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भारतीय संग्रहालय के 200 साल

।। डॉ मनमोहन सिंह।। किसी भी देश की समृद्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराने में संग्रहालयों की बेहद अहम भूमिका होती है. कोलकाता स्थित भारतीय संग्रहालय के 200 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने इस तथ्य को विस्तार से रेखांकित किया. प्रधानमंत्री के इस भाषण […]

।। डॉ मनमोहन सिंह।।

किसी भी देश की समृद्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराने में संग्रहालयों की बेहद अहम भूमिका होती है. कोलकाता स्थित भारतीय संग्रहालय के 200 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने इस तथ्य को विस्तार से रेखांकित किया. प्रधानमंत्री के इस भाषण के साथ-साथ देश के अन्य प्रमुख संग्रहालयों के बारे में जानकारी दे रहा है आज का नॉलेज.

कोलकाता में भारतीय संग्रहालय के द्विशताब्दी समारोह के मौके पर नये रूप में प्रस्तुत की गयी नायाब वस्तुओं को देखकर काफी अच्छा लगा. इस संग्रहालय की स्थापना दो सौ वर्ष पहले 1814 में की गयी थी और ऐतिहासिक उतार-चढ़ावों के बीच यह पूरे 200 साल तक लगातार मौजूद रहा. भारत में ऐसा संग्रहालय पहली बार बना और शायद यह एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे विशाल संग्रहालय है. यह विश्व के सबसे विशाल संग्रहालय स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन से भी पुराना है. कोलकाता में संग्रहालय की स्थापना न केवल अन्य संग्रहालयों अपितु राष्ट्रीय महत्व के कई संस्थानों के लिए आदर्श बन गयी.

यह विडंबना है कि पश्चिमी शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों ने भारतीय संग्रहालय की उस समय स्थापना की, जब हमारा देश अंगरेजों के शासन के शिकंजे में आने लगा था. इसके बावजूद ये प्रबुद्ध व्यक्ति ज्ञान के युग के सूत्रधार बने. 18वीं शताब्दी का भारत सामयिक पश्चिमी विद्वानों के लिए रोचक विषय था और वे भारत के ऐतिहासिक अतीत, पुरातन संस्कृति और वैज्ञानिक उपलब्धियों का अध्ययन करने के इच्छुक थे. यह भी कहा जा सकता है कि भारतीय संग्रहालय की स्थापना भारत जैसे देश की विविध और व्यापक विरासत को प्रदर्शित करने की ऐतिहासिक जरूरत थी.

समृद्ध सांस्कृतिक विरासत

समय की बौद्धिक शैली के अनुरूप भारतीय संग्रहालय की स्थापना की गयी. लंदन में 1660 में रॉयल सोसाइटी की स्थापना की गयी थी. इसके सौ साल के बाद सर विलियम जोन्स ने कलकत्ता में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की. इससे भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की पश्चिम द्वारा व्यापक खोज की यात्र की शुरुआत हुई. भारत की गहरी, समृद्ध और विविध सांस्कृतिक परंपराओं ने शीघ्र ही इन विद्वानों के प्रारंभिक आश्चर्य को और अधिक सराहनीय व श्रेष्ठ बना दिया. डेनमार्क के वनस्पतिविद् डॉ नेथेलियन वालिच ने 1814 में महसूस किया कि एशियाटिक सोसाइटी एक बेहतरीन सार्वजनिक संग्रहालय भी बन सकती है. उन्होंने कहा कि इस देश के प्राकृतिक इतिहास की जिस तरह अनदेखी की गयी है, वह चिंताजनक है और ऐसा प्रतीत होता है कि सुधार के उपाय के रूप में अब एक सार्वजनिक संग्रहालय की जरूरत है. इस आभास से भारतीय संग्रहालय की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ.

