।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
झारखंड के साथ एक बार फिर मजाक किया गया है. केंद्र की यूपीए सरकार ने उस सीमांध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने की घोषणा कर दी है, जिससे अलग होकर अभी-अभी तेलंगाना राज्य बना है. यही मांग झारखंड वर्षों से कर रहा है, लेकिन केंद्र ने इसे नकार दिया.
14 साल में झारखंड को कुछ नहीं मिला और पलक झपते ही सीमांध्र को सब कुछ मिल गया. इसे कहते हैं केंद्र की दोहरी नीति. झारखंड में हेमंत सोरेन (झामुमो) की सरकार है, जो कांग्रेस-राजद के बल पर चल रही है. यही सही वक्त है, जब झारखंड सरकार यहां की जनता के हक में फैसला ले. चुप्पी तोड़े. विशेष राज्य की मांग करे. हेमंत सोरेन के पास नायक बनने का अवसर आया है. दबाव बना कर झारखंड को भी विशेष राज्य का दर्जा दिला कर राज्य का भला करें या फिर चुप्पी साध कर इतिहास में खो जायें.
आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री, सांसदों-विधायकों ने इस्तीफा देकर दबाव बनाया. केंद्र की सरकार मजबूर दिखी. बात मान ली. केंद्र को समझना चाहिए कि झारखंड में भी उसी की सरकार है. झारखंड मुक्ति मोरचा के बगैर कांग्रेस लोकसभा चुनाव में नहीं जा सकती. हिम्मत नही है. झामुमो को कुरसी का मोह त्याग कर जनता की बात को मजबूती से केंद्र के पास रखना चाहिए. ऐसी बात नहीं है कि झारखंड की मांग वाजिब नहीं है. रघुराम राजन कमेटी ने अनुशंसा की है कि झारखंड पिछड़ा राज्य है. लेकिन केंद्र है कि मानता नहीं.
फैसले ऐसे नहीं होते. झारखंड के लोग, यहां के राजनीतिज्ञ सीधे-सरल हैं. राज्य आदिवासी बहुल है. इसी का फायदा केंद्र उठाता रहा है और उसकी मांग को अनसुना कर दिया जाता है. जो राज्य पूरे देश में रेलवे को सबसे ज्यादा मालभाड़ा देता है, उसका यह हाल. खनिज यहां से जाता है लेकिन उचित रायल्टी नहीं मिलती. देश की कई प्रमुख कंपनियां झारखंड में हैं, कारोबार यहां करती है लेकिन टैक्स जमा करती है दूसरे राज्यों में स्थित अपने हेडक्वार्टर के नाम पर. ऐसे में कैसे झारखंड को टैक्स का हिस्सा मिलेगा.
पूरे देश में यही प्रचार किया जाता है, आंकड़ों में दिखाया जाता है कि झारखंड एक विकसित राज्य है, यहां अपार खनिज (कोयला, लोहा, बाक्साइट) है. कई प्रमुख कंपनियां हैं. इसलिए इस राज्य को कोई सहायता नहीं देनी चाहिए. यह साजिश है. झारखंड की हकीकत को केंद्र की सरकार ने समझने का प्रयास नहीं किया. जिस राज्य की 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है, दोनों शाम का खाना नसीब नहीं होता है, पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पाते और जान चली जाती है, खेती के लिए सिंचाई की सुविधा नहीं है, जहां से बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार पाने के लिए पलायन होता है, वह झारखंड कैसे विकसित राज्य बन गया.
झारखंड के 24 में से 22 जिले नक्सल प्रभावित हैं. गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है. दूरदराज के इलाके में बिजनेस बंद है. राज्य पर 34 हजार से ज्यादा का कर्ज है. विकास दर में झारखंड काफी पीछे है. राज्य में स्थिति ऐसी है कि नये उद्योग लग नहीं रहे. नौकरी-रोजगार के अवसर बंद हो गये हैं. खेती की सुविधा नहीं बढ़ रही. बिजली की स्थिति बदतर है. राज्य में अच्छे संस्थान नहीं हैं. गरीबी से लोग परेशान लेकिन करें तो क्या करें. पीने का पानी नहीं मिलता.
90 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है. स्कूल और शिक्षा की स्थिति बदतर. ऐसे में राज्य तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक उसे विशेष सहायता नहीं मिलती. समय है जब झारखंड के हर दल राजनीति से ऊपर उठकर एक स्वर से राज्य हित में खड़ा हों. कांग्रेस के सांसद-विधायक क्यों नहीं इस मामले में अपनी आवाज बुलंद करते. भाजपा, जेवीएम और आजसू पार्टी तो विशेष राज्य के लिए पहल करती रही है. लेकिन इतना से काम नहीं चलनेवाला. हेमंत सोरेन की सरकार को इस मामले में पहल करनी चाहिए.
सच है कि जो बच्चा रोता नहीं है, उसे दूध नहीं मिलता. झारखंड के लोगों को एक मंच पर आना होगा चाहे वे किसी भी दल के हों, किसी भी जाति-धर्म-समुदाय के हों. केंद्र पर इतना जोरदार दबाव बनाना होगा ताकि झारखंड की आवाज को सुनने के लिए केंद्र बाध्य हो जाये. केंद्र झारखंड की आवाज को सुनेगा. ऐसी बात नहीं है कि झारखंड में लोकसभा की सीट कम है. 14 सीट किसी भी गंठबंधन का भाग्य तय करने के लिए कम नहीं होता. केंद्र अगर झारखंड के साथ न्याय नहीं करता तो यहां की जनता, यहां के राजनेताओं को किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहना होगा.