झारखंड के एक मंत्री चंद्रशेखर दुबे ने अपने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ही खिलाफ मोरचा खोल दिया है. बयान दिया कि हेमंत सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री हैं. निकम्मे हैं. मंत्री इतना बोल कर ही शांत नहीं हुए. बोले-दिल्ली जा रहे हैं, अगर आलाकमान ने मंजूरी दी तो इस्तीफा दे देंगे. ये मंत्री अपने अजीबोगरीब बयान के लिए जाने भी जाते हैं.
वह नाराज क्यों हैं, यह तो पता नहीं चला, लेकिन अगर कोई मंत्री रोज धमकी देता रहे, तो उसकी गंभीरता खत्म हो जाती है. इस बार भी मंत्री के इस्तीफे की धमकी को सभी ने मजाक ही माना है. जिसे इस्तीफा देना है, वह मुख्यमंत्री को इस्तीफा सौंपेगा, राजभवन भेजेगा, दिल्ली नहीं जायेगा. सिर्फ सरकार या मुख्यमंत्री की आलोचना कर मंत्री अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकते. ठीक है कि सरकार में कई गड़बड़िया हैं, लेकिन इसके लिए मंत्री भी दोषी हैं.
बयानबाजी के अलावा उन्होंने अपने स्तर पर व्यवस्था ठीक करने के लिए क्या किया है, यह उन्हें बताना चाहिए. हाल ही में राजद ने राज्यसभा के टिकट को लेकर सरकार गिराने की धमकी दी थी. मुख्यमंत्री दबाव में आ गये और बात मान ली गयी. राजद की बात मानी, तो झामुमो नाराज हो गया. उनके अपने ही दल के तीन विधायकों ने अपना वोट बैंक (महतो वोट) सुरक्षित करने के लिए मोरचा खोल दिया. किया कुछ नहीं.
सिर्फ नाटक किया. बाद में माने. शर्त यह लगा दी कि कुरमी को आदिवासियों की सूची में शामिल किया जाये. क्या ये तीनों विधायक नहीं जानते थे कि कुरमी को आदिवासियों की सूची में शामिल करने का अधिकार मुख्यमंत्री को नहीं, बल्कि केंद्र सरकार को है.
पहले ही यह मामला केंद्र के पास भेजा जा चुका है. फिर क्यों पूरे राज्य को या कुरमी समाज को बेवकूफ बनाने का इन विधायकों ने प्रयास किया. ये विधायक यह भूल गये कि उन्हें लेने के देने पड़ चुके हैं. जाति की राजनीति करने के कारण उनके क्षेत्र के आदिवासी उनके खिलाफ हो गये हैं. यही स्थिति अब चंद्रशेखर दुबे की है. कहते हैं कि ब्राह्मण अधिकारियों के साथ दोहरा रवैया अपनाया जा रहा है. फिर वही जाति की राजनीति. अगर मंत्री यह कहते कि अच्छे अधिकारियों को तंग किया जा रहा है, तो बात में दम होता. अधिकारियों को जाति में बांटने से किसी का भला नहीं होनेवाला.