इतिहास व परंपराओं का ज्ञान

संग्रहालय बनाना एक ऐसी परियोजना का भाग था, जो कुछ विद्वानों की 20वीं शताब्दी के आखिर की सोच यानी अंगरेजियत के ज्ञान को समर्पित थी. इससे भारतीय संग्रहालय के अलावा भारतीय भू सर्वेक्षण, भारतीय सर्वेक्षण, पुरातत्व सर्वेक्षण और भारत की जनगणना जैसी महान संस्थाओं की स्थापना हुई. इस प्रकार एक ऐसी प्रक्रिया को गति मिली, जिससे भारत की दोबारा खोज से संबंधित संस्थागत प्रादुर्भाव की शुरुआत हुई. यह शुरुआत हालांकि गुलामी के दौर से संबंधित थी, लेकिन इस प्रक्रिया ने भारतीयों को अपने इतिहास और परंपराओं के प्रति अधिक सजग और संवेदनशील बना दिया था. संग्रहालय को भारतीयों और इससे लाभ उठानेवालों से शीघ्र ही मदद मिलने लगी. शुरू-शुरू में काली किशन बहादुर और बेगम सुमरू जैसे जाने-माने लोगों ने संग्रहालय के लिए सहायता दी. इसकी स्थापना से देश के लोगों में स्वाभाविक देशभक्ति और गर्व की भावना का संचार हुआ. रबींद्रनाथ टेगौर ने इसकी अभिव्यक्ति करते हुए कहा कि इतिहास के पुनर्जागरण के महान अंकुर तब मिले जब लोगों ने अतीत के भंडार में अचानक सोच के अंकुर की खोज की.

संग्रहालय का बदलता अर्थ

भारतीय संग्रहालय में आज हमारे देश की कला और पुरावस्तुओं का बेहतरीन अपार भंडार है. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के बरहुत की मूर्तियां भारतीय संग्रहालय में सचमुच अद्भुत संकलन हैं. वस्त्रों का संकलन भी शानदार है. यह एक ऐसा संग्रहालय है, जिस पर प्रत्येक भारतीय गर्व कर सकता है. इस गर्व का औचित्य बताने के लिए हमें इसकी सराहना करनी होगी और मानना होगा कि समय के बीतने के साथ विश्वभर में संग्रहालयों की भूमिका और उद्देश्य में परिवर्तन आया है.

19वीं शताब्दी में संग्रहालयों को कलात्मक वस्तुओं का भंडारण ही माना जाता था. इनको एकत्रित करना और भंडारण करना संग्रहालयों के अस्तित्व के औचित्य के लिए पर्याप्त था. 17वीं शताब्दी में संग्रहालय शब्द का महज अर्थ था एक ऐसा भवन, जिसमें पुरावस्तुओं, प्राकृतिक इतिहास, कला जैसी पुरानी वस्तुओं को रखा जा सके. इस प्रकार संग्रहालय इन वस्तुओं को रखने का महज स्थान बन गया था. समय बीतने के साथ संग्रहालय शब्द का अर्थ बदला और इसे नयी पहचान मिली. इसे कला को सीखने की इच्छा को समर्पित भवन के रूप में देखा गया. संग्रहालय शब्द को पहचान मिली और समाज में संग्रहालय की भूमिका महत्वपूर्ण बन गयी. इसमें न केवल संकलन है, अपितु यह सीखने और सीखने के प्रसार का संस्थान है.

आधुनिक भारत के निर्माता दरअसल भारत के ऐतिहासिक अतीत से अवगत थे और वे इसकी समृद्धता और इसके मूल्य तथा भावी पीढ़ियों के लिए इसकी उत्सुकता से भी परिचित थे. इसके अलावा उन्हें महत्वपूर्ण संस्थान निर्माण करने की प्रासंगिकता का भी ज्ञान था. आजादी के दो वर्ष बाद नयी दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय बनाया गया. यह बैद्धिक और शैक्षणिक गतिविधियों को बड़ा केंद्र है. कुल मिलाकर हमारे संग्रहालय देश के समृद्ध अतीत की जानकारी के प्रसार में सफल रहे हैं.

