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इस लोकतंत्र का भविष्य क्या है?

।। शैलेश कुमार।। (प्रभात खबर, पटना) वाह, क्या मौसम है! सितारे जमीन पर उतर आये हैं. आम जनता के सामने नतमस्तक हैं, क्योंकि बात वोट की है. जी हां, यह चुनाव का मौसम ही कुछ ऐसा है. अब तक देश ने 15 लोकसभा चुनाव देखे और अब 16वां आम चुनाव चल रहा है. कहा जा […]

।। शैलेश कुमार।।

(प्रभात खबर, पटना)

वाह, क्या मौसम है! सितारे जमीन पर उतर आये हैं. आम जनता के सामने नतमस्तक हैं, क्योंकि बात वोट की है. जी हां, यह चुनाव का मौसम ही कुछ ऐसा है. अब तक देश ने 15 लोकसभा चुनाव देखे और अब 16वां आम चुनाव चल रहा है. कहा जा रहा है कि यह चुनाव अब तक के सभी चुनावों से सबसे अलग है. यह सच भी है, क्योंकि इससे निम्न स्तर का आम चुनाव देश ने कभी नहीं देखा.

इस चुनाव में ऐसी परंपराएं शुरू हुई हैं, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने शायद कभी नहीं की होगी. यह पहला मौका है, जब चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री पद को ले कर इतने निम्न स्तर की राजनीति हुई है कि लोकतंत्र में आस्था ही डगमगा जाये. जिस देश में चुनाव से पहले प्रधानमंत्री उम्मीदवारों को फेकू, पप्पू और भगोड़ा की संज्ञा दी जा रही है, ऐसे में इनमें से किसी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस पद की गरिमा आखिर क्या रह जायेगी? सोशल मीडिया पर इन उम्मीदवारों के बारे में चुटकुले और काटरून आम बन गये हैं.

इनके मजेदार वीडियो आग की तरह देश-दुनिया में भी फैल गये हैं. टेलीविजन पर प्रसारित होनेवाले सास-बहू सीरियल्स के टीआरपी गिर गये हैं और यहां तक कि आइपीएल भी टीआरपी बटोरने में खुद को असहाय पा रहा है. हर ओर चर्चा है तो बस इस बात की कि आज फेकू ने क्या बोला? पप्पू ने आज किसको कहां कैसे पप्पू बनाया? भगोड़े का अगला कदम क्या है? कहा जा रहा है कि इस चुनाव में युवाओं की भूमिका अहम रहेगी. ठीक ही तो कहा जा रहा है. आखिर वे युवा ही तो हैं, जिन्हें फिल्मों, गेम्स, चैटिंग और आइपीएल से ज्यादा मजा नेताओं की बयानबाजी सुनने में आ रहा है. जिसके जो मन में आये बोल रहा है और चुनाव आयोग चेतावनी व नोटिस देते-देते परेशान है.

आखिर आयोग क्या-क्या करे? इतने बड़े देश में चुनाव कराना ही बहुत बड़ी बात है. चुनाव में अपनी जीत का दावा कर रहे नेता यह नहीं बता रहे हैं कि वे महंगाई को कैसे रोकेंगे? भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे लगायेंगे? किसानों को आत्महत्या करने से कैसे रोकेंगे? बाढ़ और सूखे की समस्या से कैसे निबटेंगे? लेकिन उनका प्रतिद्वंद्वी सरकार चलाने के काबिल नहीं है, यह साबित करने में वे बड़े आगे नजर आ रहे हैं. तभी तो वर्षो पुराने टेप निकाल कर किसी को विनाशकारी बताया जा रहा है, तो किसी महिला नेता पर दारू पीने और उसके पति को फायदा पहुंचाने के आरोप लगा कर उसके चरित्र पर कीचड़ उछाला जा रहा है. किसी की बीवी को ले कर सवाल उठाये जा रहे हैं, तो कोई किसी खास संप्रदाय से सांप्रदायिक बनने की अपील कर रहा है. कुल मिला कर चुनाव के समय देश में एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी गयी है कि मतदाता किंकर्तव्यविमूढ़ से नजर आ रहे हैं. लोकतंत्र के नाम पर वे वोट जरूर डाल रहे हैं, लेकिन मन में शंका यही है कि इस लोकतंत्र का भविष्य क्या है?

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