सासाराम प्रखंड की स्थिति उत्साहवर्धक नहीं
सासाराम कार्यालय : सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा). मनरेगा के तहत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना मुख्य उद्देश्य है. लेकिन, पिछले सात वर्षो में इस योजना का उतना लाभ ग्रामीण मजदूरों को नहीं मिल पाया है, जितना इसे लेकर अपेक्षाएं की गयी थीं.
रोहतास जिले के 19 प्रखंडों में मनरेगा द्वारा चयनित योजनाएं चल रही हैं. लेकिन, असल सवाल में मजदूरों को 100 दिनों का रोजगार देने का है, जो अबतक पूरा नहीं हो सका है. सासाराम प्रखंड की बात करें, तो पूरे वित्तीय वर्ष (2013-14) में 19 पंचायतों में मात्र 112 लोगों को ही 100 दिनों का रोजगार मिल सका, जबकि 36,596 जॉब कार्डधारी हैं. साथ ही, 1,72,950 मानव कार्य दिवस सृजित किये गये. ऐसे में जिले के अन्य प्रखंडों में मनरेगा की स्थिति क्या होगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. हालांकि, इस दौरान एक बात जो अच्छी नजर आयी है, वह है मनरेगा में मजदूरी भुगतान की नीति. दो वर्ष पूर्व तक जहां मनरेगा में मजदूरी भुगतान में मुखिया व पंचायत सेवकों की भूमिका काफी अहम होती थी.लेकिन, अब बैंकों द्वारा भुगतान होने से मजदूरों को काफी राहत मिली है.
जॉबकार्ड धारकों द्वारा अपनी मर्जी के बैंक में खाता खुलवा भुगतान प्राप्त किया जा सकता है. बावजूद योजनाओं का चयन व क्रियान्वयन में ग्राम पंचायत व पंचायत कार्यकारिणी की भूमिका होती ही हैं. यही कारण है कि ग्राम पंचायतों के अनावश्यक दखल से मनरेगा अपने वास्तविक उद्देश्यों में सफल होती नहीं दिख रही है. इसका नतीजा है कि मजदूरों को जॉबकार्ड मिल तो रहा हैं, लेकिन काम नहीं और यदि काम मिल भी रहा तो 25 से 30 दिनों का.