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एकमात्र पुत्री संतान के लिए आरक्षण हो सकता है उम्मीद की एक किरण

नयी दिल्ली : क्या सरकारी और निजी क्षेत्र में एकमात्र पुत्री संतान के लिए आरक्षण महिलाओं के प्रति समाज की मानसिकता बदलने में मददगार हो सकता है ? तमाम कानूनों के बावजूद महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों जैसे बालिका भ्रूण हत्या, दहेज मृत्यु आदि को देखते हुए कुछ प्रख्यात हस्तियों ने महिला दिवस के मौके […]

नयी दिल्ली : क्या सरकारी और निजी क्षेत्र में एकमात्र पुत्री संतान के लिए आरक्षण महिलाओं के प्रति समाज की मानसिकता बदलने में मददगार हो सकता है ? तमाम कानूनों के बावजूद महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों जैसे बालिका भ्रूण हत्या, दहेज मृत्यु आदि को देखते हुए कुछ प्रख्यात हस्तियों ने महिला दिवस के मौके पर यह राय जाहिर की है.

सुप्रसिद्ध न्यायविद के टी एस तुलसी, पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई एवं जानी मानी हिन्दी लेखिका अनामिका की राय है कि यह पहल कई सकारात्मक नतीजे देगी, बालिका भ्रूण हत्या को रोका जा सकेगा, रोजगार सुनिश्चित होने से अभिभावक अपनी बेटी का पालनपोषण बेटों की तरह ‘कमाउ’ समझते हुए कर सकेंगे, लिंगानुपात संतुलित हो सकेगा, महिला की सुरक्षा सामाजिक दायित्व बन जाएगी तथा महिलाओं पर अत्याचार और उनके खिलाफ अपराधों को रोका जा सकेगा. दूसरी ओर माकपा की वरिष्ठ नेता वृंदा कारत और गांधीवादी राधा भट्ट को लगता है कि ऐसा आरक्षण ज्यादा असरदार तो नहीं होगा बल्कि एक और बखेड़ा खड़ा कर देगा.

न्यायविद के टी एस तुलसी ने इस विचार की गंभीरता को महसूस करते हुए कहा कि यह एक अच्छी पहल हो सकती है. उन्होंने कहा कि इससे कन्या भ्रूण हत्या की समस्या पर लगाम कसने तथा महिलाओं के खिलाफ होने वाले अन्य अपराधों को रोकने में मदद मिल सकती है. तुलसी ने उदाहरण दिया कि जिस प्रकार महिलाओं के नाम से भूमि और भवन पंजीकरण शुल्क में छूट का प्रावधान होने से चाहे कर बचाने के ही उद्देश्य से, महिलाओं के नाम से परिसंपत्तियों का पंजीकरण बढ़ा है जो उन्हें निश्चित रुप से आर्थिक दृष्टि से सशक्त बनाता है इसी प्रकार नौकरियों में एकमात्र पुत्री संतान के लिए एक निश्चित अवधि के लिए आरक्षण का दूरगामी परिणाम हो सकता है.

पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता मल्लिका साराभाई एवं जानी मानी हिन्दी लेखिका अनामिका ने एकमात्र बेटी संतान के लिए नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे पर सहमति जताते हुए महिलाओं के प्रति समाज की मानसिकता में बदलाव पर जोर दिया। मल्लिका ने कहा कि इससे एकमात्र पुत्री संतान वाले माता पिता को प्रोत्साहन मिलेगा और समाज के लिए वे उदाहरण बन सकते हैं. बहरहाल, उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी नियम या कार्यक्रम को मानसिकता में बदलाव तथा कठोर कानून व्यवस्था को लागू किए बिना सफल बनाना संभव नहीं है. उन्होंने आरक्षण की व्यवस्था को कुछ निश्चित अवधि के लिए लागू करने की बात भी कही.

माकपा नेता वृंदा कारत मानती हैं कि देश में बेरोजगारों की पहले से ही एक बड़ी फौज खड़ी है. ऐसे में यह पहल कैसे सफल हो सकती है इसमें संदेह है. वृंदा ने महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध को रोकने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति के साथ साथ कानून के उल्लंघनकर्ताओं के लिए सख्त कार्रवाई और कड़ी सजा सुनिश्चित करने की बात कही. उन्होंने कहा कि सुधारों और सामाजिक बदलाव के बिना आधुनिकता का महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और वह अधिक असहाय हो गईं. वर्ष 2012 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ दहेज प्रति घंटा एक महिला की जान ले लेता है. अगर सिर्फ तीन साल में ही बालिका भ्रूण हत्या का आंकड़ा देखें तो यह सन 2010 में 111 था और 2011 में बढ़ कर 132 तथा 2013 में 210 हो गया. वृंदा की तरह ही राधा भट्ट भी एकमात्र पुत्री संतान के लिए आरक्षण के विचार से सहमत नहीं हैं.

