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चुनावी मौसम में फिसलती जुबान

2014 के चुनावों के महासंग्राम में अब ज्यादा वक्त शेष नहीं है. सभी पार्टियां अपना वोट बैंक टटोलने में लग गयी हैं. कई ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनका चुनावी मौसम में होना लाजमी है. बीते दिनों सहारनपुर के कांग्रेस प्रत्याशी का बेहद आपत्तिजनक वीडियो आया जिसमें वह भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार […]

2014 के चुनावों के महासंग्राम में अब ज्यादा वक्त शेष नहीं है. सभी पार्टियां अपना वोट बैंक टटोलने में लग गयी हैं. कई ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनका चुनावी मौसम में होना लाजमी है. बीते दिनों सहारनपुर के कांग्रेस प्रत्याशी का बेहद आपत्तिजनक वीडियो आया जिसमें वह भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते नजर आये और बोटी-बोटी कर देने की बात उन्होंने कही. वहीं सपा प्रत्याशी नाहिद हसन ने मायावती और मोदी को लेकर आपत्तिजनक बात कही.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि पार्टी के नेताओं का किसी के भी लिए इस तरह की भाषा का प्रयोग करना क्या शोभा देता है? हालांकि इमरान मसूद की गिरफ्तारी के बाद अगले ही दिन वह यह कहते नजर आये कि यह बयान उनका तब का है जब वह सपा सरकार में थे. फिर उसके अगले दिन वह यह कहते नजर आये कि वह मोदी के खिलाफ 100 बार जेल जाने को तैयार हैं.

लेकिन प्रश्न यह उठता है कि अगर उन्होंने यह बात सपा सरकार में ही रहते हुए कही तो कितनी उचित है? खैर, यह कोई नयी बात नहीं है जब नेता इस तरह के बयान देते नजर आ रहे हैं. इसके पहले भी दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद, बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेता भी तीखे जुबानी तीर छोड़ चुके हैं.

लोकतंत्र में सभी को बोलने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि चुनाव आते ही नेता ऐसी बोली बोलने लगें कि उस पर संयम ही ना रहे. कुल मिला कर, जरूरत इस बात की है कि नेता जुबानी जंग करने के बजाय स्वच्छ राजनीति करें, उलटबांसी बयान देने की जगह अपने काम पर ध्यान दें और आपत्तिजनक बातें करने के बजाय चुनावी मैदान में डट कर मुकाबला करें.

कोणार्क रतन, ई-मेल से

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