एक नयी यात्रा की शुरुआत

भारतीय संग्रहालय आज अपनी नयी यात्र की शुरुआत कर रहा है और इसे ज्ञान के संवाहक की भूमिका के बारे में गंभीर रूप से मनन करना होगा. वर्तमान विश्व में संग्रहालय का केवल संकलन का केंद्र बन जाना प्र्याप्त नहीं है. किसी भी संग्रहालय के लिए अपने यहां के संकलन का विश्लेषण और दस्तावेजीकरण करना होगा. इसके अलावा, अन्य संग्रहालयों के संकलन का तुलनात्मक अध्ययन और ऐसे उन महान संग्रहालयों के साथ सहयोग करना होगा, जहां के संकलन से उसके बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है. इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि प्रशिक्षित कार्मिक तैयार किये जायें. दुर्भाग्य की बात है कि संग्रहालय विज्ञान के विषय की हमारे देश में अनदेखी की गयी है. इस कमी को दूर करने के लिए भारतीय संग्रहालय को अग्रणी भूमिका निभानी होगी. ऐसा करते हुए भारतीय संग्रहालय न केवल अपने संकलन को समृद्ध बनायेगा, अपितु देशभर के अन्य संग्रहालयों की मदद भी करेगा.

यह एक ऐसा संबंधित आयाम है, जिसे मस्तिष्क में रखा जाना जरूरी है.

पर्यटन के महत्वपूर्ण केंद्र

विश्वभर के संग्रहालय अब पर्यटन के महत्वपूर्ण केंद्र भी बन गये हैं. हमारे समय के कई महान नगर अपने श्रेष्ठ संग्रहालयों की वजह से जाने जाते हैं. संग्रहालयों को देखने के लिए लोग हजारों मील से चलकर आते हैं. संग्रहालयों को देखने से ज्ञान समृद्ध होता है और यह एक अनूठा अनुभव भी होता है. संग्रहालयों में संकेतकों, दस्तावेजीकरण और श्रेणीकरण के लिए बड़ी सहायता की जरूरत है. संग्रहालयों को आकर्षक स्थान बनाया जाना जरूरी है, जहां दर्शक बिना किसी तनाव के आभास कर सके और कुछ सीख सके. भारतीय संग्रहालय के लिए इसी प्रकार के बुनियादी ढांचे की जरूरत है, ताकि यह विश्व के संग्रहालयों में एक बनकर अपना समुचित स्थान बना सके. संग्रहालय में नवीनीकरण का काम पूरा किया गया है, जो कि अच्छी शुरुआत है. मैं जोर देकर अपील करता हूं कि संग्रहालय में बहुभाषी गाइड तैनात किये जायें, जिससे दर्शकों को संग्रहालय में प्रदर्शित प्रमुख वस्तुओं की विस्तृत और सटीक जानकारी मिल सकेगी.

संग्रहालय का उद्देश्य होना चाहिए कि यह कोलकाता में आनेवाले किसी भी दर्शक, खासतौर पर विदेशी दर्शक के लिए आकर्षण का विशेष केंद्र बने. इसे दर्शकों को ऐसे कुछ घंटे व्यतीत करने का अवसर देना चाहिए, जिससे वे शिक्षा और ज्ञान की अपनी प्यास मिटा सकें. साथ ही, वे भारतीय कला, मूर्तिकला समेत अन्य ऐतिहासिक कलात्मक श्रेष्ठ वस्तुओं को देखकर हमारी असाधारण और समृद्ध परंपराओं की झलक देख सकें. संग्रहालय का संकलन ऐसा अनुभव प्रदान करने के लिए तैयार दिखता है.

संग्रहालय को आम भाषा में जादूगर कहा जाता है. जादू शब्द के अर्थ में जादू और हैरत दोनों शामिल हैं. अब चुनौती है कि इन दोनों आयामों को विस्तृत किया जाये और संग्रहालय के स्थान को अधिक आकर्षक बनाया जाये, क्योंकि जादू जैसे हैरतपूर्ण आभास से ही भारतीय संग्रहालय अगले 200 वर्षो तक भी प्रासंगिक बना रहेगा. (कोलकाता में भारतीय संग्रहालय के द्विशताब्दी समारोह में दिये गये प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के भाषण से)

