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जरा एक नयी कहानी तो सुन लो..

।। राज लक्ष्मी सहाय ।। हे देश के भाग्य विधाताओं ! किस्सा कुरसी का सामने है. एक बार फिर किस्से के सभी पात्र चीख-पुकार में जुटे हैं. लाउंड स्पीकर के भोंपू से कहीं जीतेगा भई जीतेगा तो कहीं जिंदाबाद-मुर्दाबाद. चुनावी समर का शोर मचा है. अबकी बार मोदी सरकार, झाड़ू की ललकार सफाई बार-बार, आपकी […]

।। राज लक्ष्मी सहाय ।।

हे देश के भाग्य विधाताओं !

किस्सा कुरसी का सामने है. एक बार फिर किस्से के सभी पात्र चीख-पुकार में जुटे हैं. लाउंड स्पीकर के भोंपू से कहीं जीतेगा भई जीतेगा तो कहीं जिंदाबाद-मुर्दाबाद. चुनावी समर का शोर मचा है. अबकी बार मोदी सरकार, झाड़ू की ललकार सफाई बार-बार, आपकी आवाज हमारा संकल्प जैसे नारे गूंज रहे हैं. नेता चीख रहे हैं. जनता चीख रही है. मीडिया शोर मचा रही है. कहीं शेरों की भांति दहाड़ तो कहीं हाथी जैसा चिंघाड़, कोई सियार की भांति हुआं-हुआं करता है तो कोई लोमड़ी की तरह गुर्राता.

चीख-पुकार के बीच किस्सा कुरसी का शनै:-शनै: अपनी मंजिल की और बढ़ रहा है. बड़ी पुरानी बन चुकी है कुरसी की कहानी. हे इस चुनावी दंगल के पात्रों- हे कुरसी के दावेदारों, हे देश के भाग्य विधाताओं, एक नया किस्सा सुनो. एक कहानी पेश है खास आपके लिए. कहानी क्या, आइना समझो इसे. खुद का चेहरा निहारो. काबिलियत के तराजू पर इस कहानी का बटखरा डालो और खुद को तौलो. तौलो अपनी दावेदारी. एक राजा था. वृद्ध हो गया तो सभासदो ने परामर्श दिया –

‘अपने बेटे को राजा नियुक्त कर दें ’

राजा अनुभवी था. ऐसे कैसे नियुक्त कर दें. पहले योग्यता की परीक्षा लेनी होगी. सिद्ध करना होगा कि राजा बनने लायक है या नहीं. राजा अपने गुरु ऋषि के पास पुत्र को लेकर गया. ऋषि ने कहा –

पहले दिन ऋषि ने राजपुत्र को आज्ञा दी-

‘आश्रम की सफाई करो’, ‘मगर यह काम तो राजा का नहीं’- राजपुत्र का जवाब था. ‘तुम्हे खुद को सिद्ध करना है या नहीं’ ‘जी गुरुदेव करना तो है’

अहं को चोट लगी मगर आश्रम की सफाई कर डाला.

दूसरे दिन गुरु ने जंगल से फल, कंदमूल तोड़ कर लाने को कहा. फिर, वही बात-

यह तो राजा नहीं करता, आज्ञा पालन जरूरी था. थोड़ा अहं फिर टूटा. मगर गुरु की बात मान ली. पूछा गुरु से- अब तो मैं राजा बनने योग्य हूं?

ऋषि मुस्कराए-अभी कहां. अब फिर से वन में जाओ और वहां की आवाजें सुनो.

राजपुत्र वन को गया-आवाजें सुनी और वापस आया. गुरु ने पूछा –

क्या सुना? बहुत सी आवाजें-हाथियों का चिंघाड़ना-शेरों की दहाड़- भालू का खिखियाना-हिरणों, मोरो की आवाज, चिड़ियों का कलरव, सियारों की आवाज सब सुना. अब तो मैं समर्थ हूं न? अभी नहीं. एक बार फिर जाओ और आवाजें सुनो.

राजपुत्र कुछ निराश हुआ. मगर अपनी योग्यता सिद्ध करनी थी. पुन: जंगल की ओर प्रस्थान किया. कई बार गया- वापस आता और कहता उन आवाजों के सिवा और कोई आवाज नहीं आती. मगर गुरु न मानते. बार-बार जाने को कहते. राजपुत्र लंबे समय तक जंगलों में भटकता रहा. कभी किसी चट्टान पर बैठकर, सांस रोक कर सुनने का प्रयास करता, कभी नदी के किनारे जमीन पर घंटों बैठा रहता. कभी जंगली फूलों की झाड़ियों को टाटोलता. अचानक एक दिन दौड़ता हुआ गुरु के पास पहुंचा और पैरों पर गिर पड़ा. गुरुदेव आपकी बात सच थी. आज मैने ऐसी आवाजें सुनी जो पहले कभी न सुनी थी.

क्या सुना तुमने?

मैने मछलियों को आपस में बात करते सुना- मैंने चीटियों और तितलियों को बातचीत करते सुना.

ऋषि ने राजपुत्र को गले से लगा लिया.

कहा- शाबास. आज तुमने उनकी भी आवाजें सुनीं जिनकी आवाज कोई नहीं सुनता. तुमने सिद्ध कर दिया कि तुम राजा बनने योग्य हो.

हे आज के राजाओं, क्या इस कहानी पर खरे उतरते हो?

आपको उन बेजुबानों की आवाज भी सुननी है जिनको सुनने के कान किसी के पास नहीं. यह कहानी एक प्रश्न है इस चुनावी माहौल में. है किसी के पास उत्तर?

ताजपोशी के लिए तो सब लालायित हैं. मगर क्या किसी ने भूख से कुलबुलाते पेट की आवाज सुनी है? अनाज के खाली कनस्तर को उलट कर रखने की आवाज कैसी होती है? दूर-दराज आदिवासियों की झोपड़ियों में पसरे अंधेरे की आवाज कैसी होती है- किसी को मालूम है? सूखा पड़ने पर दरकी धरती की आवाज का पता है? सूखा महुआ बीनकर, सिझाकर खाने की विवशता की ध्वनि कहां से आती है? आधी भींगी साड़ी लपेट कर आधी हवा से सुखा कर पहने की आवाज और मर्यादा को बचाने की चेष्टा की ध्वनि सुनी है किसी ने? गरीबी की मार से विवश होकर संतान तक को बेचने पर कैसी हुक सी उठती है-पता है?

बीमारी की आवाज, भय की आवाज, निराशा की आवाज किसने सुनी है? कच्चे-पक्के सपनों के टूटने की आवाज कैसी होती है? दो शाम चूल्हा न जलने की आवाज- सूखे कंठ की आवाज, सूखती अंतड़ियों की आवाज का अहसास किया है कभी? गरीबों की फटी एड़ियों की आवाज, उलङो सूखे केशों की आवाज, धुंधली आंखों की ध्वनि का किसे पता है? त्योहारों पर भी आंसू ढलकने की आवाज सुनने का सामथ्र्य है किसी के पास? ये आवाजें अब तक अनसुनी सी है- अनसुनी कर दी गयी है- अनदेखी है. न देखने वाली आंखे है, न सुनने वाले कान.

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