. जिस तरह के हमले पहले वो करते रहे हैं, अब भी वो उन्हें अंजाम दे सकते हैं. इससे पहले वो पेशावर के हवाई अड्डे […]

कराची एयरपोर्ट पर हुए हमले से लगता है कि तालिबान में बंटवारे के बावजूद बड़े हमले करने की उनकी क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा है.

जिस तरह के हमले पहले वो करते रहे हैं, अब भी वो उन्हें अंजाम दे सकते हैं. इससे पहले वो पेशावर के हवाई अड्डे को निशाना बना चुके हैं जबकि कराची में तीन साल पहले मेहरान एयर बेस और कामरा एयर बेस पर हमले हो चुके हैं.

पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में हुए ताज़ा हमले में 28 लोग मारे गए और घंटों तक वहां चरमपंथियों से सुरक्षा बलों की मुठभेड़ होती रही.

इस हमले के बाद न सिर्फ़ तालिबान चरमपंथियों से शांति वार्ता को लेकर रही सही उम्मीदें भी लगभग ख़त्म हो जाएंगी, वहीं पाकिस्तान के फिर हिंसा के कुचक्र में फंसने का ख़तरा बढ़ गया है.

तालिबान की ताक़त

हाल में तालिबान में फूट देखने को मिली, लेकिन इससे उसकी क्षमता पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है.

जिस शाहिदुल्लाह शाहिद गुट ने कराची एयरपोर्ट हमले की ज़िम्मेदारी स्वीकार की है, वो अब भी मौलवी फ़ज़लुल्लाह के नेतृत्व में काम कर रहा है और लगता है कि उनका गुट अब भी सक्रिय है.

महसूद क़बीले का गुट उनसे अलग हुआ था. उसने जब से अलग होने का ऐलान किया है, तब से उनकी तरफ़ से कोई हिंसक कार्रवाई नहीं की गई है.

तालिबान नेताओं का कहना है कि दोनों गुटों में मतभेद जारी हैं लेकिन उन्हें फिर से एक करने की कोशिशें जारी हैं.

दरअसल जब भी तालिबान को पाकिस्तानी सरकार और आम लोगों तक ये संदेश पहुंचाना होता है कि वो अब भी सक्रिय हैं तो वो इस तरह का कोई बड़ा हमला करते हैं.

साथ ही उनके छोटे-छोटे हमले भी जारी रहते हैं. मसलन हाल के दिनों में क़बायली इलाक़े बाजौड़ में उन्होंने सेना को एक के बाद एक कई बार निशाना बनाया.

पाकिस्तान में हाल के समय में सुरक्षा पर काफ़ी ध्यान दिया गया है. इस्लामाबाद समेत बड़े शहरों में पहले से पुख़्ता इंतज़ाम किए गए हैं. लेकिन उसके बावजूद इस तरह का हमला होना तालिबान चरमपंथियों की क्षमताओं को साबित करता है.

‘खुली जंग’

इस तरह के हमलों के कारण सरकार और तालिबान की बातचीत के लिए रास्ते लगभग बंद हो जाएंगे. हालांकि दोनों ही तरफ़ से अभी तक इस तरह की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है.

लेकिन दोनों ही तरफ़ से कहा जाता रहा है कि अगर उन पर हमला हुआ तो वो उसका जवाब ज़रूर देंगे.

बातचीत के मद्देनज़र दोनों पक्षों में संषर्षविराम हुआ, जो डेढ़ महीने तक लागू रहा. लेकिन उस दौरान कुछ नहीं हुआ.

लेकिन अब वज़ीरिस्तान में जिस तरह सेना सीमित ऑपरेशन कर रही है, और बाजौड़ में जिस तरह चरमपंथी सेना को निशाना बना रहे हैं, इससे यही लगता है कि संघर्षविराम जैसी अब कोई बात नहीं रह गई है.

अब लगता है कि दोनों पक्षों के बीच खुली जंग हो रही है.

चरमपंथियों की तरफ़ से कराची के हवाई अड्डे पर हमला इसी कड़ी का हिस्सा लगता है और इससे पहले रावलपिंडी के क़रीब भी दो कर्नल मारे गए.

इन सब कार्रवाइयों की प्रतिक्रिया में अगर सेना क़बायली इलाक़ों में अभियान चलाती है तो फिर चमरपंथियों की तरफ़ से उसकी प्रतिक्रिया होगी.

इस तरह लगता है कि बातचीत की नाकामी के बाद पाकिस्तान में एक बार फिर हिंसा का वही कुचक्र शुरू हो गया है.

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