नयी दिल्लीः पिछले दिनों एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक गुजरात सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की ओर से जारी एक निर्देश में कहा गया है कि शहरी इलाकों में 16 रुपये 80 पैसे और ग्रामीण इलाकों में 10 रु पये 80 पैसे रोजाना से कम कमाने वालों को ही बीपीएल कार्ड के योग्य माना जाये. यानी गुजरात के गांव में अगर कोई व्यक्ति रोजाना 10 रुपये 80 पैसे से ज्यादा कमाता है, तो वह गरीब नहीं माना जायेगा.
गरीबी के इस आंकड़े पर कांग्रेस और भाजपा नेताओं के बीच काफी बयानबाजी हुई. कांग्रेस ने राज्य की भाजपा सरकार पर जम कर निशाना साधते हुए उन पर गरीबों का मजाक’ उड़ाने का आरोप लगाया. कांग्रेस ने भाजपा को याद दिलाया कि उन्होंने शहरी क्षेत्रों में 32 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 28 रुपये प्रतिदिन कमाने के योजना आयोग के बीपीएल के मानकों को बड़ा मुद्दा बनाया था और इसे एक ‘मजाक’ बताया था.गुजरात सरकार कहती है कि बीपीएल मानदंड तय करना केंद्र का विशेषाधिकार है. केंद्र द्वारा वर्ष 2004 में यह मानदंड तय किया गया था और राज्यों को इसका अनुसरण करने को कहा गया था.
इस संबंध में योजना आयोग ने 12 जनवरी को 2004 को एक पत्र जारी किया था, जिसमें विभिन्न राज्यों में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले (ग्रामीण और शहरी) लोगों की संख्या का आकलन था. अगर केंद्र सरकार के गरीबी के पैमाने पर चला जाए तो उसके मुताबिक गुजरात में सिर्फ 21 लाख बीपीएल परिवारों को लाभ मिलेगा. लेकिन गुजरात सरकार ने इस बात को सुनिश्चित किया कि 11 लाख अतिरिक्त परिवारों को लाभाथियों की सूची में शामिल किया जाये.
इस मुद्दे पर यह जानना दिलचस्प है कि भाजपा योजना आयोग के जिस पत्र का जिक्र कर रही है, वह वर्ष 2014 का है, जबकि 1999-2000 के आंकड़े पर आधारित बीपीएल के मानदंड में योजना आयोग तीन बार संशोधन कर चुकी है. सबसे ताजा मानदंड 2011-2012 के आंकड़े पर आधारित है. इसे 23 जुलाई 2013 को जारी किया गया था. यह सूचना योजना आयोग की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है.