संतोष कुमार सिंह
राजनीतिक दल की जिम्मेवारी है कि वे समाज के हर वर्ग के लोगों को शामिल करें. प्रत्येक पार्टी की स्थापना इसी उद्देश्य के साथ होती है कि समाज की भलाई हो. पार्टी के वरिष्ठ सदस्य सिद्धांतों को गढ़ते हैं. मानदंड स्थापित करते हैं, और उनके जरिये अगली पीढ़ी और हजारों-लाखों कार्यकर्ताओं तक पार्टी का सिद्धांत पहुंचता है.
जो भी युवा साथी पार्टी के साथ लंबे वक्त तक जुड़ा रहता है, साथ ही साथ दल के विचार सेवा से प्रभावित होते हैं. कांग्रेस तो काफी पुरानी पार्टी है. जिसकी लोगों के साथ जुड़ने की लंबी परंपरा रही है. हम हमेशा से ही युवाओं को तरजीह देते रहे हैं.
जब से राहुल गांधी की पार्टी में सक्रियता बढ़ी है, उन्होंने लगातार युवाओं और नये लोगों को पार्टी से जोड़ने का प्रयास किया है. उन्होंने इसकी शुरुआत युवा कांग्रेस, व पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआइ से की. पहले यह परंपरा थी कि बड़े नेताओं द्वारा इन संगठनों में अध्यक्ष मनोनित किया जाता था, और अध्यक्ष अपनी टीम बनाते थे. राहुल गांधी ने इस परंपरा में बदलाव लाते हुए चुनाव के जरिये इन संगठनों में भागीदारी को बढ़ावा दिया. इस कदम से हम संगठनात्मक तौर पर मजबूत हुए. हाल के दिनों में गुजरात, चंडीगढ़, पंजाब आदी राज्यों के विश्वविद्यालयों के चुनाव के नतीजे एनएसयूआइ के पक्ष में जाते हुए दिखे हैं. इस तरह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सूत्रपात हुआ. उन्होंने नेता चुनो, नेता बनो का नारा दिया. इसके जरिए हम युवाओं को जोड़ रहे हैं. जहां तक लोकसभा चुनाव का सवाल है, हमने 15 सीटों को प्राइमरी घोषित किया. यह पायलट प्रोजेक्ट के तर्ज पर शुरू किया गया है. इन सीटों पर जिला कांग्रेस कमिटी, महिला कांग्रेस, छात्र संगठन, कांग्रेस सेवा दल से बने इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए प्रत्यक्ष मतदान कर नये लोगों को चुनावी राजनीति में उतरने का मौका दिया गया है. हमने यह ख्याल रखा है कि पार्टी कैडर की टिकट वितरण में भूमिका हो.
यह सिर्फ एक दल की समस्या नहीं है. यह राजनीति की सच्चई बन गयी है. चुनाव के दिनों में बाहर से लोग आते हैं,और पार्टियां उनके जीत की संभावना को देखते हुए उम्मीदवारी दे देती हैं. लेकिन ऐसे में उन कार्यकर्ताओं को, पार्टी कैडर को जो कि पहले से ही पार्टी के साथ जुड़े रहते हैं, अच्छे-बुरे दिनों में पार्टी के उत्थान के लिए काम करते हैं,उनको पार्टी के फैसले से निराशा होती है. हमें इस स्थिति को बदलना होगा. हालांकि यह सिर्फ भारतीय राजनीति या एक दल तक सीमित नहीं है, दुनिया की राजनीति में भी ऐसा होता है.
जब तक देश में सबों का सहयोग नहीं मिलेगा, सबों को राजनीतिक प्रक्रिया के प्रति विश्वास नहीं बढ़ेगा, तब तक हम भ्रष्ष्टाचार, विकास, सामाजिक सौहार्द की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर पायेंगे. भाजपा को लगता है कि उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी सारे दुखों का इलाज करने में सक्षम हैं. वे लोग वोटों को पोलराइज करने के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काने से भी पीछे नहीं हटते. यही विपक्ष पर कोई तोहमत नहीं है. राजनीति में आने वाले लोगों को यह भी देखना चाहिए कि वे विपक्ष के बारे में अपनी बात किस तार्किक तरीके से रखते हैं.
शकील अहमद
शकील अहमद अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के महासचिव और प्रवक्ता हैं. वह अपनी बात बेहद तार्किक तरीके से रखते हैं और यही उनकी खासियत भी है.