नयी दिल्ली: मुगलकालीन वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक, आजाद भारत का प्रथम हस्ताक्षर और यूनेस्को विश्व धरोहर लाल किला आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.. इसके बुर्ज काले पड़ गए हैं, कलाकृतियां अपना अस्तित्व खोती जा रही है और महल में जगह जगह दरारें पड़ गई हैं.
लाल किले में प्रवेश करते ही लाहौरी गेट और दिल्ली गेट से ही इस भव्य इमारत की खस्ता हालत देखने को मिलती है. लाहौरी गेट से चट्टा चौक तक जाने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूरब में स्थित नक्कारखाना पर भी वक्त की मार देखने को मिल रही है. ऐसी ही खस्ता हालत दिवान ए आम, दिवान ए खास, हमाम, शाही बुजर्, रंग महल आदि की भी है. इन इमारतों पर उकेरे गए चित्र एवं कलाकृतियां अपना वजूद खोती जा रही है और बुर्ज काले पड़ गए हैं.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वरिष्ठ अधिकारी डा. बसंत कुमार स्वर्णकार ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘ काफी साल पहले लाल किले में एएसआई काम कर रहा था. कुछ लोगों ने बाद में उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की कि एएसआई ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है. जनहित याचिका की वजह से 10 वर्षो तक लाल किले में काम नहीं हुआ.’’ उन्होंने कहा कि इसके बाद समग्र संरक्षण प्रबंधन योजना (सीसीएमपी) तैयार की गई और शीर्ष अदालत ने इसे मंजूरी प्रदान कर दी. अब हाल ही में लाल किले की स्थिति ठीक करने का काम शुरु किया गया है. ‘छत्ता बाजार’ को पुराने रुप में बहाल किया गया है. इस स्थान को ब्रिटिश काल में सैनिक इस्तेमाल करते थे और यह अब तक बंद पड़ा था. इसकी नकली दीवार को हटाकर इसे खोला दिया गया है. इसके सभी चाप (आर्क) को भी खोल दिया गया है. हालांकि अभी काफी काम करना है.