देश के कुछ अन्य प्रमुख संग्रहालय

राष्ट्रीय संग्रहालय, नयी दिल्ली

नयी दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय भारत का सबसे बढ़िया संग्रहालय है. यहां अनेक प्रकार के संग्रह हैं, जो प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक की कलाकृतियां हैं. इस संग्रहालय में लगभग 2,00,000 भारतीय और विदेशी मूल के संग्रह हैं, जो भारत के पिछले 5,000 वर्षो के इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर पर प्रकाश डालते हैं. इसे बनाये जाने का मकसद ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक महत्व की पुरावस्तुओं और कलाकृतियों को प्रदर्शन, सुरक्षा, परिरक्षण और निर्वचन (शोध) के प्रयोजन हेतु संग्रहीत करना है. साथ ही, इतिहास, संस्कृति और कलात्मक उत्कृष्टता एवं उपलब्धियों के संबंध में कलाकृतियों के महत्व के बारे में लोगों को जानकारी देना भी इसका उद्देश्य है. इसका मकसद राष्ट्रीय पहचान के प्रतीक के रूप में कार्य करना भी है.

राष्ट्रीय रेलवे संग्रहालय

नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रेलवे संग्रहालय देश का एकमात्र ऐसा संग्रहालय है, जो भारतीय रेलवे की 161 वर्षो की कहानी को दर्शाता है. साथ ही, यह भारतीय रेल की विरासत का चित्रण प्रस्तुत करता है. यह संग्रहालय चाणक्यपुरी में स्थित है. इसकी स्थापना फरवरी, 1977 में की गयी थी. इस संग्रहालय में भारतीय रेलवे से संबंधित 100 से अधिक वस्तुएं प्रदर्शित की गयी हैं. इसमें स्थिर एवं चालित मॉडल, सिगनल उपकरण, पुरातन फर्नीचर, ऐतिहासिक चित्र एवं इससे संबंधित साहित्य आदि मौजूद हैं. यह संग्रहालय, यहां प्रदर्शित रेल के डिब्बों जिसमें वेल्स के राजकुमार का सैलून और मैसूर के महाराजा का सैलून शामिल है, के लिए भी जाना जाता है. इस संग्रहालय के अन्य मुख्य आकर्षण हैं फेयरी क्वीन, पटियाला राज्य के मोनो रेल ट्रेनवेज, अग्निशामक इंजन, क्रेन टैंक, कालका-शिमला रेल बस, अग्निरहित वाष्प लोकोमोटिव आदि. साथ ही, यहां भारतीय रेल से जुड़ी तमाम ऐसी ऐतिहासिक चीजें हैं, जिन्हें केवल यहीं देखा जा सकता है. फेयरी क्वीन दुनिया की सबसे पुरानी चलने वाली वाष्प चालित (स्टीम इंजन) लोकोमोटिव है. यह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में भी दर्ज है. खिलौना ट्रेन आप को संग्रहालय के चारों ओर सवारी कराती है. यह भी रेल संग्रहालय का एक आकर्षण है.

सरदार पटेल संग्रहालय, अहमदाबाद

सरदार पटेल संग्रहालय अहमदाबाद के शाहीबाग विस्तार में स्थित मोती शाही महल में बनाया गया है. दरअसल, यह महल 1618 से 1622 के बीच मुगल राजकुमार खुर्रम के लिए बनावाया गया था. बाद में इस पर शाहजहां का भी आधिपत्य कायम रहा. इसके बाद यह ब्रिटिश राज के हाथों में चला गया. वर्ष 1878 में महान बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगोर भी यहां आये थे और यह इमारत उनकी ‘द हंग्री स्टोन्स’ का प्रेरणास्तोत्र बनी थी. भारत कि स्वतंत्रता के बाद 1960 से 1978 तक यह महल राजभवन यानी गुजरात के राज्यपाल का सरकारी मकान रहा. मार्च, 1980 में इसे सरदार वल्लभभाई पटेल की याद में स्मारक बना दिया गया. विशेष अवसरों पर यहां सरदार ओपन एयर थियेटर में दस्तावेजी फिल्म दिखायी जाती है. संग्रहालय नीचे की मंजिल तक फैला हुआ है, जिसमें मुख्य कमरे के अलावा चार कमरो में उनकी चीजें रखी गयी है. स्मारक में उनके जीवन के फोटो, मूर्तियां, व्यक्तिचित्र, राजकीय व्यंगचित्र, अखबार के कटिंग और निजी जीवन में उन्हें मिले स्मृतिचिह्नें का समावेश किया गया है. साथ ही, गांधीजी के साथ बिताये गये उनके समय को कहानी और वृत्त चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है. इस संग्रहालय में सरदार पटेल और आजादी की लड़ाई से संबंधित लगभग 1,000 से ज्यादा फोटो, सरदार पटेल के भाषण, उनके पत्र और उनके व्यक्तिगत उपयोग में आई वस्तुएं मौजूद हैं. इस राष्ट्रीय स्मारक में भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर एक 3डी साउंड एंड लाइट कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है.

