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सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में दिखा भारत का आईना

भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है. ऐसे में समूचे भारत की कला और सस्कृति को एक ही जगह देखने का अनुभव बिल्कुल अलग होता है. सूरजकुंड मेले में भारत के सभी राज्यों के अलावा विदेशों के 20 प्रतिभागियों और 800 से ज्यादा कलाकारों ने शिरकत की. जानते हैं तसवीरों की मदद […]

भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है. ऐसे में समूचे भारत की कला और सस्कृति को एक ही जगह देखने का अनुभव बिल्कुल अलग होता है. सूरजकुंड मेले में भारत के सभी राज्यों के अलावा विदेशों के 20 प्रतिभागियों और 800 से ज्यादा कलाकारों ने शिरकत की. जानते हैं तसवीरों की मदद से इसकी खासियत.

सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला एक वार्षिक आयोजन है, जो भारत की कुछ सर्वोत्तम हथकरघा और हस्तशिल्प परंपराओं का प्रदर्शन करता है. इस मेले को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल चुका है. इसमें हिस्सा लेने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. यहां न सिर्फ हस्तकला, बल्कि दूसरे क्षेत्र जैसे- नृत्य-संगीत, नाटक, नुक्क्ड़, बाइस्कोप और अपनी मिट्टी से जुड़ी चीजों को प्रदर्शित किया गया था. मेला परिसर का नाम चौपाल रखा गया था, जिसका मतलब गांव की वह जगह होती है, जहां गांव के सारे लोग इकट्ठा हो कर अपना सुख-दुख बांटते हैं और अपने त्योहार या मेले का सामूहिक आयोजन करते हैं. इस मेले का विधिवत उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया.

संस्कृति का जमावड़ा : इस मेले में भारत के लगभग सभी राज्यों के लोक-संगीत और नृत्य की प्रस्तुति की गयी थी. इनमें महाराष्ट्र का ढोल और पालखी, जम्मू-कश्मीर का जाबरो, पंजाब का गिद्दा, राजस्थान का कालबेलिया, गुजरात का सिद्घी धमाल, उत्तर प्रदेश का मयूर, उत्तराखंड का छापेली, असम का बीहू, बिहार का ङिाङिाया, ओडिशा का गोती पुआ, पश्चिम बंगाल का पुरूलिया छऊ, आंध्रप्रदेश का लामबोडी, तमिलनाडु का कावेदी कदगम, अरुणाचल प्रदेश का

ब्रो-जाई, सिक्किम का सिंघी छाम और त्रिपुरा का सांगराई मोग आदि नृत्य और संगीत पेश किये गये.

मेले में नामीबिया, रवांडा, कजाकिस्तान, श्रीलंका, थाइलैंड और पेरू सहित कई अन्य देशों ने हिस्सा लिया.

पहले सूरजकुंड मेले में 630 कुटियां थीं. इस बार इसे बढ़ाकर 734 कुटियां बनायी गयीं.

यहां देश के सभी राज्यों के नृत्य-संगीत और शिल्प कला से जुड़ी चीजों की पदर्शनी लगायी गयी थी.

मेले में हम्पी, बेलूर गेट, होयसाला गेट जैसी विश्व धरोहरों की पत्थर से बनी प्रतिमूर्तियां भी दिखायी गयीं.

इस साल मेले में ई-टिकट की सुविधा भी दी गयी थी.

इस मेले को भारत के सांस्कृतिक कैलेंडर के रूप में भी देखा जाता है.

अंतरराष्ट्रीय आयोजन के तौर पर तरक्की पा चुके सूरजकुंड मेले का थीम राज्य इस बार कर्नाटक को बनाया गया था.

सूरजकुंड मेले में विदेशों के 20 प्रतिभागियों और 800 से ज्यादा कलाकार शिरकत किया था.

इसमें हस्तकला के एक से एक क्रियात्मक नमूने पेश किये गये थे. जैसे- मिट्टी के बरतन, मूर्ति और अन्य सजाने की समाग्रियां.

मेले में अलग-अलग स्टॉल पर जूट, कागज और मिट्टी की मूर्तियां, झोला, गुलदस्ता, खिलौने आदि से सजाया गया था.

यहां बच्चों के लिए बाइसकोप, फूड स्टॉल, पेंटिंग और बहुत से मनोरंजक खेलों का भी आयोजन किया गया था, जिसमें बच्चों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.

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