मोतिहारीः महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के (केविवि) लिए भू-अजर्न का काम नये भू-अजर्न नीति के पेंच में फंसा हुआ है. हालांकि केविवि के भू-अजर्न के लिए 275 करोड़ रुपये प्राप्त हो चुके हैं.
भू-अजर्न के लिए मिली चुकी है राशि
भू-अजर्न के लिए 17 अप्रैल 2013 को 100 करोड़, 30 जुलाई 2013 को 100 करोड़ और 18 दिसंबर 2013 को 75 करोड़ रुपये जिले को प्राप्त हो चुका है. केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए कुल 301.1 एकड़ भूमि अधिग्रहण करना है. इसके लिए भू-खंडों को चिह्न्ति किया जा चुका है और सूचना अधिघोषणा के स्वीकृति के लिए संचिका तिरहुत आयुक्त को भेजा गया था, लेकिन संचिका पुन: वापस कर दिया गया.
नयी भू-अजर्न नीति के तहत होगा अधिग्रहण
अधिग्रहण करने वाले जिन भू-खंडों का सूचना अधिघोषणा नहीं हो सका था, उन भू-खंडों का अधिग्रहण नये भू-अजर्न अधिनियम के तहत किया जायेगा. बताते हैं कि नया भू-अजर्न अधिनियम बिहार सरकार द्वारा जनवरी 2014 में पास कर दिया गया, लेकिन अब तक इसका नियमावली जिले को प्राप्त नहीं हुआ है. जब तक नया नियमावली प्राप्त नहीं होता है तब तक भू-अजर्न की प्रक्रिया पर अंकुश लगा रहेगा.
300 एकड़ भूमि का करना है अधिग्रहण
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए 301.1 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करना है. इसके लिए तीन गांवों के भूमि को चिह्न्ति किया गया है. बनकट में 72.90 एकड़, बैरिया में 124.97 एकड़ एवं फुर्सतपुर में 104.10 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करना है.
मिली राशि हो सकती है व्ययगत
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए प्राप्त राशि दो वर्ष बाद व्ययगत हो सकती है. नियमानुसार दो वर्ष के अंतराल में राशि मद में खर्च नहीं किया जाता है तो वह व्ययगत हो जाता है. जबकि पहली किस्त में प्राप्त 100 करोड़ अप्रैल 2013 में ही प्राप्त हुआ था. ऐसे में मार्च 2015 तक अगर भू-अजर्न की प्रक्रिया पूरी नहीं होती तो उक्त राशि व्ययगत हो जायेगा. इसी प्रकार अन्य किस्त में प्राप्त राशि को भी दो वर्ष के अंतराल में उपयोग में लाना होगा.
भू-अजर्न होती है लंबी प्रक्रिया
भू-अजर्न की प्रक्रिया भी बेहद लंबी होती है. भूमि चिह्न्ति करने के बाद सूचना अधिग्रहण के लिए आदेश प्राप्त करना होता है. पुन: सूचना दी जाती है और भूमि का मूल्यांकन किया जाता है. वहीं सामाजिक और आर्थिक रूप से भूमि अधिग्रहण के बाद भू दाताओं पर पड़ने वाले प्रभाव की समीक्षा विभिन्न संस्थाओं द्वारा करायी जाती है. तत्पश्चात नोटिस जारी किया जाता है और भूमि से संबंधित आपत्तियां ली जाती हैं. इसके बाद भू-अजर्न की कार्रवाई आगे बढ़ती है. ऐसे में इस लंबी प्रक्रिया को ससमय पूरा करना असंभव दिखता है.