सरकारी स्कूलों में नामांकन की रफ्तार काफी कम, नवनियोजित शिक्षक शहर में चाहते हैं पोस्टिंग
पटना : शिक्षक तो हैं, पर बच्चे ही नहीं आते हैं. ऐसे में गुरुजी करें भी तो क्या. न तो क क्षा है और न ही उसमें पढ़ने वाले बच्चे हैं. यह हाल है राजधानी के विद्यालयों का. अदालतगंज स्थित राजकीयकृत जेडी बालिका उच्च विद्यालय दो कमरे में हैं.
वहां पढ़नेवाली छात्राओं की संख्या मात्र 28 है, लेकिन 17 शिक्षक कार्यरत हैं. ऐसे में शिक्षकों को बच्चों का इंतजार करना पड़ता है. आधे से अधिक शिक्षक मजबूरी में बिना क्लास लिये ही घर लौट जाते हैं. यह तो एक बानगी है, जबकि कई स्कूलों में शिक्षकों की संख्या ही अधिक है.
शहरी क्षेत्र में रहने की चाहत : राजधानी के कई स्कूलों में बच्चों की तुलना में ज्यादा शिक्षक हैं. इन स्कूलों में नयाटोला का पीएन एंग्लो संस्कृत विद्यालय, लालजी टोला का महिला कला विद्या भवन, कदमकुआं का बापू स्मारक महिला उच्च विद्यालय व स्टूडेंट्स साइंटिफिक उच्च विद्यालय, बोरिंग रोड स्थित राजकीय कन्या उच्च विद्यालय व दरियापुर का मॉडर्न रात्रि उच्च विद्यालय शामिल हैं.
बच्चे कम होने से कई शिक्षकों को बिना पढ़ाये ही लौट जाना पड़ता है. एक विद्यालय के प्राचार्य की मानें तो नवनियोजित शिक्षकों की ऐच्छिक नियुक्ति के कारण शहरी क्षेत्र के विद्यालयों में उनकी पोस्टिंग की गयी है, जबकि वहां पहले से ही पर्याप्त शिक्षक हैं. कुछ शिक्षक रिटायरमेंट एज में होने से अन्य विद्यालय में जाना नहीं चाहते हैं. इन कारणों से कई विद्यालयों में छात्र से अधिक शिक्षक की संख्या हो गयी है.
एक तो नामांकन कम, ऊपर से गैरहाजिर : उधर, राजकीयकृत जेडी बालिका उच्च विद्यालय की शिक्षिका सुजाता कहती हैं कि विद्यालय में बच्चियों की संख्या बहुत कम है. हर वर्ष 30-35 छात्राओं का ही नामांकन हो पाता है. उनमें भी महज 20-22 बच्चियां ही पढ़ने आती हैं. वहीं पीएन एंग्लो में शिक्षक व शिक्षिकाओं की संख्या 40 है, जबकि छात्र-छात्राओं की संख्या 150 है. स्टूडेंट्स साइंटिफिक उच्च विद्यालय का भी कुछ ऐसा ही हाल है. इस स्कूल में 100 बच्चों पर 15 शिक्षक कार्यरत हैं. इसी तरह, राजकीय कन्या उच्च विद्यालय में पहले छात्राओं की संख्या 500-600 थी, वहीं अब घट कर 150 रह गयी हैं. इसके पीछे विद्यालय का एक स्थान से दूसरे स्थान में शिफ्ट होना बताया जा रहा है.