प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों को ‘सुराज’ के दस सूत्र देते हुए निर्देश दिया है कि हर मंत्रलय सरकार के पहले 100 दिनों की प्राथमिकताएं तय करे. लंबित और पूरी होने के कगार पर पहुंच चुकी परियोजनाओं व कार्यक्रमों पर ध्यान देने की सलाह देते हुए प्रधानमंत्री ने अपने सहयोगियों को एक बार फिर यह याद दिलाया कि सरकार को लोगों के भरोसे पर खरा उतरना है.
तेरह वर्षो तक गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी इस बात को बखूबी समझते हैं कि लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार और राज्यों की सरकारों के बीच बेहतर तालमेल और सहभागिता एक आवश्यक शर्त है. इसलिए उन्होंने अपने मंत्रिमंडल को यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि राज्य सरकारों के पत्रों और उनकी मांगों को समुचित महत्व देते हुए तुरंत उनका सकारात्मक जवाब दिया जाये. देश के संघीय ढांचे और केंद्र-राज्य संबंधों को मजबूती देने की दिशा में यह एक सराहनीय पहल है. भारतीय संविधान में यह विषय स्पष्ट है, पर राजनीतिक खींच-तान और केंद्र के संवेदनहीन रवैये के कारण राज्यों के उचित राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों का हनन होता रहता है.
समन्वय, सहकारिता और सहभागिता पर आधारित देश की संघीय व्यवस्था अब तक केंद्र की मनमानी का शिकार रही है. केंद्र के इस रवैये के विरुद्ध राज्यों की सरकारों ने अक्सर अपना रोष और असंतोष जताया है. संवैधानिक विश्लेषकों ने बार-बार इस बात को रेखांकित किया है कि केंद्र व राज्यों के वित्तीय अधिकारों पर गंभीरता से पुनर्विचार की जरूरत है, क्योंकि इनका संतुलन केंद्र के पक्ष में है. इस असंतुलन के कारण राज्यों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. राज्यों की वैधानिक और न्यायपूर्ण मांगों को मानना तो दूर, कई दफा तो उन पर विचार करने से भी मना कर दिया जाता है.
यहां तक कि छोटी-छोटी मांगें भी अस्वीकार कर दी जाती हैं. बिहार, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के पिछड़ेपन के लिए केंद्र की असंवेदनशीलता काफी हद तक जिम्मेवार है. इस निर्देश से यह आशा बंधी है कि प्रधानमंत्री व केंद्र सरकार नेकनीयती से और बिना किसी राजनीतिक विद्वेष के बेहतर केंद्र-राज्य संबंधों की दिशा में आगे बढ़ेंगे.