नयी दिल्ली : फिल्मों, टीवी धारावाहिकों, विज्ञापनों और रियलिटी शो में काम करने वाले बच्चे बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) अधिनियम के निषेधात्मक प्रावधानों के दायरे में नहीं आते, केवल उनके कामकाज के घंटे और काम के हालात इसके तहत विनियमित होते हैं.सूचना का अधिकार कानून के तहत श्रम एवं रोजगार मंत्रलय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ‘‘फिल्मों, टीवी धारावाहिकों, विज्ञापनों और रियलिटी शो में काम करने वाले बच्चे बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) अधिनियम 1986 के निषेधात्मक प्रावधानों के दायरे में नहीं आते, केवल उनके कामकाज के घंटे और स्थितियां इसके तहत विनियमित होती हैं.’’
मंत्रालय ने कहा कि राज्यों का श्रम विभाग प्रदेशों में इस कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार है. सूचना के अधिकार के तहत हिसार स्थित आरटीआई कार्यकर्ता नरेश कुमार ने इस संबंध में मंत्रालय से जानकारी मांगी थी. बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कुछ समय पहले कहा था कि धारावाहिकों, रियलिटी शो में काम करने वाले बच्चों को बच्चा रहने दिया जाए.बच्चों की भावनात्मक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक हालात पर चिंता व्यक्त करते हुए बाल आयोग ने सिफारिश की थी कि टीवी चैनलों में बच्चों से अभिनय कराते समय उनसे द्विअर्थी, अश्लील या भद्दे संवाद कहलाने या हिंसात्मक दृश्य कराने से रोका जाए. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी एक कार्यसमूह गठित किया था जिसने सेट पर जाकर यह जायजा लिया था कि बाल कलाकारों से काम कराते समय कैसा व्यवहार किया जाता है? सेट पर डाक्टर होते हैं या नहीं? आराम का समय दिया जाता है या नहीं? स्कूल और पढ़ाई के लिए कितना समय दिया जाता है?