जमशेदपुर कोर्ट परिसर मे गैंगवार हो जाना एक चिंताजनक घटना है. एक गुट हथियार के साथ दाखिल हो जाता है और दूसरा गुट जवाबी हमला करते हुए पुलिस की उपिस्थति में उन्हें मरणासन्न कर देता है. संभव है कि पुलिस की भी मिलीभगत हो, लेकिन यह जांच का विषय है. घटना के बाद मीडिया के समक्ष वकीलों ने सुरक्षा व्यवस्था की खामियां गिनायीं.
हर किसी ने सुरक्षा उपकरणों के खराब होने, जांच-पड़ताल ना होने और कम सिपाहियों के बारे में बताया और प्रशासन को जम कर कोसा. उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्हें ये सारी बातें अब जाकर मालूम हुईं. अगर पहले से जानकारी थी तो इसके लिए उन्होंने क्या कदम उठाये. कितने आवेदन और ज्ञापन दिये गये? दरअसल ‘चलता है तो चलने दो’ की प्रवृत्ति और दुर्घटना के बाद गाल बजाना अफसोसनाक है. यह मानसिकता बदलनी होगी.
राजन सिंह, ई-मेल से