हम आज जो भी बने, उसमें सबसे ज्यादा हाथ और कुरबानी हमारे माता-पिता की है, क्योंकि किसी भी परेशानी की आंच उन्होंने हम तक नहीं आने दी. फिर इस तरह का सोच रखना कि जो कमी हमें हुई, जिस अभाव में हम पले, हम वह कभी अपने बच्चों को नहीं होने देंगे, यह सोच बिल्कुल गलत है. ऐसा कह कर आप अपने माता-पिता की परवरिश पर उंगली उठा रहे हैं और कहीं न कहीं उन्हें शर्मिदा कर रहे हैं.
डॉक्टर माथुर से मिल कर सभी बच्चे खुश हुए. उन्होंने बच्चों से कहा- आप सब जाकर खेलो. कुछ बातें आपकी मम्मा-पापा से करनी है. उन्होंने कहा- मैं आप सभी से कहना चाहता हूं कि आज जिस तरह बच्चों का लालन-पालन हो रहा है उसमें काफी हद तक घर के बड़े ही जिम्मेवार हैं. बच्चों की चाही-अनचाही जिदें पूरी करना. घर में और घर से बाहर निकलते ही बच्चों को चॉकलेट, चिप्स, पिज्जा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक देना. जैसे यह सारी चीजें उन्हें देने से वो सबसे अच्छे माता-पिता बन जायेंगे. इसके पीछे अक्सर यह तर्कदिया जाता है कि हमारा बच्चा कुछ खाता ही नहीं है. इस बहाने कुछ पेट में तो जाता है. यह सोच गलत है.
आप जो फास्ट फूड, जंक फूड उसे दे रहे हैं, इसीलिए वो बाकी कुछ नहीं खाता. बच्चा जानता है कि जब वो कुछ नहीं खायेगा तो हार कर मां उसे खाने के लिए कुछ इसी तरह की चीजें देगी. मेरे पास भी कई पेरेंट्स यही शिकायत लेकर आते हैं कि उनका बच्चा कुछ खाता ही नहीं तो क्या करें, हार कर उसे यह सब देना पड़ता है. भोजन उसे अच्छा ही नहीं लगता. सब्जी-दाल वो खाता नहीं और ज्यादा कहो तो ब्रेड स्लाइस, सॉस, जैम, मेयोनीज, न्यूटेला, चीज स्प्रेड या चीज स्लाइस लगाकर खा लेगा. चीज स्लाइस तो वैसे भी खाता रहता है. तो लगता है कि चलो कुछ तो खा रहा है. जबकि आप माता-पिता होकर भी यह नहीं जान पा रहे कि वो किस तरह से आपसे अपनी बातें मनवा रहा है. बच्चे अपनी जिद मनवाना अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन आप माता-पिता हैं.
आपने उसे जन्म दिया है. उसका भला-बुरा सोचना आपका ही काम है. चाहे इसके लिए आपको थोड़ी सख्ती ही क्यों ना करनी पड़े, आपको करनी चाहिए. आखिर बच्चे की भलाई के लिए ही पैदा होते ही उसे वैक्सीन दिये जाते हैं. वो बेचारा केवल रोता रहता है फिर बुखार में तपता है मगर आप उसे सारे टीके लगवाते हैं. उसे कड़वी दवाएं देते हैं- किसलिए ? इसीलिए कि वह स्वस्थ रहे, उसे कोई खतरनाक बीमारी न हो, अगर बीमार है तो जल्दी अच्छा हो जाये तो फिर उसकी खाने-पीने की आदत में सुधार लाने के लिए आप कमजोर क्यूं पड़ जाते हैं ? मुङो लगता है कि कुछ पेरेंट्स के लिए स्टेटस सिंबल भी है और अपने बच्चों के प्रति ज्यादा प्यार दिखाने का तरीका.
उसके पीछे तर्कयह होता है कि हमारा बचपन जैसे भी बीता, लेकिन हम अपने बच्चे को सारी सुख-सुविधाएं देंगे, उनकी हर इच्छा पूरी करेंगे जो हमारे माता-पिता नहीं कर पाये थे, जो अभाव हमें हुए हम उन्हें नहीं होने देंगे. ऐसा कह कर वो अपने माता-पिता की परवरिश पर भी उंगली उठाते हैं. यह सत्य है कि हर माता-पिता अपने बच्चों को पहले खिलाते हैं फिर खुद खाते हैं. मां खुद दूध नहीं नहीं पीती मगर बच्चे को पिलाती है.
अपना निवाला खिला कर खुद पानी पी लेती है. कितना भी गरीब माता-पिता क्यों न हों वे हमेशा अपनी हैसियत से ज्यादा ही अपने बच्चों के लिए करते हैं. अपने माता-पिता के बारे में ऐसी सोच रखनेवालों से मेरा अनुरोध है कि वो अपना सोच बदलें. वो याद करें कि क्या किसी भी दिन उनकी मां ने उन्हें खिलाने से पहले खुद खाया था ? क्या उन्हें नये कपड़े दिलाने से पहले खुद के लिए साड़ी खरीदी थी ? क्या उनके पिता ने दिन-रात मेहनत करके उन्हें पढ़ाया-लिखाया नहीं ? क्या कभी उनकी पढ़ाई छुड़वाई ? क्या कभी उन्हें अपनी परेशानियां बतायीं ? घर की आर्थिक तंगी के बारे में क्या कभी उनसे चर्चा की ? क्या कभी उन्हें यह एहसास भी होने दिया कि उनके माता-पिता अपना मन मार कर उनकी खुशियां पूरी कर रहे हैं. हम आज जो भी बने, उसमें सबसे ज्यादा हाथ और कुरबानी हमारे माता-पिता की है, क्योंकि किसी भी परेशानी की आंच उन्होंने हम तक नहीं आने दी. फिर इस तरह की सोच रखना कि जो कमी हमें हुई, जिस अभाव में हम पले, हम वो कभी अपने बच्चों को नहीं होने देंगे. यह सोच बिल्कुल गलत है. ऐसा कह कर आप अपने माता-पिता की परवरिश पर उंगली उठा रहे हैं और कहीं न कहीं उन्हें शर्मिदा कर रहे हैं. उन्हें यह एहसास करा रहे हैं कि वो अपने बच्चों की इच्छा पूरी नहीं कर पाये. आप उनका त्याग नजरअंदाज कर रहे हैं और ये भूल रहे हैं कि आज आप जो कुछ हैं उन्हीं के त्याग का फल है. मेहनत जरूर आपकी है, लेकिन मेहनत करने का मौका उनकी वजह से ही आपको मिला है. यह बात हमेशा आपके जेहन में रहनी चाहिए.
वीना श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री
इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com