रांचीः दुमका विस्फोट की घटना की समीक्षा एक ओर पुलिस के वरीय अधिकारी कर रहे हैं, वहीं पुलिस और प्रशासन की लापरवाही का एक और मामला सामने आया है. जिस फोर्स को नक्सलियों ने निशाना बनाया, वे दो जगहों पर तैनात किये गये थे. एक पुलिस पदाधिकारी और चार पुलिसकर्मी की तैनाती सेक्टर मजिस्ट्रेट के साथ की गयी थी, जबकि चार पुलिसकर्मियों की तैनाती बूथ संख्या 101 पर की गयी थी. बूथ संख्या 100 पर पर सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती की गयी थी, जो पैदल चल कर शिकारीपाड़ा पहुंचे थे.
प्रशासन ने सेक्टरल मजिस्ट्रेट को बस भी उपलब्ध करा दी थी, यह सबसे बड़ी गलती हुई. नक्सल प्रभावित इलाके में सेक्टर मजिस्ट्रेट को वाहन नहीं दिया जाता है. उन्हें घूम- घूम कर इवीएम एकत्र करने की भी जरूरत नहीं थी. आमतौर पर नक्सल प्रभावित इलाके में तैनात सेक्टरल मजिस्ट्रेट थाना पर या किसी बूथ पर रहते हैं और पैदल ही निकट सुरक्षित स्थान तक पहुंचते हैं. प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने यहां चूक की कि सिर्फ बस ही नहीं दिया.
साथ में फोर्स की तैनाती भी कर दी. लौटते वक्त बस सेक्टरल मजिस्ट्रेट के साथ तैनात फोर्स के अलावा बूथ नंबर 101 पर तैनात चार जवान भी बस में सवार हो गये. जबकि इसी बूथ पर तैनात सीआरपीएफ के जवान पैदल निकले.