।। अनुराग चतुर्वेदी ।।
वरिष्ठ पत्रकार
महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीति से बढ़ेगा भाजपा का दायरा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नितिन गडकरी के राज ठाकरे को आभार प्रदर्शन पर टिप्पणी की है कि बिहार में हुंकार, मुंबई में आभार. भाजपा-सेना की 25 वर्षो की दोस्ती को तोड़ने के लिए राज की चाल ने दक्षिणपंथियों में संशय, भ्रम और बदले की भावना जगा दी है. राज-उद्धव युद्ध से कांग्रेस को राहत है, तो भाजपा का दायरा व्यापक हुआ है. नुकसान फिलहाल शिवसेना को है.
महाराष्ट्र नव निर्माण सेना और शिवसेना का द्वेष जग जाहिर है. बाल ठाकरे के बेटे, उनकी पुत्रवधू और पौत्र की सदारत में चल रही शिवसेना कोई लोकतांत्रिक संगठन नहीं है, वहां संगठन के चुनाव नहीं होते हैं. शिवसेना की शाखाओं के प्रमुख भी उनकी ‘ताकत’ के आधार पर नियुक्त होते हैं. पिछले दस वर्षो में महाराष्ट्र ही सत्ता से दूर रही शिवसेना के लिए अब भी मुंबई महानगरपालिका की दुधारू गाय है, जिसका बजट पूर्वोत्तर भारत के कई छोटे राज्यों के बराबर है. जब पांच वर्षो के लिए शिवसेना महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हुई थी. तब कई नये राजनीतिक शब्द ईजाद हुए थे. कुछ शब्द सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने बनाये थे, तो कुछ उनके विरोधियों ने रचे थे.
बाल ठाकरे कहते थे, ‘हमें लोकतंत्र में विश्वास नहीं है, हम ठोकतंत्र में विश्वास करते हैं. बाल ठाकरे ने स्वयं के लिए ‘रिमोट कंट्रोल’ शब्द का उपयोग किया था. तब ‘खंडनी’ (जबरदस्ती पैसा वसूली) शब्द भी सार्वजनिक बहस में आ गया था. घरों का जबरदस्ती खाली कराना, भूखंडों का रिजर्वेशन हटाना आम बात थी. विरोधियों ने तब के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के खिलाफ नारा बनाया था, ‘जोशी-मुंडे, दोनो गुंडे’. शिवसेना मध्य औरनिम्न-मध्यमवर्गीय मराठीभाषियों की मानसिकता की वह स्थिति है जो उन्हें सुरक्षा का आभास कराती है. मराठीभाषी, जो मुंबई जैसे महानगरों में रहते हैं, उनके लिए बगैर शिवसेना के राजनीतिक नक्शा देखना कठिन है.
बाल ठाकरे की राजनीति ‘मर्दवादी’ हिंदुत्व, आक्रामक और भाषाई पहचान से जुड़ी थी. बाल ठाकरे की पृष्ठभूमि एक काटरूनिस्ट की थी. और वे पश्चिमी हाइवे के कलानगर में इसलिए भी रहते थे कि आम मराठी भाषी उनसे मिल सकें, पर अब स्थिति बदल गयी है. उद्धव ठाकरे, उनका पुत्र आदित्य पुलिस के घेरे में रहते हैं और शिवसेना का राजकाज चलाते हैं. शिवसेना के दो सांसद राष्ट्रवादी पार्टी में शामिल हो गये हैं. पूर्व सांसद मोहन रावले सेना छोड़ कर महाराष्ट्र निर्माण सेना में शामिल हो गये हैं, पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी भी राज्यसभा का टिकट नहीं मिलने से नाराज थे, इतना ही नहीं मुंबई मध्य लोकसभा का टिकट भी उन्हें नहीं दिया गया, जहां से उन्हें पिछले चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, पर शिवसेना के पास अभी भी बाल ठाकरे का वह वीडियो मौजूद है जिसमें बाल ठाकरे ने मृत्यु के पहले शिवसैनिकों से अपील की थी कि वे उद्धव और आदित्य का ध्यान रखें. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिव सेना दो ऐसे ध्रुव बन गये हैं जो कभी एक नहीं हो सकते?
