हमारे अधिकांश नेता खुद को युवाओं का मार्गदर्शक बताते हैं. बड़े-बड़े दावे करनेवाले नेता खुद को देश का उत्तराधिकारी मान बैठते हैं, लेकिन उनकी वास्तविकता जनता के सामने तब आती है, जब वे मंच पर खड़े होते हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो सदा से चलता आ रहा है, लेकिन हमें लगता है कि पहले लोग शिष्टाचार का पालन करते थे. आज किसी पर व्यक्तिगत लांछन लगाने से लोग जरा भी नहीं हिचकते.
इसका असर आम जनता पर उनके खिलाफ ही पड़ता है. चुनाव में ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करने के लिए नेता एक-दूसरे की टांग चाहे जितनी क्यों न खींच लें, लेकिन जनता का दिल तो वही जीतेगा जो सबसे लायक होगा. भोली-भाली जनता अपने नेता की हर कारस्तानी याद रखती है. अगर नेता ही शिष्टाचार का पालन नहीं करेंगे, तो जनता को कैसे प्रेरित करेंगे.
सैयद इमरान, मोरहाबादी, रांची