20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मतदान प्रतिशत बढ़ना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत, भारत कई देशों से फिर भी पीछे

-धर्मेन्द्रपाल सिंह – ।।वरिष्ठ पत्रकार।। पिछले 37 सालों में दुनिया में मात्र 33 देश ऐसे हैं, जहां लोकतंत्र नियमित रूप से जिंदा है. लोकतंत्र के झंडाबरदार देशों की इस फेहरिस्त में हिंदुस्तान भी शामिल है और यह तथ्य हमारी मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रमाण है. पिछले 67 वर्षो से हम निरंतर मतदान के माध्यम से […]

-धर्मेन्द्रपाल सिंह –

।।वरिष्ठ पत्रकार।।

पिछले 37 सालों में दुनिया में मात्र 33 देश ऐसे हैं, जहां लोकतंत्र नियमित रूप से जिंदा है. लोकतंत्र के झंडाबरदार देशों की इस फेहरिस्त में हिंदुस्तान भी शामिल है और यह तथ्य हमारी मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रमाण है. पिछले 67 वर्षो से हम निरंतर मतदान के माध्यम से सरकार चुनते और बदलते आ रहे हैं. जिन 33 देशों का जिक्र हमने ऊपर किया है, उनमें अधिकतर संपन्न हैं. हमारे यहां साक्षरता स्तर भी अभी केवल 73 फीसदी है. इसके बावजूद जनता को अपने वोट की ताकत का अंदाजा है. 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा कर ‘लोकतंत्र का गला घोटने’ का प्रयास किया था. जनता ने उन्हें और कांग्रेस पार्टी को इसका मजा चखा दिया. जनता पार्टी को अभूतपूर्व जन समर्थन मिला और पार्टी ने रिकॉर्ड 52.7 प्रतिशत वोट पाये. इसके अलावा अब तक के लोकसभा चुनावों में देश में किसी पार्टी को कभी पचास फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिले हैं.

इस बार आम चुनाव में भारी मतदान हो रहा है. अब तक के आंकड़ों के आधार पर इस बार रिकॉर्ड मतदान होने की उम्मीद जतायी जा रही है. कई जगह तो मतदान में 20 फीसदी या इससे भी ज्यादा बढ़ोतरी की खबर है. आम धारणा है कि जब वोटिंग ज्यादा होती है, तब मौजूदा सरकार बेदखल हो जाती है. हालांकि यह बात सदैव सच नहीं होती. मसलन, गुजरात में पिछले तीन बार के विधानसभा चुनावों में मतदान का प्रतिशत बढ़ा, लेकिन हर बार भारतीय जनता पार्टी जीती.

मतदान का दावा और हकीकत

हमारे देश में लोकसभा चुनाव में मतदान 60 फीसदी के आसपास होता है, लेकिन इस आंकड़े पर घमंड नहीं किया जा सकता. दुनिया में 90 फीसदी से ज्यादा मतदान दिखानेवाले कई देश हैं. हालांकि अनेक देशों के तानाशाह या सैनिक शासक अपनी झूठी लोकप्रियता का ढिंढोरा पीटने के लिए शत-प्रतिशत मतदान का दावा करते हैं. सद्दाम हुसैन ने वर्ष 2002 में इराक के आम चुनाव में सौ फीसदी मतदान का दावा किया था. अब भी उरूग्वे (96.1 प्रतिशत), इक्वाडोर (90.8 प्रतिशत), उज्बेकिस्तान (89.8 प्रतिशत), रवांडा (89.2 प्रतिशत), अर्जेटीना (77.2 प्रतिशत), ब्राजील (77.3 प्रतिशत), इराक (75.5 प्रतिशत), फ्रांस (71.2 प्रतिशत) तथा श्रीलंका (70 प्रतिशत) आदि मतदान प्रतिशत के मामले में हमसे कहीं आगे हैं. अमेरिका को अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गर्व है, लेकिन सरकार बनाने में जन-भागीदारी या मतदान के मोरचे पर दुनिया के 58 देश उससे आगे हैं.