जिस प्रकार लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के राजनीतिक रिश्ते हैं, जिस प्रकार ममता बनर्जी और साम्यवादियों के रिश्ते हैं या जिस प्रकार जयललिता और करुणानिधि के रिश्ते हैं. इस प्रकार के दो ध्रुव दोनों व्यक्तियों और पार्टियों को फायदा पहुंचाते हैं और राजनीतिक पारी खेलने का मौका क्रमश: दोनों का थोड़े थोड़े अंतराल के बाद मिलता है. इन दलों की कोई राष्ट्रीय सोच नहीं होती, वे केवल अपने हितों के लिए गंठबंधन करते हैं. महाराष्ट्र में कुछ गंठबंधन ‘सार्वजनिक’ हैं और कुछ गंठबंधन ‘अघोषित’ हैं. शिवसेना-भाजपा युति अब आरपीआइ (रामदास अठावले) के साथ मिल कर शिवसेना और भीम सेना को एक कर चुकी है. इस गंठबंधन में भी कई ऐतिहासिक विरोधाभास हैं. शिवसेना ने मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के नामकरण का विरोध किया था.
शिवसेना आरक्षण का विरोध करती है, पर कई ‘व्यावहारिक’ कारणों के चलते शिवसेना और आरपीआइ साथ-साथ आ सके. रामदास अठावले की संसद जाने की चाह ने ही यह समझौता कराया. रामदास अठावले की दलित राजनीति महाराष्ट्र में वही गति प्राप्त कर ली है, जो रामविलास पासवान बिहार में पा चुके हैं. धर्मनिरपेक्ष राजनीति के सहारे प्रगतिशील राजनीति करनवाले तथाकथित दलित नेता अब ‘सांप्रदायिक’ और हवा के जोर को देखते हुए भाजपा-शिवसेना के साथ मिल-जुल गये हैं. शिवसेना यदि इन चुनावों में पर्याप्त ताकत नहीं दिखा पाती है तो राज्यस्तर पर उसकी शक्ति मंद हो जायेगी. राज ठाकरे मराठीभाषी मतदाताओं में भ्रम फैला कर यही सिद्ध करना चाहते हैं कि भाजपा-शिवसेना गंठबंधन कमजोर है और असली गंठबंधन का गोंद तो नरेंद्र मोदी है.
यूं नरेंद्र मोदी के बारे में राज ठाकरे के विचार बदलते रहे हैं. 3 अगस्त 2011 को राज ठाकरे ने गुजरात सरकार के सरकारी मेहमान बनने के बाद कहा था कि वे मोदी की बहुत इज्जत करते हैं और देश की किसी भी राज्य सरकार ने इतना काम नहीं किया, जितना गुजरात में हुआ है. 11 सितंबर 2012 को सद्भावना अनशन के दौरान राज ठाकरे ने कहा कि वे मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में समर्थन करते हैं. देश को सुशासन और बेहतरीन नेता की जरूरत है. पर दो वर्षो के बाद राज ठाकरे का रुख बदलने लगा. 9 जनवरी 2014 को राज ठाकरे ने कहा भारत का प्रधानमंत्री पूरे देश का होता है न कि एक प्रदेश का.
उसके लिए सभी प्रदेश बराबर होते हैं. नरेंद्र मोदी को इस बारे में सोचना चाहिए. 3 फरवरी 2014 को बाल ठाकरे के घर मातोश्री से कुछ दूरी पर एक बड़ी रैली करने पर उसमें बाला साहेब ठाकरे का नाम न लेने पर राज ठाकरे ने कहा कि मुंबई आने पर भी बाला साहेब का जिक्र न करना वह भी तब जबकि सेना-भाजपा की इतने लंबे समय से युति है.
पिछले दो-तीन महीनों से राज ठाकरे नरेंद्र मोदी, भाजपा और गुजरात के खिलाफ बोलने लगे थे, उन्होंने नरेंद्र मोदी से यह मांग भी की थी कि पहले उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए फिर गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए. क्योंकि मोदी जब प्रचार करते हैं तो गुजरात का शासन कौन चलाता है. गुजरात से द्वेष, महाराष्ट्र-गुजरात विवाद मोरारजी देसाई पर व्यक्तिगत हमला शिवसेना की स्थापना के समय से महत्वपूर्ण मुद्दा है. कई राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि यदि वर्तमान पृथ्वीराज चह्वाण सरकार कानून-व्यवस्था में नरमाई बरतती तो महाराष्ट्र नव निर्माण से गुजरातीभाषियों के प्रति उसी तरह का उत्पात मचाती जो उन्होंने विलासराव देशमुख के दौर में हिंदीभाषियों के खिलाफ किया था.
