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सिर्फ जाति ही पूछो राजस्थान में

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे विधानसभा चुनाव की सफलता को लोकसभा चुनावों में भी दोहराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. राजस्थान में दो चरणों में चुनाव होने है. पहले चरण में 17 अप्रैल को 20 लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों की किस्मत इवीएम में बंद हो चुकी है. 24 अप्रैल को पांच सीटों […]

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे विधानसभा चुनाव की सफलता को लोकसभा चुनावों में भी दोहराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. राजस्थान में दो चरणों में चुनाव होने है. पहले चरण में 17 अप्रैल को 20 लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों की किस्मत इवीएम में बंद हो चुकी है. 24 अप्रैल को पांच सीटों पर वोट पड़ेंगे. हर राज्य की तरह राजस्थान भी जाति रोग से अछूता नहीं है. हर राज्य की तरह यहां भी किसी भी पार्टी ने इस रोग की दवा करने की कोशिश नहीं की. सभी ने इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया. इस चुनाव में वसुंधरा राजे भले ही अपने भाषणों में कहती रहें कि इस बार का चुनाव न जाट, न मीणा, न राजपूत, न हिंदू और न ही मुसलिम के आधार पर लड़ा जा रहा है. इस बार का चुनाव राजस्थान के विकास और नरेंद्र मोदी नाम पर लड़ा जा रहा है.

लेकिन उनके इरादे बताते हैं कि जातियों को घेरने में और भाजपा से नाराज चल रही जातियों को अपने पाले में लाने के लिए उन्होंने हर कदम उठाए हैं. बाड़मेर की एक सभा में वह जाति को छोड़ कर विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कर रही थीं, वहीं पर राजपूत, मुसलिम, माली और जैन समूदाय के राज्य मंत्री बैठे हुए थे और मेघवाल, सैन, रेबारी, ब्राह्मण, सिंधी और जाट समुदाय के विधायक भी मौजूद थे. उन सभी को पूर्व भाजपा नेता जसवंत सिंह की हार सुनिश्चित करने का टास्क दिया गया है. भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर जसवंत सिंह निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे हैं. इस वजह से भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया है. इस निर्वाचन क्षेत्र में मोदी लहर की आड़ में वसुंधरा एक ऐसा जातिगत समीकरण बनाने में जुटी हैं जिससे जसवंत सिंह की हार तय हो. इसके तहत उन्होंने जाटों को अपने पक्ष में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. शुरू में तो यह लड़ाई सिंधिया (वसुंधरा) और मेवाड़ राजपूतों (जसवंत) की पुरानी लड़ाई की तरह ही दिख रही थी.

अपने मिशन 25 को पूरा करने के लिए वसुंधरा सिर्फ जाति का ही ध्यान नहीं रख रही हैं, वह लोगों को हर प्रकार से प्रभावित करने की कोशिश भी कर रही हैं. जैसे, अजमेर से सचिन पायलट उम्मीदवार हैं. लोकप्रिय नेता हैं. उनके खिलाफ वसुंधरा ने जाट प्रत्याशी सनवरलाल जाट को मैदान में उतारा है. वहां प्रचार यह किया गया कि केंद्र में भाजपा की ही सरकार बनेगी. इसलिए जाटों की आवाज को सोनेलाल ज्यादा मजबूती से उठाएंगे. इसके साथ ही भाजपा की सरकार होने की वजह से सोनेलाल अजमेर के विकास के लिए ज्यादा पैसा लाने में सफल होंगे. इसके साथ ही उन्होंने अपने विधायकों से यह कह रखा है कि जिसके निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा को सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे उसे राज्य मंत्री बनाया जाएगा. राजे की छवि भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्रियों शिवराज सिंह चौहाण और रमण सिंह जैसी नहीं है. फिर भी अगर अपने ‘मिशन 25’ के तहत उन्हें 20 से ज्यादा सीटें मिलती हैं तो नरेंद्र मोदी को उन्हें नजरअंदाज करना आसाननहीं होगा.

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