20वीं सदी से पहले के हालात

20वीं सदी से पहले बड़ी संख्या में दुनिया के देश उपनिवेशवाद की बेड़ियों में जकड़े थे. यूरोप के चुनिंदा मुल्कों ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों को गुलाम बना रखा था. भारत पर भी ब्रिटेन का राज था. राज करनेवाले राष्ट्र गुलाम देश के संसाधनों और जनता का जम कर शोषण करते थे. अनेक देशों में गुलामी जैसा घिनौना रिवाज लागू था. मंडी में जानवरों की तरह गुलाम खरीदे-बेचे जाते थे. महिलाओं को बराबरी का दर्जा हासिल नहीं था. तब सभी के पास वोटिंग का अधिकार होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

मिला मतदान का अधिकार

उपनिवेशवाद समाप्त होने के बाद धीरे-धीरे दुनिया के ज्यादातर देशों में हर नागरिक को मतदान का अधिकार मिला. 20वीं सदी के मध्य तक दुनियाभर में मतदान में बढ़ोतरी का रुख देखा गया. नागरिकों ने अपनी वोट की ताकत को पहचाना. नेताओं ने व्यापक जन-संपर्क कर जनता से वोट मांगने की कला विकसित की.

1948 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी हैरी ट्रूमेन ने दावा किया- ‘चुनाव के दौरान मैंने पांच लाख लोगों से हाथ मिलाया और 31,000 मील का सफर तय किया.’

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) समाप्त होने के बाद दुनिया में आजादी का झोंका आया. ज्यादातर देश गुलामी की काली परछाई से बाहर निकले. पूरी दुनिया दो खेमों में बंट गयी. एक तरफ अमेरिका के नेतृत्व में साम्राज्यवादी पश्चिमी यूरोप के विकसित देश थे, दूसरी तरफ सोवियत संघ की अगुआई में पूर्वी यूरोप, चीन और क्यूबा जैसे समाजवादी राष्ट्र थे. साम्राज्यवादी देशों में बहुदलीय प्रणाली थी, जबकि समाजवादी राष्ट्रों में किसान-मजदूरों के नेतृत्व वाली पार्टी का राज था.

तीसरे मोरचे में भारत

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गुटनिरपेक्ष देशों का तीसरा मोरचा खड़ा किया, जिसका झुकाव समाजवादी खेमे की ओर था. यहां भी जनता को वोट के जरिये अपनी सरकार चुनने का अधिकार मिला. पर 20वीं सदी का अंतिम दशक आते-आते विश्व की इस व्यवस्था ने फिर करवट ली. सोवियत संघ का पतन हुआ और अमेरिका दुनिया की एकमात्र महाशक्ति रह गया. दुनियाभर में अमेरिकी बाजार का वर्चस्व कायम होने से पूरी दुनिया पर बाजार आधारित खुली अर्थव्यवस्था लागू करने का दबाव बढ़ा. सरकार बनाने में वोट का रिवाज तो रहा, लेकिन चुनाव-व्यवस्था में जन-भागीदारी घटती गयी. उसी का नतीजा है कि पिछले चार दशक में दुनिया में मतदान औसत पांच प्रतिशत घट गया है.

लोकतंत्र को जिंदा रखने और जन-भागीदारी बढ़ाने के लिए अब नये-नये प्रयोग किये जा रहे हैं. मौजूदा दौर में चुनाव लड़ना आम आदमी के वश की बात नहीं है. आज चुनाव पर बेइंतहा पैसा खर्च होता है, जिसका बोझ मुट्ठी भर धनपति और बड़ी पार्टियां ही उठा सकती हैं. आम आदमी तो वोट डालने की औपचारिकता ही निभाता है.

कुछ देशों में मतदान अनिवार्य

मतदान के प्रति आम जनता में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होने और घटते मतदान को देखते हुए दुनिया के कुछ देशों में कानूनन मतदान अनिवार्य कर दिया गया है. इससे मतदान प्रतिशत तो बढ़ गया, लेकिन जन- भागीदारी में इजाफा नहीं हो पाया है. पिछले तीन दशकों में दुनियाभर में जन- सरोकार से जुड़े संगठन कमजोर पड़ गये हैं. छात्र संगठनों, मजदूर संगठनों, राजनैतिक दलों, पेशेवर संस्थाओं की सदस्यता घटी है. राजनीति के प्रति जनता में स्थायी उदासीनता का भाव घर करता जा रहा है. हालांकि, जब किसी देश में सरकार का जुल्म बढ़ जाता है, तब लोग एकजुट हो वोट कर उसे बेदखल जरूर कर देते हैं. हमारे देश में भी ऐसा ही होता रहा है.