राज ठाकरे की पार्टी ने सरकार के रुख को भांपा और अपना आंदोलन सरकार की मदद से टोल नाकों के बैरियर तक पहुंचा दिया, यब बात अलग है कि महाराष्ट्र के ज्यादातर टोल नाकों के ठेके राज ठाकरे के व्यावसायिक मित्र और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी के हैं. महाराष्ट्र के भाजपा नेता मुंडे यह सार्वजनिक घोषणा कर चुके हैं कि जब महाराष्ट्र में युति सरकार बनेगी तब टोल नाके हटा लिये जायेंगे और नागपुर से भाजपा उम्मीदवार गडकरी ने कहा कि टोल के बगैर सड़कों का रख रखाव नहीं हो सकता है.
राज ठाकरे की उग्रता उनके मराठीभाषी समर्थकों को बेहद पसंद है. भले ही उस उग्रता के पीछे सरकारी समर्थन हो. उग्रता दिखाने के बाद सरकार और राज ठाकरे के बीच जो गिरफ्तारी-गिरफ्तारी नाटक होता है उससे टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ती है. भवन निर्माताओं में भय बढ़ जाता है और यह सिद्ध हो जाता है कि वे कानून से ऊपर है जबकि सरकारी तंत्र को लगने लगता है कि अब सबकुछ नियंत्रण में है. आंदोलन ‘सरकारी’ है.
आठ वर्ष पुरानी महाराष्ट्र नव निर्माण पार्टी ने अपने स्थापना दिवस पर सात उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की तो सबसे ज्यादा राहत कांग्रेस राष्ट्रवादी को मिली है. पिछले लोकसभा चुनावों में मनसे के उम्मीदवारों की वजह से शिवसेना-बीजेपी मुंबई से लोकसभा की सभी सीटों पर हार गयी. साथ ही महाराष्ट्र की लोकसभा सीटों पर इस पार्टी का असर पड़ा था.
दक्षिण मुंबई की प्रतिष्ठित सीट पर मनसे, शिवसेना के आगे निकल गयी थी. बाला नंदगावकर शिवसेना के मोहन रावले से आगे रहे थे. यह बात अलग है कि अब बाला और मोहन मनसे में हैं और महाराष्ट्र महानगर टेलीफोन निगम यूनियन ने अरविंद सांवत, टेलीकॉम राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा के खिलाफ लड़ रहे हैं. इस सीट से भाजपा के नामी बिल्डर मंगल प्रभात लोढ़ा अपने पुत्र को शिवसेना का उम्मीदवार बनाना चाहते थे. भाजपा के भीतर गोपीनाथ मुंडे आज भी प्रमोद महाजन-बाल ठाकरे की दोस्ती के चलते उद्धव के साथ हैं, तो गडकरी राजठाकरे के साथ हैं.
राज ठाकरे ने मोदी को समर्थन देकर दीर्घकालीन राजनीति देखी है और कांग्रेस विरोधी वातावरण में यदि एक-दो सीटें मिल जाती हैं तो उद्धव ठाकरे के लिए और कठिनाइयां पैदा की है. राज ठाकरे ने अपना असली दुश्मन उद्धव ठाकरे को मान शिवसेना को कमजोर करने की रणनीति बनायी है. राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के किले पर हमला करने के बदले एक बड़ा समर्थक वर्ग जो कि मुसलिमों का था उसे खो दिया है. राज को मुसलिम उतना कट्टर नहीं मानते थे, जितना शिवसेना को मानते हैं. जिस प्रकार दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपनी ताकत पर पुरानी पार्टी कांग्रेस को चुनौती देकर आगे बढ़ गयी, तब शिवसेना बुरी तरह पस्त हो सकती है, पूरे मुंबई महानगर पालिका चुनावों में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व की जीत बाद इसकी संभावना कम दिखती है.
राज ठाकरे-उद्धव ठाकरे के इस युद्ध में दोनों ही भाई कमजोर होंगे और दोनों को अपनी-अपनी सेनाओं को संभालना मुश्किल हो सकता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नितिन गडकरी के राज ठाकरे का आभार प्रदर्शन पर टिप्पणी की है कि बिहार में हुंकार, मुंबई में आभार. भाजपा-सेना की 25 वर्षो की दोस्ती को तोड़ने के लिए राज ठाकरे की चाल ने दक्षिणपंथियों में संशय, भ्रम और बदले की भावना जगा दी है. राज-उद्धव युद्ध से कांग्रेस को राहत है, तो भाजपा का दायरा व्यापक हुआ है. नुकसान फिलहाल शिवसेना को है.