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नये चीन का अभ्युदय

-यथार्थवादी नेता डेंग शिआओ पिंग- ।। रवि दत्त बाजपेयी।। माओ के शासन के दौरान आर्थिक सुधारों के पक्षधर डेंग शिआओ पिंग ने कहा, ‘बिल्ली काली है या सफेद इसका तब तक कोई मतलब नहीं, जब तक कि वह चूहे पकड़ रही हो.’ डेंग के इस कथन को अक्षम्य अपराध मान कर माओ ने उन्हें गुमनामी-बदहाली […]

-यथार्थवादी नेता डेंग शिआओ पिंग-

।। रवि दत्त बाजपेयी।।

माओ के शासन के दौरान आर्थिक सुधारों के पक्षधर डेंग शिआओ पिंग ने कहा, ‘बिल्ली काली है या सफेद इसका तब तक कोई मतलब नहीं, जब तक कि वह चूहे पकड़ रही हो.’ डेंग के इस कथन को अक्षम्य अपराध मान कर माओ ने उन्हें गुमनामी-बदहाली में रहने की सजा दी, लेकिन एक समय चीन की माओवादी व्यवस्था रूपी बिल्ली के गले में घंटी बांधने वाले डेंग शिआओ पिंग ही थे.

1904 में चीन के सिचुआन प्रांत में एक संपन्न जमींदार परिवार में जन्मे डेंग सिर्फ16 वर्ष की आयु में उच्च शिक्षा पाने फ्रांस चले गये. फ्रांस प्रवास के दौरान डेंग, झाओ एन लाई के संपर्क में आये और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गये. ऐसी मान्यता भी है कि फ्रांस में नवयुवक डेंग का पूंजीवाद के शोषक पक्ष से सामना हुआ, 1926 में डेंग वापस चीन आये और कम्युनिस्ट आंदोलन में सहभागी बने. मात्र पांच फीट दो इंच की ऊंचाई वाले डेंग ने माओ की कम्युनिस्ट सेना में अपने लिए खास मुकाम बनाया, उन्हें कम्युनिस्ट सेना में सबसे चहेता राजनीतिक कैडर और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में सबसे चहेता सैनिक माना जाता था.

माओ के शासनकाल में उनकी कृषि सुधार नीतियों से फैली भुखमरी रोकने के लिए डेंग ने कुछ इलाकों में सामुदायिक खेती के स्थान पर निजी लाभ के लिए कृषि करने की अनुमति दी. डेंग के इन निर्णयों से क्षुब्ध माओ ने पूछा, ‘इस परिवर्तन का किस चीनी सम्राट ने अनुमोदन किया है’, शायद इसके उत्तर में ही डेंग ने बिल्ली के रंग और चूहे पकड़ने के ढंग पर टिप्पणी की थी. सांस्कृतिक क्रांति के दौरान डेंग को उनके पद से बरखास्त कर चीन के सुदूर गांवों में शारीरिक श्रम करने का दंड मिला. 1973 में चीन के दूसरे सबसे बड़े नेता झाओ एन लाई अस्वस्थ हो गये और झाओ ने डेंग को चीनी प्रशासन में उप प्रधानमंत्री के रूप में पुनस्र्थापित किया, लेकिन माओ की मृत्यु के बाद माओ की विधवा और उनके सहयोगियों ने डेंग को फिर दरकिनार कर दिया. डेंग का यह निष्कासन अधिक दिन नहीं चला, 1978 में डेंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में सर्वोच्च नेता बन कर उभरे और उनके शासनकाल में चीन सारी दुनिया में एक महाशक्ति के रूप में उभरा.

डेंग ने स्वावलंबी चीन बनाने के लिए कृषि, उद्योग, शिक्षा और सैन्य क्षमता में दूरगामी सुधारों के लिए आधुनिकीकरण का अभियान चलाया. आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक संसाधन अपने देश के भीतर से जुटाने के लिए डेंग ने आर्थिक सुधारों पर सबसे अधिक जोर दिया. अर्थव्यवस्था में प्रगति लाने के उद्देश्य से डेंग ने किसानों और मजदूरों को प्रोत्साहित करने के लिए सीमित निजीकरण की नीति अपनायी, जिससे कि अर्थव्यवस्था के दो सबसे महत्वपूर्ण चालकों की उत्पादकता बढ़ायी जा सके. ग्रामीण इलाकों में किसानों को निजी लाभ के लिए खेती करने और अतिरिक्त उपज को खुले बाजार में बेचने की छूट दी. शहरों और कस्बों में स्थानीय समिति बनाकर औद्योगिक इकाइयां स्थापित की और इन उद्यमों के लाभ-हानि का पूरा हिस्सा इन स्थानीय समितियों के सुपुर्द कर दिया. इन सुधारों के बाद चीन में खाद्यान्न व औद्योगिक उत्पादों की आपूर्ति बहुत बढ़ गयी, लेकिन चीन के आम लोगों की आर्थिक स्थिति देखते हुए डेंग ने मुक्त बाजारवाद को नहीं पनपने दिया. डेंग की इन आर्थिक नीतियों को बाद में ‘चीनी लक्षणों युक्त समाजवाद’ पुकारा गया.

अपने शासन के आरंभिक दिनों में चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार से उत्साहित डेंग ने चीन को वैश्विक स्तर तक लाने के लिए विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र स्थापित किये. डेंग ने विदेशी उत्पादकों को चीन में कारखाने लगाने के लिए आमंत्रित किया और शीघ्र ही चीन सारी दुनिया में उपभोक्ता सामान का सबसे बड़ा निर्माता बन गया. डेंग के अनुसार सांस्कृतिक क्र ांति ने चीन की एक पूरी पीढ़ी को मानसिक अपंग बना दिया था, शिक्षा सुधार के लिए डेंग ने कई योजनाएं लागू की. आधुनिक शिक्षा के लिए चीनी छात्रों के विदेश जाने और चीन के शैक्षणिक संस्थानों को विदेशी सहयोग पाने की अनुमति दी. चीनी सैन्य क्षमता के विस्तार और आधुनिकीकरण का श्रेय निस्संदेह रूप से डेंग को जाता है, संसाधनों के अलावा उन्होंने विदेशों में काम कर रहे चीनी मूल के अनेक विशेषज्ञों को वापस बुलाने और औद्योगिक जासूसी जैसे उपाय भी अपनाये.

डेंग एक यथार्थवादी नेता थे, जहां बढ़ती आबादी को रोकने के लिए सिर्फएक बच्चे का कड़ा नियम बनाया वहीं हांगकांग वापस लेने के लिए एक राष्ट्र में दो समानांतर शासन पद्धति चलाने जैसे व्यावहारिक निर्णय भी लिए. चीन में आर्थिक सुधारों के हिमायती डेंग, चीन में राजनीतिक सुधारों के धुर विरोधी बने रहे और 1989 में चीनी छात्रों पर बर्बर सैन्य कार्यवाही करने में उन्हें कोई संकोच नहीं हुआ. 1997 में 92 वर्ष की आयु में डेंग का देहांत हुआ. डेंग ने जिस ‘चीनी लक्षणों युक्त समाजवाद’ से शुरुआत की थी आज वह ‘पूंजीवादी लक्षणों से उन्मत्त चीन’ बन गया है, अंधाधुंध आर्थिक विकास के ढांचे ने चीन में गंभीर सामाजिक-आर्थिक-पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किये है. चीन की साम्यवादी व्यवस्था में पूंजीवाद को आमंत्रित करने के लिए पाश्चात्य विद्वानों में डेंग के महिमामंडन का प्रचलन है, लेकिन यह भी सत्य है कि आज संपन्नता के ढेर पर बैठे साम्यवादी चीन का अमेरिकी पूंजीवाद पर सर्वाधिक नियंत्रण है. जब भी अमेरिकी साम्राज्य के पराभव का इतिहास लिखा जायेगा तो उसमे प्रमुखता से एक नाम होगा, डेंग शिआओ पिंग .

साम्यवादी चीन आज एक महाशक्ति बन गया है, जिसमें सबसे अधिक योगदान पूंजीवादी राष्ट्रों का ही है, इसमें डेंग शिआओ पिंग की सबसे बड़ी भूमिका थी. डेंग ने अपने जीवन में तीन बार राजनीतिक पराभव देखा, लेकिन जब उनके उद्भव का मार्ग बना, तो उन्होंने नये चीन के उदय का मार्ग प्रशस्त किया. वैश्विक व्यवस्था परिवर्तन में एशियाई देशों के नेतृत्व का ऐसा दूसरा उदाहरण नहीं है.

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