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बागमती के विस्थापितों का नहीं हुआ पुनर्वास

बैरगनियाः देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, परंतु प्रखंड क्षेत्र के बागमती नदी के कोपभाजन का शिकार बने सैकड़ों परिवार के लोगों को चालीस वर्षो बाद भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका है. उनलोगों को पुनर्वासित करने के लिए अब तक जमीन उपलब्ध नहीं हो सका है. शिवहर संसदीय क्षेत्र […]

बैरगनियाः देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, परंतु प्रखंड क्षेत्र के बागमती नदी के कोपभाजन का शिकार बने सैकड़ों परिवार के लोगों को चालीस वर्षो बाद भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका है. उनलोगों को पुनर्वासित करने के लिए अब तक जमीन उपलब्ध नहीं हो सका है. शिवहर संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले प्रखंड के मसहा-आलम, मसहा नरोत्तम, आदमवान, बेंगाही, परसौनी, जोरियाही, भटौलिया, मड़पा ताहिर, चकवा, पिपराही सुल्तान समेत कई गांवों के लोग आज भी बागमती नदी के तांडव का दंश झेल रहे हैं.

राशि का दुरुपयोग

बागमती परियोजना से एक ओर जहां सरकारी राशि का व्यापक पैमाने पर दुरुपयोग हुआ. वहीं हजारों परिवार को अपना खेती-बाड़ी छोड़कर पांच से दस किलोमीटर दूर जाकर अपना आशियाना बनाना पड़ा. गलत पुनर्वास नीति के कारण आज वर्षो से लोग रेलवे के परित्यक्त भूभाग व बागमती तटबंध पर खानाबदोस की जिंदगी जीने को विवश हैं. मसहा आलम गांव के सैकड़ों दलित एवं अतिपिछड़े परिवार के लोग जहां-तहां घर बना कर जीवन-बसर कर रहे हैं. वहीं पिपराही सुल्तान गांव के लोग अभी भी बागमती नदी के तट पर रह रहे हैं. जो बरसात में प्रतिवर्ष पेंड़ों पर चढ़ कर अथवा ऊंचे स्थान पर जान बनाने को मजबूर हैं.

नक्सलियों ने जमाया जड़

पिपराही सुल्तान एवं मधु छपरा गांव के कई लोगों ने अपने आप को मुख्य धारा से अलग कर नक्सली एवं अपराध के रास्ते को अपना लिया. ऐसी स्थिति में माओवादियों ने अपना जड़ जमाना शुरू कर दिया. क्योंकि बागमती के दियारा एवं बकेया के दुर्गम इन गांव में न तो सड़कें हैं और न किसी सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन.

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