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मीडिया का कड़वा सच

सच हमेशा कड़वा होता है. यह मीडिया के लिए भी लागू होता है. पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगर उनकी सरकार बनी तो मीडियावालों की जांच करायेंगे और उन्हें जेल भिजवायेंगे. कारण है, उनकी आशंका कि कुछ टीवी चैनल बिके हुए हैं और इसीलिए पिछले लगभग एक साल […]

सच हमेशा कड़वा होता है. यह मीडिया के लिए भी लागू होता है. पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगर उनकी सरकार बनी तो मीडियावालों की जांच करायेंगे और उन्हें जेल भिजवायेंगे. कारण है, उनकी आशंका कि कुछ टीवी चैनल बिके हुए हैं और इसीलिए पिछले लगभग एक साल से आम जनता के बीच नरेंद्र मोदी को खूब प्रचारित करने का काम कर रहे हैं.

इस बयान से कुछ मीडियावाले बौखला गये. मीडिया की ओर से केजरीवाल के खिलाफ कई प्रतिक्रियाएं भी आयीं. मीडिया चाहे कितना भी बौखलाये, लेकिन सच है कि भाजपा की एक झूठ को बार-बार बोल कर सच बनानेवाली नीति को साकार करने में कुछ टीवी चैनल निस्संदेह नरेंद्र मोदी का साथ देते हुए दिखायी दे रहे हैं. मीडियावालों ने मोदी को ‘देश के लिए सिर्फ मोदी’ के रूप में हाईलाइट कर आम जनता के दिमाग में ‘मोदी’ नाम ठूंसने का भरपूर प्रयास किया है.

मोदी की रैलियों को तो इस तरह लाइव में दिखाया जाता है मानो वह चुनावी सभा न होकर 15 अगस्त के दिन दिल्ली के लाल किले के प्राचीर से दिया जा रहा देश के प्रधानमंत्री का भाषण हो. बारंबार ओपीनियन पोल में भाजपा को बढ़त दिखाने से भाजपा को फायदा पहुंचाने का काम बखूबी किया जा रहा है. ऐसे में देश की आम जनता के मन में टीवी चैनलों की वही छवि बन रही है, जो केजरीवाल के मन में बनी है.

यह इन न्यूज चैनलों की ईमानदारी और निष्पक्षता को कठघरे में खड़ा करने करती है. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, मीडिया दूसरे पर बौखलाना छोड़ खुद की गहन समीक्षा करे. मीडिया की स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं कि ‘हम आह भी भरें तो हो जायें बदनाम और वे कत्ल भी करें तो चर्चा भी न हो.’

मो सलीम, बरकाकाना

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