किसी चुनाव में कितना मतदान होगा, इसका आकलन करने के लिए राजनीति के धुरंधरों और शोधार्थियों ने एक फामरूला विकसित किया है. फामरूला इस प्रकार है :

पी बी + डी > सी

पी का अर्थ है प्रोबेबिलिटी (संभावना) : मतलब यह कि किसी व्यक्ति का वोट चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की जितनी ताकत रखता है, मतदान उतना अधिक होता है. इसीलिए छोटे संगठनों में मतदान ज्यादा होता है. जब जनता बदलाव चाहती है या किसी सरकार या व्यक्ति को बनाये रखना चाहती है, तब भी वह मतदान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती है.

बी का अर्थ है बेनिफिट (लाभ): हर व्यक्ति, समुदाय और समूह अपनी पसंद के प्रत्याशी या पार्टी की जीत से होने वाले लाभ का अनुमान लगाकर वोट करता है. जितना ज्यादा लाभ नजर आता है, मतदान का प्रतिशत भी उतना बढ़ जाता है.

डी का अर्थ है डेमोक्रेसी (लोकतंत्र) : शुरू में इसे लोकतंत्र या सिविल सोसाइटी का सूचक समझा जाता था. यानी देश या समाज में लोकतंत्र की जड़ें जितनी गहरी होंगी, मतदान उतना अधिक होगा. अब इसे संतोष के अर्थ में जाना जाता है. मतदान करने से व्यक्ति को संतोष भी मिलता है. जितना ज्यादा संतोष मिलेगा, उतने अधिक वोट पड़ेंगे. इसी कारण कई बार भले और ईमानदार प्रत्याशी या पार्टी को जिताने के लिए लोग बड़ी संख्या में वोट डालते हैं. इससे उन्हें संतोष मिलता है.

सी का अर्थ है कॉस्ट (कीमत) : मतदाता वोट डालने पर लगने वाले समय, प्रयास और आर्थिक व्यय का आकलन करता है. इसके बाद ही वह मतदान करता है.

निष्कर्ष : हर व्यक्ति चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की अपनी हैसियत, वोट डालने से मिलने वाले लाभ और संतोष की तुलना वोट डालने में लगने वाले श्रम, समय और धन से करता है. जब वोट डालने से मिलनेवाला लाभ और संतोष ज्यादा होता है, तभी वह घर से निकल कर मतदान केंद्र तक जाता है और लाइन में लग कर वोट डालता है.

देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से लगातार सरकार गठित हो रही है पिछले 37 वर्षो से.

फीसदी मतदान हुआ है उरुग्वे में आयोजित चुनावों के दौरान, जिसे दुनिया में सर्वाधिक माना जाता है.

फीसदी के आसपास होता है मतदान हमारे देश में लोकसभा चुनावों के दौरान.

फीसदी तक बढ़ोतरी होने का अनुमान है मौजूदा आम चुनावों के मतदान में देश के कई इलाकों में.

फीसदी से ज्यादा वोट पूरे देश में अभी तक केवल जनता पार्टी की सरकार को मिल पायी है.

वोट नहीं तो वेतन नहीं!

आज दुनिया के अनेक देशों में मतदान कानूनन अनिवार्य कर दिया गया है. हमारे देश में भी अकसर यह व्यवस्था लागू करने की बात की जाती है. इटली के संविधान में हर नागरिक को मतदान में भाग लेने की हिदायत दी गयी है. ऑस्ट्रेलिया में 1920 से अनिवार्य मतदान का नियम लागू है. मेक्सिको, ब्राजील, बेल्जियम, यूनान और हॉलैंड में भी प्रत्येक नागरिक के लिए चुनाव में वोट डालना जरूरी है.

कुछ देशों ने वोट न डालने पर दंड देने का प्रावधान भी लागू कर रखा है. बोलिविया में जब कोई मतदाता चुनाव में वोट नहीं डालता, तो उसका तीन माह का वेतन काट लिया जाता है. कुछ देशों पर जाली वोट डलवा कर ऊंचा मतदान दिखाने का आरोप भी लगता है. यह आरोप अकसर उन देशों पर लगता है, जहां के शासक तानाशाह हैं. इसलिए ऊंचे वोट प्रतिशत को सदा स्वस्थ लोकतंत्र या सच्ची जन-भागीदारी की गारंटी नहीं माना जा सकता.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें