बुधवार की रात आये भूकंप के झटके ने बिहार व झारखंड के लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर दी. शुक्र है कि जान-माल की कोई हानि नहीं हुई. ले-देकर इसका असर यह रहा कि लोग थोड़ी देर के लिए घबरा गये और बहुमंजिली इमारतों से उतर कर सड़कों पर चले आये.
भूकंप के आने का अर्थ उन्हें बखूबी पता है, जो गुजरात के भुज की तबाही से परिचित हैं. दुनिया के कई अन्य देशों में भी हाल के दिनों में भूकंप से तबाही मची थी. इसलिए धरती डोलने की इस प्राकृतिक घटना को सामान्य रूप से ले कर निश्चिंत होने की बजाये और ज्यादा सजग होने की जरूरत है. बिहार में तो खास तौर पर सजगता की जरूरत है, क्योंकि इसका एक बड़ा इलाका भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है. यह कड़वी सच्चई है कि प्राकृतिक आपदाएं (बाढ़, तूफान, सुनामी, भूकंप आदि) आती रही हैं और भविष्य में आ भी सकती हैं.
उन पर मनुष्य या आधुनिक विज्ञान का कोई नियंत्रण नहीं है. बाढ़ व सुनामी का तो पूर्व आकलन भी किया जा सकता है, लेकिन भूकंप को लेकर ऐसी कोई तकनीक अब तक विकसित नहीं हुई है, जो घटना के पूर्व इसकी सूचना दे. हां, कुशल प्रबंधन के जरिये ऐसी आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है. बुधवार की रात आये भूकंप के बाद राज्य में आपदा प्रबंधन के काम-काज की नये सिरे से समीक्षा और मूल्यांकन की जरुरत है. साथ ही कमियों को तलाश कर भविष्य के लिए कार्य योजना (भावी आपदा प्रबंधन) तैयार करने की भी जरूरत है.
भावी आपदा प्रबंधन की पहली शर्त है जागरूकता और प्रभावित क्षेत्र में तत्काल राहत एजेंसी की पहुंच की व्यवस्था. यदि लोगों में आपदा के प्रति जागरूकता नहीं है, तो तबाही भीषण होगी. आपदा संभावित क्षेत्र में लोगों को बचाव की बुनियादी जानकारी देकर भी आपदा से होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है. राज्य सरकार ने बड़े शहरों में भूकंपरोधी मकान बनाने का निर्देश जारी कर रखा है. यह देखने की भी जरूरत है कि आखिर सरकार की मनाही के बावजूद भूकंप से बचाव के इंतजाम किये बगैर मकानों के नक्शों को किस तरह स्वीकृति मिल रही है. यदि अनियोजित तरीके से कॉलोनियां विकसित होंगी, तो आपदा से नुकसान ज्यादा होगा.