राधा भट्ट ने कहा कि आरक्षण के ऐसे प्रावधान से समाज का एक और बंटवारा हो जाएगा जो जाति और वर्ग पर पहले से ही बंटा हुआ है. उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा के प्रसार और समाज की मानसिकता में बदलाव पर जोर दिया. न्यायविद् तुलसी ने महिलाओं की दशा में सुधार के लिए शिक्षा की भूमिका पर विशेष जोर दिया. उन्होंने कहा कि मध्याह्न भोजन कार्यक्रम जैसे प्रोत्साहन के अलावा बालिकाओं को शिक्षा की तरफ आकर्षित करने के लिए कुछ और विशिष्ट प्रावधान किए जाने चाहिए. राधा भट्ट और वृंदा कारत ने भी शिक्षा के जरिये मानसिकता में बदलाव पर जोर दिया.

दूसरी ओर अनामिका ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर काबू पाने के लिए एक त्वरित सामुदायिक न्याय व्यवस्था पर जोर दिया और कहा कि महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए सिर्फ सरकार और पुलिस पर निर्भर न करते हुए एक ऐसी मुहल्ला जागरण टोली गठित की जानी चाहिए जो पीड़ित महिला की परेशानी का त्वरित समाधान कर सके. ऐसी टोली में मोहल्ले की गृहणियों के अलावा अवकाश प्राप्त बुजुर्ग एवं कुछ सेवाभावी युवा शामिल हो सकते हैं. ऐसी टोली समस्याओं की रोकथाम में भी प्रभावी होगी. देश में शायद ही कोई ऐसा गांव या मोहल्ला होगा जो महिलाओं को सताए जाने की घटना से अछूता होगा. अनामिका ने कहा कि अगर अनाथालय और वृद्धाश्रम अलग अलग चलाने की बजाय एक ही जगह चलाए जाएं तो बच्चों, विशेषकर बालिकाओं की सुरक्षा तो सुनिश्चित होगी, साथ ही बुजुर्गों को पारिवारिक माहौल भी मिलेगा.

महिलाओं की स्थिति में सुधार और सशक्तिकरण के लिए कई विशिष्ट नीतियां, कानून और कार्यक्रम लाए गए लेकिन अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के चलते इनके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. कुछ महत्वपूर्ण कदमों में 1996 में महिला एवं बाल विकास का एक अलग मंत्रलय के रुप में गठन, पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान, वर्ष 1992 में महिला आयोग का गठन, महिला विकास निगम और राष्ट्रीय महिला कोष की स्थापना, वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम का संशोधन करके पैतृक संपत्ति में बेटे बेटियों को समान अधिकार, अलग से महिला बैंक की स्थापना आदि की लंबी सूची है.

इसके अतिरिक्त शिक्षा में विशेष प्रोत्साहन जैसे कदम भी उठाए गए हैं. लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद अपेक्षित परिणाम न मिलने का कारण मल्लिका साराभाई ने ‘‘भ्रष्ट व्यवस्था’’ को बताया जबकि राधा भट्ट ने कहा कि राजनीतिक दल सत्ता और वोट बैंक की राजनीति में व्यस्त हैं. ऐसी राजनीतिक व्यवस्था से क्या उम्मीद की जा सकती है. ज्यादातर लोगों की राय है कि एकमात्र बेटी के लिए आरक्षण उसे आर्थिक रुप से सुदृढ़ ही नहीं करेगा बल्कि बोझ समझ कर उसे पैदा होने से पहले ही मार डालने की प्रवृत्ति और उसे कमजोर समझ कर भरपाई के लिए दहेज के लेन देन की कुरीति पर भी रोक लगाएगा. इसके अलावा एक बड़ी समस्या ‘जनसंख्या विस्फोट’ का भी इस पहल से समाधान होगा. लड़की का भविष्य सुनिश्चित होने से लड़के की चाह में तीन चार बच्चे पैदा करने की मानसिकता पर रोक लगेगी. ये प्रत्यक्ष असर होंगे. परोक्ष असर के तौर पर महिलाओं से जुड़ी तमाम समस्याओं का निदान होगा और अंतत: महिलाओं के सशक्तिकरण का उद्देश्य पूरा होगा.

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