आज से 43 साल पहले बांग्लादेश इतिहास में दर्ज भयावह नरसंहारों में से एक का साक्षी बना था. उस युद्ध अपराध को अंजाम देनेवालों पर आखिरकार मुकदमा चल रहा है. दो प्रमुख अभियुक्तों पर जल्द ही फैसला सुनाया जायेगा. अगर वे दोषी पाये गये, तो आलोचक निश्चित तौर पर यह दलील देंगे कि कोर्ट के फैसलों में राजनीति ने ज्यादा बड़ी भूमिका निभायी, न कि साक्ष्यों ने. जिन दो अभियुक्तों- मतिउर रहमान निजामी और दिलावर हुसैन सईदी पर जल्द ही फैसला आनेवाला है.
ये दोनों जमात-ए-इस्लामी के सदस्य हैं. जिन 15 लोगों को युद्ध अपराध का दोषी पाया गया है, वे सब अलग-अलग राजनीतिक दलों से संबंध रखते हैं. इनमें से 11 का रिश्ता बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी पार्टी से है, तो एक का संबंध बांग्लादेश नेशनल पार्टी से है. एक जातीय पार्टी से जुड़ा है, तो एक बांग्लादेश अवामी लीग से, जो कि अभी सत्ता में है.
बांग्लादेश की जनता विशेष तौर पर मुक्त समाज को बेहद मूल्यवान मानती है, क्योंकि इसने इसके लिए बड़ी कीमत चुकायी है. दशकों तक पाकिस्तान द्वारा भेदभाव का व्यवहार सहने के बाद पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के लोगों ने अपने स्व-निर्णय के अधिकार का प्रयोग करते हुए, 26 मार्च, 1971 को पाकिस्तान से आजादी की घोषणा की थी. पाकिस्तानी सेना ने बंगाली राष्ट्रीयता में यकीन करनेवाली बांग्लादेशी जनता पर अमानवीय अत्याचार किये. पाकिस्तानी सेना और इसके सहयोगियों द्वारा 30 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी मौत के घाट उतार दिये गये. बंगाली हिंदुओं पर तरह-तरह के अत्याचार ढाये गये. बंगाली महिलाओं के साथ बलात्कार हुए और उन्हें यौन दासी बना कर जबरन गर्भवती बनाया गया. लाखों-करोड़ों बांग्लादेशियों का भविष्य एक रात में बदल गया, जब उन्हें पड़ोसी मुल्क भारत में शरणार्थी बनने पर मजबूर होना पड़ा. बंगाली बुद्धिजीवियों को उनके जीवन से महरूम किया गया.
निजामी और सईदी पर गंभीर आरोप हैं. इन दोनों का बचाव सिर्फ इनकी राजनीतिक संबद्धता के कारण नहीं किया जा सकता. फिलहाल, जिस तरह की पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया चल रही, उसे देखते हुए लगता है कि ऐसा मुमकिन भी नहीं.
(यूएस न्यूज में तुरीन अफरोज की रिपोर्ट)