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय

पूरे एशिया में मौजूद मानव जीवन की विकास गाथा की सजीव प्रस्तुति देता है इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय. भोपाल के निकट श्यामला हिल्स की पहाड़ियों पर 200 एकड़ क्षेत्र में फैला यह संग्रहालय दो भागों में बंटा हुआ है. एक भाग खुले आसमान में है, जबकि दूसरा एक भव्य भवन है. खुले इलाके का भ्रमण कर आप एशिया की जनजातीय विविधताओं को करीब से देख और जान सकते हैं. इसमें हिमालयी, तटीय, रेगिस्तानी और जनजातीय निवास के अनुसार वर्गीकृत कर प्रदर्शित किया गया है. मध्य भारत की जनजातियों को भी पर्याप्त स्थान मिला है, जिनके अनूठे रहन-सहन को यहां पर देखा जा सकता है. आदिवासियों के आवासों को उनके बरतन, रसोई, कामकाज के उपकरण अन्न भंडार समेत परिवेश को हस्तशिल्प, देवी- देवताओं की मूर्तियों और स्मृति चिह्नें से सजाया गया है. यह संग्रहालय मार्च, 1977 में नयी दिल्ली के बहावलपुर हाउस में खोला गया था, लेकिन स्थान के अभाव में इसे भोपाल लाया गया. चूंकि श्यामला पहाड़ी के एक भाग में पहले से ही प्रागैतिहासिक काल की पत्थरों पर बनी कुछ कलाकृतियां मौजूद थीं, इसलिए इसे यहीं स्थापित किया गया.

राष्ट्रीय कृषि विज्ञान म्यूजियम

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर, नयी दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय कृषि विज्ञान म्यूजियम (एनएएसएम) देश में अपनी तरह का पहला म्यूजियम है. यह 23,000 वर्ग फीट के फ्लोर क्षेत्रफल वाले दो मंजिला भवन में फैला हुआ है. म्यूजियम में भावी कल्पनाओं के साथ हमारे देश में कृषि में प्रागैतिहासिक काल और वर्तमान समय की स्टेट ऑफ द आर्ट कृषि प्रौद्योगिकियों से संबंधित कृषि प्रगति को दर्शाया गया है. प्रागैतिहासिक काल से ही कृषि व पशुपालन भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड रहे हैं. यहां तक कि आज भी भारत की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है. कृषि द्वारा भारतीय समाज के साहित्य, संप्रदाय और संस्कृति को भी आकार प्रदान किया गया है. हमारे देश की समृद्ध कृषि संपदा ने विदेशियों को यहां आने और यहां स्थापित होने के प्रति हमेशा से आकर्षित किया है. प्राचीन साहित्य और पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी खुदाई से प्राचीन और मध्ययुगीन भारत में कृषि व्यवहार के असंख्य साक्ष्य मिले हैं. स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं में लगातार कृषि पर विशेष बल दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप भारत में हरित क्रांति का प्रादुर्भाव हुआ और खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता आयी. अरबों की आबादी का भरण-पोषण करने के साथ ही देश के पास भावी चुनौतियों का सामना करने की पर्याप्त क्षमता है. इसलिए भारतीय कृषि की गाथा भारतीय समाज की गाथा है. इस म्यूजियम में इस गाथा को लोकप्रिय प्रारूप में सहेजा गया है. म्यूजियम में 150 प्रदर्शनियां हैं, जिनका प्रदर्शन 10 प्रमुख खंडों में किया गया है. जैसे कृषि के छह स्तंभ, प्रागैतिहासिक काल में कृषि, सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक एवं वैदिक पश्चात युग, सल्तनत और मुगलकालीन युग, ब्रिटिश का आगमन, स्वतंत्र भारत में कृषि विज्ञान की प्रगति, कृषि से संबंधित वैश्विक मुद्दे आदि.

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