।। निशि रंजन ठाकुर।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
वक्त अपनी रौ में बहता है. घड़ी की सूई सरकती रहती है. न चांद थमता है, न सूरज और न पृथ्वी. हमारे चारों ओर भी प्रति पल कितना कुछ बदल रहा है. इन बदलावों के बीच कई लम्हे आनंद, तो कई परेशानियों से भरे होते हैं. बदलाव के घूमते चाक पर ऐसे ही कुछ लम्हों को गढ़ने की कोशिश की गयी है.
जब बदली सत्ता : जेठ का महीना. गरम हवा के थपेड़े. गांव की पगडंडिया धूप में सांप के केंचुल की तरह चमक रही है. दूर-दूर तक खाली खेत. गेहूं की फसल कट चुकी है. परती खेत में खुले बदन, आधी धोती पहने इक्का-दुक्का लोग दिख जाते हैं. जेठ की गरमी में सब कुछ अलसाया, ऊंघता हुआ-सा. पूरे माहौल में एक खामोशी. सुकूनदेह नहीं, बल्कि भांय-भांय करती. इन खेतों के बीच काम करते मिल जाते हैं माको काका. उनसे हाल पूछा. बताया, केंद्र में सरकार बदल गयी है. माको काका का चेहरा भावशून्य ही रहा.
मैंने फिर एक बार कुरेदा- काका कुछ बदलाव आया है? अबकी काका ने होंठ के नीचे दबायी खैनी थूकी. 65-70 साल की उम्र में उनकी आवाज कुछ दबी-दबी सी हो गयी थी. बोले- 50 साल हो गये. इन्हीं खेतों में काम कर रहा हूं. जब बुआई का समय आता है, बीज नहीं मिलता. बीज के दाम बढ़ जाते हैं. जब खाद डालने का समय आता है, तो ब्लैक में खाद खरीदते हैं. जब कटाई का समय आता है, तो फसल की कीमत सबसे कम होती है. 50 साल में कहां कुछ बदला. जवानी के दिनों में दिन-रात खटते थे, तो किसी तरह पेट भरता था. अब बुढ़ापे में दिन-रात खटते हैं, तो पेट किसी तरह भर जाता है. कहां है बदलाव? बदलाव तो अब देखना है मेरे बेटे सुरना को. देख ले, वह भी क्या है बदलाव..!
टीवी देखते हुए : एक आवाज उभरती है- अच्छे दिन आनेवाले हैं.. बगल में मेरी चार साल की बेटी खेल रही है. वह पूछती है- पापा, ये अच्छे दिन क्या होते हैं? कैसे आते हैं? मुङो भी चाहिए अच्छे दिन. मैंने कहा- अच्छे दिन ऐसे नहीं आते. जब उनका मन हो तभी आते हैं. बेटी बोली- ऐसे कैसे नहीं आयेगा अच्छे दिन. अच्छे दिन आने में बदमाशी करेगा तो पीटेंगे. कान पकड़ कर अच्छे दिन को अपने घर में ले आयेंगे.
चर्चा तो बनी रहती है : अब चर्चा तो कहीं भी शुरू हो जाती है. सुबह-शाम पार्क में घूमते हुए. ऑफिस में सहकर्मियों के साथ बैठे हुए. चाय पीते हुए, चाय की दुकान पर. इस सरकार के तेवर तो कुछ अलग दिख रहे हैं! , अभी से तेवर क्या देखना! , अजी कुछ दिन देख लीजिए, फिर दीजिएगा निर्णय!, नहीं, कुछ तो अलग दिख रहा है!- अब जितनी मुंह उतनी बातें. बुद्धिजीवी एक से एक तर्क पक्ष या विपक्ष में दे रहे हैं. लेकिन यह चाय दुकान पर गिलास धोनेवाला छोटू. 11 वर्ष की उम्र में भी उसी तल्लीनता से जूठे गिलास धो रहा है. लोगों के बीच चाय पहुंचा रहा है. अच्छे दिन आयेंगे के मसले पर बहस जारी है..