दरभंगाः आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने कहा कि भजन और भोजन में संकोच नहीं करना चाहिए. सत्संग ईश्वर के प्रति दिल की पुकार है. सत्संग के बगैर जीवन में नीरसता आ जाती है और नीरसता ही सभी विकारों की जननी है. जिस व्यक्ति के जीवन में रस है, वहीं आनंदमगA है और आनंदित व्यक्ति कभी बुरा नहीं होता. इंद्रभवन मैदान पर आयोजित ज्ञान, ध्यान एवं भजन संध्या ‘आह्वान’ में बोलते हुए उन्होंने मिथिला की महान सांस्कृतिक विरासत की चर्चा की. उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र सदियों से ज्ञान, भक्ति व सेवा का केंद्र रहा है. जनक-अष्टावक्र संवाद पर आधारित पुस्तक अष्टावक्र संवाद पर आधारित पुस्तक अष्टावक्र महागीता आज भी पूरी दुनियां में सर्वोच्च आध्यात्मिक ग्रंथ मानी जाती है. यह धरती दर्शन की जन्मस्थली रही है.
उन्होंने आनंदपूर्ण जीवन जीने की कला के पांच सूत्र समझाते हुए कहा, हर परिस्थिति में मन को संभाल कर रखना, जो व्यक्ति जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार कर लेना, दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं इसकी चिंता नहीं करना, किसी की भूल के पीछे दुरूद्येश्य न देखना और वर्तमान में जीना ही सुखपूर्ण जीने का मूलमंत्र है. हमारे मन में कलुषित भाव न रहें, अंतरंग शुद्ध हो और ईश्वर के प्रति आस्था हो तो हमें तपस्या करने की कोई जरूरत नहीं है. आम आदमी दैनंदिन जीवन में इन आसान सूत्रों का पालन करे तो समङिाये उसे जीवन जीने की कला आ गई.
पीड़ित मानवता की सेवा सबसे बड़ा मूल मंत्र है. इससे पूर्व कलाकारों के दल द्वारा गाये भजन ‘ गणपति बप्पा मोरया’ से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. बाद में ‘जय जय सदगुरु गोपाल’, ‘ओम नमो नमो,’ ‘भोले की जय जय’, ‘नारायण नारायण जय जय गोविंद हरे’ आदि सुमधुर भजनों की प्रस्तुति से पूरा माहौल भक्तिरस की सुधा में नहा उठा. आनंदमगA लोक खड़े होकर झूम रहे थे. श्री श्री ने लोगों के बीच जाकर उनपर गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा कर पूरे कार्यक्रम में ऊर्जा भर दी. गुरुदेव की जय की गूंज से पूरा कार्यक्रम स्थल आपूरित हो उठा. रंगीन रोशनियों की छटा ओर भजन व प्रवचन के सुमधुर बोल ने कार्यक्रम को और प्रभावशाली बना दिया.