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विकास के लिए समाजवाद जरूरी

जमशेदपुर: सोमवार को कोऑपरेटिव कॉलेज हिंदी विभाग के पूर्व प्राध्यापक एवं सक्रिय समाजवादी स्व. प्रो ए पी झा की स्मृति में व्याख्यानमाला की शुरुआत हुई. मुख्य वक्ता दिल्ली से पधारे प्रमुख समाजवादी चिंतक प्रो प्रेम कुमार ने अपने संबोधन में देश की वर्तमान राजनीतिक आर्थिक स्थितियों में समाजवाद की पुनस्र्थापना पर जोर दिया. उन्होंने अपने […]

जमशेदपुर: सोमवार को कोऑपरेटिव कॉलेज हिंदी विभाग के पूर्व प्राध्यापक एवं सक्रिय समाजवादी स्व. प्रो ए पी झा की स्मृति में व्याख्यानमाला की शुरुआत हुई. मुख्य वक्ता दिल्ली से पधारे प्रमुख समाजवादी चिंतक प्रो प्रेम कुमार ने अपने संबोधन में देश की वर्तमान राजनीतिक आर्थिक स्थितियों में समाजवाद की पुनस्र्थापना पर जोर दिया. उन्होंने अपने वक्तव्य में देश के सम्यक् विकास के लिए समाजवादी चिंतन एवं आंदोलन को सबल बनाने पर जोर देते हुए स्थापित करने की कोशिश की कि विगत कुछ वर्षो में देश में सत्ता संभालने वाले दलों तथा उनके उच्च नेतृत्व के कारण देश की आर्थिक दुरवस्था के गर्त में पहुंचता गया है.

हालांकि इस दौरान श्रोताओं की ओर से कई प्रश्न भी किये गये जिनके समाधान की कोशिश करते हुए प्रो सिंह ने समाजवादी चिंतन एवं समाजवादी आंदोलन को पुनर्जागरित करने की जरूरत स्थापित की. इससे पूर्व निशांत अखिलेश ने विषय प्रवेश के रूप में अपना वक्तव्य रखा जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर विगत दस-पंद्रह वर्षो की आर्थिक-राजनीतिक गतिविधियों की चर्चा की जो भविष्य में देश की आर्थिक बदहाली का कारण बन सकती हैं. विचार गोष्ठी में सुखचंद्र झा ने आगत अतिथियों का स्वागत किया, जबकि दिनेश शर्मा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ. विचार गोष्ठी में इनके अलावा डॉ शालीग्राम यादव, शशिकुमार, डॉ जगदीश मिश्र, डॉ बीके मिश्र, डॉ मित्रेश्वर अगिAमित्र, जवाहरलाल शर्मा, डॉ राजीव, डॉ रामकवींद्र, डॉ अश्विनी कुमार, सीआर माझी आदि सहित पुराने समाजवादी एवं अन्य बुद्धिजीवी उपस्थित थे.

उठे विरोध के स्वर भी : हालांकि श्रोता के रूप में उपस्थित समाजवाद के पुराने समर्थकों एवं अनुयायियों की ओर से ही कई विरोधी प्रश्न खड़े किये जाते रहे. प्रो सिंह द्वारा देश के वर्तमान नेतृत्व पर सवाल खड़े किये जाने पर श्रोताओं की ओर से सवाल किया गया कि ऐसे माहौल में जब पूरे देश ने नरेंद्र मोदी एवं मोदी लहर को भरपूर समर्थन प्रदान किया है (और दूसरे शब्दों में समाजवादी चिंतन को नकार दिया है), उसके खिलाफ बोलना कहां तक उचित होगा. इसी तरह यह शंका भी उठायी गयी कि समाजवाद एवं समाजवादी विचारधारा सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है, किन्तु उसको स्थापित कैसे किया जाय, यह स्पष्ट करने वाला कोई दिखायी नहीं देता.

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