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भाजपा का किला भेदने की कोशिश

रायपुर:छत्तीसगढ़ की रायपुर लोकसभा सीट 18 सालों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ है. भाजपा के इस सुरक्षित किले को भेदने के लिए कांग्रेस ने अब निष्क्रियता बनाम सक्रियता का नारा दिया है. कांग्रेस के मुताबिक, मौजूदा सांसद निष्क्रिय हैं और जनता इस बार सक्रियता को चुनेगी. हालांकि, मौजूदा सांसद रमेश बैस का दावा […]

रायपुर:छत्तीसगढ़ की रायपुर लोकसभा सीट 18 सालों से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ है. भाजपा के इस सुरक्षित किले को भेदने के लिए कांग्रेस ने अब निष्क्रियता बनाम सक्रियता का नारा दिया है. कांग्रेस के मुताबिक, मौजूदा सांसद निष्क्रिय हैं और जनता इस बार सक्रियता को चुनेगी. हालांकि, मौजूदा सांसद रमेश बैस का दावा है कि वह फिर जीतेंगे. वर्ष 1989 में भाजपा प्रत्याशी रमेश बैस ने गांधीवादी नेता और कांग्रेस प्रत्याशी केयूर भूषण को पहली बार यहां हराया था. 1991 में बैस चुनाव हार गये और कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ल यहां से सांसद चुने गये.

1996 में फिर बैस जीते और तब से रायपुर के सांसद हैं. एक बार फिर भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है, तो कांग्रेस ने काफी ऊहापोह के बाद सत्यनारायण शर्मा को उतारा है. शर्मा रायपुर जिले के मंदिर हसौद विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक विधायक रहे और अब रायपुर ग्रामीण से विधायक हैं. वह क्षेत्र के मतदाताओं से लगातार व्यक्तिगत संपर्क के लिए जाने जाते हैं.

कई गुटों में बंटी है कांग्रेस
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कई गुटों में बंटी है. इसका असर रायपुर में भी हुआ है. रायपुर कुर्मी बहुल इलाका है और बैस कुर्मी समाज से हैं. कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल समेत अन्य नेताओं का मानना था कि कुर्मी नेता को ही इस सीट पर टिकट दिया जाना चाहिए. यही कारण है कि सबसे पहले इस सीट से छाया वर्मा को उम्मीदवार बनाने का फैसला किया गया, लेकिन अंतत: शर्मा को यहां से टिकट दिया गया. राज्य में कांग्रेस नेताओं का मानना है कि जातिगत राजनीति में यहां भाजपा को फायदा हो सकता था, लेकिन वह अब इस सीट को निष्क्रियता बनाम सक्रियता की लड़ाई के रूप में लड़ रहे हैं.

भाजपा को वोट नहीं देगी जनता
कांग्रेस कांग्रेस में मीडिया विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी कहते हैं कि बैस लंबे समय से क्षेत्र के सांसद हैं. कभी जातिगत वोटों के आधार पर तो कभी ‘अटल बिहारी जरूरी है, रमेश बैस मजबूरी है’ के नारों के नाम जीतते हैं. इस बार भी भाजपा यहां ‘नरेंद्र मोदी जरूरी, रमेश बैस मजबूरी है’ के नारे लग रहे हैं. लेकिन जनता अब मजबूरी में भाजपा को वोट नहीं करेगी. त्रिवेदी कहते हैं कि जनता रमेश बैस को चुनती है और बैस पांच साल तक अगले चुनाव का इंतजार करते हैं, जबकि सत्यनारायण शर्मा की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है.

बैस ने खारिज किये कांग्रेस के आरोप
इधर, बैस निष्क्रयता के आरोपों को नकारते हुए कहते हैं कि रायपुर में उम्मीदवार तय करने को लेकर कांग्रेस परेशान है. जब हार के डर से लोगों ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया, तब शर्मा को उम्मीदवार बनाया गया है. ऐसे में समझा जा सकता है कि इस क्षेत्र में कांग्रेस की क्या स्थिति है. बहरहाल, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के उम्मीदवार अपनी-अपनी जीत की दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन उनकी किस्मत का फैसला अंतत: मतदाता ही करेंगे.

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