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बेहतर काम का फल देगी जनता

।। डॉ शकील अहमद।। (कांग्रेस महासचिव) लोकसभा चुनाव-2014 की घोषणा होते ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं. हम यह समझते हैं कि राजनीतिक दल प्रातिनिधिक लोकतंत्र के लिए बहुत ही आवश्यक हैं. उनके बगैर लोकतंत्र का समृद्ध होना असंभव है. आमतौर पर हर चुनाव में कई राजनीतिक दलों को शिकायत रहती है कि मीडिया […]

।। डॉ शकील अहमद।।

(कांग्रेस महासचिव)

लोकसभा चुनाव-2014 की घोषणा होते ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं. हम यह समझते हैं कि राजनीतिक दल प्रातिनिधिक लोकतंत्र के लिए बहुत ही आवश्यक हैं. उनके बगैर लोकतंत्र का समृद्ध होना असंभव है. आमतौर पर हर चुनाव में कई राजनीतिक दलों को शिकायत रहती है कि मीडिया में उनकी बातें नहीं आ पाती हैं. छोटे दलों को तो कोई तवज्जो भी नहीं देता है. इसलिए अपने अभियान ‘वोट करें देश

जहां तक कांग्रेस के चुनावी एजेंडे का प्रश्न है, तो हमारी यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकारों ने बेहतर काम किया है. इसी पूंजी के साथ हम आगामी चुनाव में उतर रहें हैं, ताकि जनता का विश्वास जीत कर, जनता की सेवा के लिए मौका प्राप्त कर सकें और यूपीए-3 सरकार बने. हमने 10 वर्ष के दौरान जनता को कई महत्वपूर्ण अधिकार दिये हैं. समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठे व्यक्ति के साथ ही समाज के सभी तबकों की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए कई अहम कानून बनाये हैं, जो हमारी सोच और विकास की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

विकास के इसी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते हुए इस सरकार ने बहुप्रतीक्षित लोकपाल विधेयक पारित करवाया. पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की इच्छा थी कि संसद के इसी कार्यकाल में भ्रष्टाचार निवारण के लिए बनाये गये छह कानूनों को भी पारित किया जाये, लेकिन विपक्षी दलों के असहयोग के कारण ऐसा नहीं हो सका. जब अगली सरकार बनेगी, तो इन कानूनों को प्राथमिकता से पारित कराया जायेगा. इस चुनाव में सांप्रदायिकता अहम मुद्दा होगा. कांग्रेस हमेशा से धर्मनिरपेक्षता के लिए प्रतिबद्ध रही है. इस चुनाव में सोची-समझी रणनीति के तहत कुछ दल सांप्रदायिकता को हवा देने में लगे हैं. लोगों को धोखे में रख कर जनता का विश्वास पाने की साजिश रच रहे हैं. कांग्रेस ऐसी ताकतों का मुकाबला करने के लिए धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को एक मंच पर लाने को अग्रसर है. अभी हमने राजद से बिहार में गंठबंधन किया है. कुछ लोग भ्रष्टाचार को लेकर लालू प्रसाद के साथ हुए इस गंठबंधन पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. वे भूल रहे हैं कि हमारा समझौता उनकी पार्टी से है, पार्टी के सिद्धांत से है, न कि व्यक्ति विशेष से. वैसे भी, लालू प्रसाद का मामला अभी ऊपरी अदालत में लंबित है. बिहार में लोजपा के साथ भी हमारा पुराना गंठबंधन रहा है. सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में वे हमारे साथी रहे हैं. लेकिन इस चुनाव में उन्होंने मोदी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया.

राम विलास पासवान के जाने का हमें दुख है, क्योंकि उनके रहते धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में हमारी लड़ाई और मजबूत होती. उम्मीद है कि बिहार में लगभग दो-तिहाई सीटें धर्मनिरपेक्ष दलों के हिस्से में आयेंगी.

आज बिहार को विशेष दरजा दिये जाने को लेकर राजनीति हो रही है. हम भी चाहते हैं कि बिहार का पिछड़ापन दूर हो और केंद्र से विशेष सहायता मिले. केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगानेवाले जदयू और भाजपा से यह पूछा जाना चाहिए कि लगातार 17 वर्षो तक वे साथ रहे, एनडीए के छह वर्षो के शासनकाल में भी साथ रहे, लेकिन इस दौरान क्या इन दोनों दलों ने बिहार को विशेष राज्य का दरजा दिलाने के लिए एक बार भी गंभीर प्रयास किया? एनडीए शासन में मात्र 17 हजार करोड़ रुपये बिहार को केंद्र से मिले. जबकि यूपीए सरकार के दोनों कार्यकाल में बिहार को 1 लाख 42 हजार करोड़ रुपये दिये गये. इस लिहाज से यूपीए-एनडीए के कार्यकाल की कोई तुलना नहीं की जा सकती. लगता है कि चुनाव के मौके पर विशेष राज्य के दरजे की मांग सिर्फ राजनीतिक फायदा लेने की चाहत है.

देश में आजकल गुजरात मॉडल और मजबूत नेता के रूप में नरेंद्र मोदी का नाम सामने ला कर, झूठ की बुनियाद पर भाजपा चुनावी जंग जीतना चाहती है. मोदी भी जगह-जगह होनेवाले रैलियों में गुजरात मॉडल की तारीफ कर रहे हैं. लेकिन मोदी जी के दावे सिवाय हंसाने के कुछ नहीं कर सकते. गुजरात में भाजपा पिछले छह विधानसभा चुनावों से सत्तारूढ़ है. लेकिन रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन की अध्यक्षता में बनायी गयी एक समिति ने मोदी के दावों की पोल खोल दी है. विकास के पैमाने पर गुजरात 12वें पायदान पर खड़ा है. 15 साल के मुख्यमंत्रित्व में जो व्यक्ति विकास के पैमाने पर राज्य को शीर्ष 10 राज्यों में शामिल नहीं करवा पाया, आखिर वह देश में घूम कर किस आधार पर दावा कर रहा है कि जनता 60 माह उसे दे और वह देश का कायाकल्प कर देगा. इसी तरह सांप्रदायिकता का सवाल है. इनकी सोच ऐसी है कि सांप्रदायिकता बढ़ेगी तो इनका वोट बढ़ेगा. लेकिन धर्मनिरपेक्ष सोच रखनेवाले दल इनके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देंगे, और निश्चित रूप से कांग्रेस ऐस दलों की अगुवाई करेगी. देश में आम आदमी पार्टी भी एक राजनीतिक दल है, जो घूम-घूम कर अपने को भाजपा का प्रतिद्वंद्वी बता रहा है. लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे जब सामने आयेंगे, तो ‘आप’ की सच्चई सामने आ जायेगी, तब देश की जनता कहेगी- खोदा पहाड़, चुहिया भी नहीं निकली.

(बातचीत: संतोष कुमार सिंह)

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