हैदराबाद : एन किरण कुमार रेड्डी ने आंध्र प्रदेश के विभाजन के निर्णय के विरोध में आज राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस पार्टी भी छोड़ दी. उनके इस फैसले ने तटीय आंध्र और रायलसीमा में सत्तारुढ दल को परेशानी में डाल दिया है.
रेड्डी ने विधानसभा में तेलंगाना विधेयक के खारिज होने की बात सुनिश्चित करके आंध्र प्रदेश का विभाजन रोकने की पूरी कोशिश की थी. उन्होंने राज्यपाल ई एस एल नरसिम्हन को अपना इस्तीफा सौंप दिया है जिसे स्वीकार कर लिया गया है. रेड्डी ने तेलंगाना पर निर्णय लेने के लिए कांग्रेस और केंद्र सरकार द्वारा अपनाए गए तरीके की कड़ी निंदा करते हुए विधानसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया.
ऐसी अटकलें लगायी जा रही हैं कि 53 वर्षीय रेड्डी नये दल का गठन कर सकते हैं लेकिन उन्होंने इस मामले पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया.नयी पार्टी के बारे में पूछे जाने परउन्होंनेकहा, मेरा दल या मेरा भविष्य अहम नहीं है. मेरा संघर्ष राज्य को एकीकृत रखना है क्योंकि विभाजन के कारण लोगों को परेशानी होगी. ऐसी अटकलें भी लगायी जा रही हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने की स्थितियां पैदा हो सकती हैं.
रेड्डी ने कहा, मैं कांग्रेस का आभारी हूं कि उसने मुझे मुख्यमंत्री बनाया.लेकिन उन्होंने राज्य को विभाजित कर दिया और तेलुगू लोगों की भावनाओं को आहत किया और उनका भविष्य अंधकारमय कर दिया इसलिए मैं इसके विरोध में इस्तीफा दे रहा हूं.मैं विधानसभा की सदस्यता और कांग्रेस भी छोड़ रहा हूं. इसके बाद वह कुछ मंत्रियों एवं विधायकों के साथ राजभवन गए और राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया.उन्होंने राज्यपाल से अपील की कि वह जल्द से जल्द वैकल्पिक व्यवस्था करें क्योंकि वह कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रुप में भी काम नहीं करना चाहते हैं.
रेड्डी ने कहा कि सभी नियमों को ताक पर रखकर राज्य का विभाजन किया गया. उन्होंने टीआरएस के अलावा कांग्रेस और भाजपा की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि उन्होंने मतों और सीटों की खातिर राज्य का विभाजन किया.
उन्होंने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, यह आसान निर्णय नहीं है. मुझे इस बात का बहुत दुख है कि मैं तेलुगू लोगों की (एकता) की रक्षा नहीं कर सका. रेड्डी ने कहा, हालांकि मैंने उसी दिन (30 जुलाई 2013) इस्तीफा देने की पेशकश की थी जब सीडब्ल्यूसी ने आंध्र प्रदेश के विभाजन का निर्णय लिया था, मैं सोनिया गांधी के कहने पर पद पर बना रहा.
उन्होंने साथ ही कहा, मैं इसलिए पद पर बना रहा ताकि विभाजन के खिलाफ अंत तक संघर्ष कर सकूं. रेड्डी ने अपने त्यागपत्र में कहा, देश के पहले भाषाई राज्य आंध्रप्रदेश को दो हिस्सों में विभाजित करने का फैसला बिना किसी नीति के समर्थन के, बिना किसी उल्लिखित कारण के ,राज्य विधानसभा से खारिज किए जाने के बावजूद , बिना किसी परिपाटी-परंपरा और स्पष्ट प्रावधानों पर अमल किए किया गया है और यह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरुप नहीं है.
यह निर्णय विशेष रुप से राज्य के लोगों की आम सहमति की अनुपस्थिति के कारण पूरी तरह मनमाना ,अनुचित एवं असंवैधानिक है. उन्होंने कहा, केंद्र सरकार और लोकसभा ने आंध्रप्रदेश के जन प्रतिनिधियों को निलंबित करके और उनमें से किसी को अपने रुख का इजहार करने का मौका नहीं दे कर राज्य, उसकी विधानसभा और लोगों के प्रति अपमान जताया है. इससे मेरा मोहभंग हो गया है.
रेड्डी ने कहा, लोकसभा ने जिस तरह (तेलंगाना) विधेयक पारित किया, वह दिखाता है कि संसदीय संस्थाएं किस नई गिरावट तक चली गई हैं. उन्होंने दशकों से अपने परिवार के कांग्रेस का वफादार रहने का जिक्र करते हुए कहा कि उनके लिए पार्टी छोड़ने का निर्णय बहुत मुश्किल था.
रेड्डी ने कहा कि आंध्र प्रदेश ने 58 वर्ष पहले अपने गठन के बाद से सभी क्षेत्रों में तेजी से विकास किया है लेकिन राज्य के विभाजन के निर्णय से सभी वर्गों के लोगों को काफी नुकसान होगा.