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प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है ‘हां’ या ‘ना’

।। दक्षा वैदकर।। कई बार हम अपनी जिंदगी में इस कदर उलझ कर रह जाते हैं कि हमें दूसरों के लिए कुछ करने का वक्त ही नहीं मिलता. ऐसा नहीं हैं कि हमारे अंदर समाज और देश के लिए कुछ करने की भावना नहीं होती, लेकिन इसके लिए हम वक्त नहीं निकाल पाते. चैरिटी के […]

।। दक्षा वैदकर।।

कई बार हम अपनी जिंदगी में इस कदर उलझ कर रह जाते हैं कि हमें दूसरों के लिए कुछ करने का वक्त ही नहीं मिलता. ऐसा नहीं हैं कि हमारे अंदर समाज और देश के लिए कुछ करने की भावना नहीं होती, लेकिन इसके लिए हम वक्त नहीं निकाल पाते. चैरिटी के कुछ कार्यक्रमों में हिस्सा लेते वक्त आपने अधिकांश लोगों को यह कहते सुना होगा कि उन्हें यह काम करने में बहुत अच्छा महसूस हो रहा है. वे भी जरूरतमंदों की मदद करना चाहते हैं.

अनाथाश्रम के बच्चों के लिए कुछ करना चाहते हैं. वृद्धाश्रम में बुजुर्गो के साथ थोड़ा समय बिता कर उनके अकेलेपन को दूर करने की कोशिश करना चाहते हैं, लेकिन हर बार वे अपनी व्यस्त दिनचर्या की वजह ऐसा नहीं कर पाते. उनका यह अरमान कभी पूरा नहीं हो पाता. इस बात में सच्चई है. स्कूल और कॉलेज लाइफ में हमें पढ़ाई, असाइनमेंट और एग्जाम आदि से फुरसत नहीं मिलती और जब नौकरी शुरू कर देते हैं, तो ऑफिस की जिम्मेवारियां हमें जकड.लेती हैं, पर यदि सच में हम जरूरतमंदों की मदद के लिए कुछ करना चाहें, तो यह मुमकिन है. यह हमारी मजबूत इच्छाशक्ति और हमारे काम की प्राथमिकता सूची पर निर्भर करता है.

उदाहरण के लिए बेंगलुरु में मैं एक ऐसे स्टूडेंट ग्रुप को जानती हूं, जिन्होंने अपने कॉलेज के आसपास के इलाके में निर्धनता और अशिक्षा के खिलाफ मुहिम चलाने की ठान ली. इन स्टूडेंट्स ने रोजाना कॉलेज के बाद दो घंटे इस अभियान में लगाये. छोटी-मोटी रकम इकट्ठा कर जहां अनाथाश्रमों और वृद्धाश्रमों की आर्थिक जरूरतें पूरी की, वहीं अत्यंत निर्धन व बेसहारा बच्चों का अच्छे स्कूलों में दाखिला करवा कर उन्हें शिक्षित बनाना शुरू कर दिया. उनके इस कदम से आज उस इलाके में सैकड़ों जरूरतमंद लाभान्वित हो चुके हैं. पढ़ाई से बचनेवाला समय स्टूडेंट्स ने अनाथ बच्चों व बुजुर्गो के साथ बिताना शुरू कर दिया.

यह मजबूत इच्छाशक्ति और उस सकारात्मक सोच का उदाहरण है कि अच्छे काम के लिए हम जरूर वक्त निकाल सकते हैं, बस इसके लिए मन में ईमानदारी से काम करने की ललक होनी चाहिए.

बात पते की..

कुछ काम हम चाह कर भी केवल इसलिए नहीं कर पाते, क्योंकि वे हमारी प्राथमिकता की सूची में निचले पायदान पर होते हैं.

जिंदगी चाहे कितनी भी व्यस्त क्यों न हो जाये, दूसरों की मदद के लिए किया गया छोटा सा प्रयास भी इसे सार्थक बना देता है.

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