बेरमो: बेरमो के करगली दुर्गा मंडप में पिछले 56 वर्षो से श्रीश्री रामचरित मानस महायज्ञ यहां आध्यात्मिक छटा बिखेर रहा है. वर्ष 1958 में पूर्व मुख्यमंत्री स्व बिंदेश्वरी दुबे व कांग्रेस नेता स्व संतन सिंह ने करगली गेट व रामविलास उवि के मध्य लाल बंगला में नौ दिवसीय महायज्ञ की शुरुआत करायी थी. इसमें जरीडीह बाजार के व्यवसायी मणीलाल राघवजी कोठारी, राजेश्वर सिंह, ठाकुर सिंह, अवधेश मिश्र का अहम योगदान होता था. इसी महायज्ञ के बाद कोयलांचल के कथारा, जारंगडीह, फुसरो, कुरपनिया, अंगवाली, नावाडीह सहित अन्य स्थानों पर महायज्ञ की शुरुआत हुई.
बाद में महायज्ञ को गांधीनगर दुर्गा मंडप में शिफ्ट किया गया. यहां से फिर महायज्ञ को रामरतन उवि के प्रांगण में लाया गया. दो वर्ष तक यहां महायज्ञ होने के बाद 1965 से लगातार करगली गेट स्थित दुर्गा मंडप परिसर में महायज्ञ हो रहा है. 1965 से वर्ष 2008 तक स्व संतन सिंह ने इस महायज्ञ की पूरी कमान संभाल रखी. 2008 में उनके निधन के बाद इसका संचालन उनके पुत्र प्रमोद कुमार सिंह व उनके सहयोगी कर रहे हैं. 2008 में ही संतन सिंह की मौजूदगी में इस महायज्ञ का गोल्डेन जुबली (50 वर्ष) धूमधाम से मनाया गया. नौ दिवसीय इस महायज्ञ में यज्ञ मंडप की परिक्रमा, सामूहिक रामचरित मानस पाठ करने व प्रवचन सुनने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.
प्रवचन सुनने आते थे बड़े-बड़े नेता
वर्ष 1958 में जब इस महायज्ञ का शुभारंभ हुआ तो उस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे सहित कई बड़े नेता यज्ञ स्थल घंटों बैठ कर प्रवचन सुनने थे. महायज्ञ में कोई कमी नहीं हो इस पर स्व दुबे व संतन सिंह स्वयं नजर रखते थे. कोयला मजदूरों से पांच से 25 रुपये तक सहयोग के रूप में चंदा लिया जाता था. 60 के दशक में कोयला खदानों में काम करनेवाले छत्तीसगढ़ी मजदूरों का नौ दिनों तक तांता लगा रहता था. नारियल चढ़ाने के लिए होड़ मचती थी.
1958 में बनारस से आये थे रामकिंकर उपाध्याय : वर्ष 1958 में महायज्ञ के शुभारंभ में बनारस के विद्वान प्रवचनकर्ता मानस किंकर रामकिंकर उपाध्याय (अब स्वर्गीय) प्रवचन करने आये थे. उनका प्रवचन सुनने भीड़ उमड़ती थी. बाद के वर्षो में यहां लखनऊ से रामजी शास्त्री, बनारस से परपनाचार्य व मदनमोहन शास्त्री को बुलाया जाने लगा. कहते हैं रामानंद सागर ने रामायण धारावाहिक बनाने के समय बनारस आकर रामकिंकर उपाध्याय से सलाह ली थी. वर्तमान में इस महायज्ञ में अयोध्या से श्री राम बिहारी शरण जी महाराज, यूपी के जाैनपुर से मानस किंकर प्रो दिनेश कुमार मिश्र व जमुई से मानस परायणी सदानंद मिश्र प्रवचन के लिए आते हैं. पहले यज्ञ स्थल पर 108 भक्त लगातार नौ दिनों तक बैठ कर सामूहिक रामचरित मानस पाठ करते थे. पूर्णाहुति के दिन श्रीराम दरबार की झांकी निकलती है.
क्या कहते हैं आयोजक : महायज्ञ के संस्थापक स्व संतन सिंह के पुत्र प्रमोद कुमार सिंह कहते हैं कि वर्ष 2008 में महायज्ञ के गोल्डेन जुबली समारोह में उनके पिता ने कहा था कि उनकी दिली इच्छा है कि उनके मरने के बाद भी यह महायज्ञ चलता रहे. सभी के सहयोग से वर्तमान में महायज्ञ का सफल आयोजन हो रहा है.