मुजफ्फरपुर: देश में विकास का वही मॉडल सफल हो सकता है, जिसमें जनता की भागीदारी हो. सरकार यह नहीं करती, वह नहीं करती, कहने से कुछ नहीं होगा. यह पराश्रय मॉडल की निशानी है. इससे विकास की परिकल्पना बेमानी है.
यह बातें एन सिन्हा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल स्टडी के निदेशक प्रो डीएम दिवाकर ने कही. वे शुक्रवार को बिहार विवि के एकेडमिक स्टाफ कॉलेज (एएससी) में बीबीसी हिंदी के तत्वावधान में आयोजित कैंपस हैंग आउट में छात्रों के सवालों का जवाब दे रहे थे. विषय था, बिहार का मॉडल बनाम गुजरात का मॉडल. डेढ़ घंटे तक चले इस कार्यक्रम में छात्रों ने शिक्षा, महिला सुरक्षा, औद्योगिक नीति व बिजली के बिहार व गुजरात मॉडल पर अपनी राय रखी.
बिहार व गुजरात के विकास में तुलना करते हुए प्रो दिवाकर ने कहा, नरेंद्र मोदी से पहले से गुजरात में विकास है. वहां के बंदरगाहों के कारण पहले से सौदागरों (व्यापारियों) का पैसा गुजरात आता रहा है. बिहार ने भी विगत दस सालों में विकास किया है, पर उसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच सका है. शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक सुधार की जरूरत है. शिक्षा का अधिकार कानून का सफल नहीं होने के लिए उन्होंने केंद्र की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया.
एक छात्र ने गुजरात की तरह बिहार में भी दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में विकास की संभावनाएं जतायी. प्रो दिवाकर ने कहा, गुजरात में इस क्षेत्र में विकास हुआ है, वह वहां की सरकार के कारण नहीं, सीटी कूरियन के अमूल आंदोलन का नतीजा है. बिहार में भी सुधा कुछ ऐसा ही प्रयास कर रही है. कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्रओं की राय पर बीबीसी के फेसबुक व ट्वीटर पर देश भर से मिल रहे कमेंट से बीबीसी की सोशल मीडिया की प्रभारी पारुल अग्रवाल लोगों को सीधे रू-ब-रू भी करा रही थी. एंकर की भूमिका मोहन लाल शर्मा ने निभायी. मौके पर एएससी के निदेशक डॉ एसएन तिवारी, डॉ ललन कुमार झा सहित अन्य गण्यमान्य लोग मौजूद थे.