शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाने वाली महिलाएं बहुत मुश्किल से मिलती हैं और इनमें भी आप चिंतनशील की खोज करने लगें, फिर तो और भी मुश्किल होगी. ऐसे में शंकर गिटार बजाने वालीं कमला शंकर को जानना संगीत प्रेमियों के साथ-साथ उन लोगों के लिए भी प्रेरक होगा जो जीवन के किसी क्षेत्र में अपना एक मुकाम हासिल करना चाहते हैं.
उन्होंने गिटार जैसे पश्चिमी साज को भारतीय शास्त्रीय पारंपरिकता में जिस खूबसूरती के साथ स्वभाव-सम्मत बनाया है, उसने उनको एक अलग ही पहचान दी है. इसीलिए युवा कलाकारों, विशेषकर वादकों के बीच क्षमता के मान से अत्यंत गुणी और स्वभाव के मान से अत्यंत विनम्र उपस्थिति के कारण वे जानी जाती हैं. उनके पूर्वज तमिलनाडु के तंजौर के थे लेकिन उनका जन्म, परवरिश और पढ़ाई भगवान शिव की नगरी बनारस में हुई. यही वजह है कि उन्होंने अपने वाद्य यंत्र गिटार को शंकर गिटार नाम दिया.
चार साल की उम्र से गायन
कमला शंकर का जन्म 5 दिसंबर 1966 को वाराणसी में संगीत को समर्पित घराने में हुआ. उनके पिता डॉ आर शंकर और मां विजया शंकर ने उनको आरंभ से ही संगीत की अभिरु चियों से जोड़ने का काम किया. उन्होंने चार वर्ष की उम्र से अपनी मां से गायन सीखा. गिटार से उनका सरोकार, अपनी पहचान स्थापित करने की गहरी लगन और परिवेश की प्रेरणाओं से हुआ. कमला शंकर की मां पश्चिम बंगाल के आसनसोल की हैं और गिटार का संबंध रवींद्र संगीत से बड़ा गहरा है. लिहाजा गायन में महान गुरु जनों के ज्ञान और प्रेरणाओं से आश्वस्त होकर उन्होंने गिटार को अपने हाथ में थामा और साधना और परिमार्जन से धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान बनानी शुरू की. गौरतलब बात यह है कि कमला को हवाइयन गिटार से लगाव था लेकिन उसकी टोनल क्वालिटी से वह बहुत संतुष्ट नहीं थीं. वे दिल्ली में रिखीराम ऐंड संस के पंडित बिशन दास शर्मा के पास गयीं और गिटार की सीमाओं पर उनके साथ चर्चा की. शर्मा के बेटे अजय ने गिटार में बदलाव करने में उनकी मदद की. इसके बाद जो साज बनकर सामने आया, वह हवाइयन गिटार और सितार का एक मिलाजुला रूप था. इसके सुर कुछ-कुछ क्लासिकल वीणा से मेल खाते थे.
शंकर गिटार को दिलायी पहचान
यह कमला शंकर की विशेषता ही है कि जिस साज को उन्होंने साधा उसे अपने स्वभाव और अनुशासन में समरस कर उसे शंकर गिटार के रूप में पहचान और प्रतिष्ठा दी और उसके प्रति अपना गहरा अनुराग प्रमाणित किया. उनके संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि उन्होंने वादन के साथ-साथ शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत भी सीखा और ठुमरी, भजन, कजरी, चैती और रवींद्र संगीत में भी प्रभावी अभिव्यक्ति के गुण प्राप्त किये. कमला शंकर ने प्रयाग संगीत समिति से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के डॉ गोपाल शंकर मिश्र के मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की. कमला शंकर को अब तक कई मान-सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान, सुर सिंगार संसद, मुंबई से सुरमणि की उपाधि, कलाश्री सम्मान, सारस्वत सम्मान आदि शामिल हैं. ऑडियो संगीत की प्रतिष्ठित कंपनियों ने आपके गिटार वादन के अनेक अलबम भी जारी किये हैं.
करना पड़ा संघर्ष भी
आज भी खुद को संगीत की विद्यार्थी माननेवाली कमला की संगीत यात्र इतनी आसान न थी. चूंकि संगीत की कोई विरासत उनके पास नहीं थी इसलिए शुरुआत में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. महिला होने की वजह से भी उनके लिए मुश्किलें आयीं. उन्हीं के शब्दों में, मैं नहीं समझ पाती कि लोग आम तौर पर महिलाओं के साथ सहानुभूति क्यों दिखाते हैं? मैंने इस तरह की टिप्पणियां भी सुनी हैं कि औरत है, क्या बजाएगी. या फिर, लेडीज हैं, थोड़ी देर सुन लो. खूबसूरत पर्सनालिटी है, अच्छा बजाएगी. कुछ लोग इस बात से सहमत हो सकते हैं कि एक संगीतकार के तौर पर वास्तव में महिलाओं को पुरु षों से चुनौती ङोलनी पड़ती है. कमला हालांकि इससे डिगी नहीं. वे कहती हैं, औरत होने को लेकर की जाने वाली टिप्पणियों से मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुई. मैं अपने भीतर नकारात्मकता को प्रवेश नहीं करने देती. धार्मिक व्यक्ति होने के नाते मैं आध्यात्मिक ग्रंथों से शक्ति प्राप्त करती हूं और यह मुङो व्यक्ति के तौर पर मजबूत बनाता है.
संगीत साझा करने की चीज
कमला ने अपने मीठे सुरों से दुनिया का दिल जीत लिया है. उन्हें अपने वाद्य यंत्र पर बेहतरीन नियंत्रण और विविधतापूर्ण वादन के लिए जाना जाता है. आज कमला हिंदुस्तानी शास्त्रीय शैली में हवाइयन गिटार का प्रशिक्षण दे रहे हैं. वे खासकर गरीब बच्चों को संगीत सिखाती हैं. संगीत साझा करने की चीज है और अगर हमें कलाकारों की अगली पीढ़ी तैयार करनी है तो कुछ हटकर सोचना होगा. उनकी राय में, गुरु -शिष्य परंपरा को आधुनिक समय में विद्यार्थियों की जरूरत के हिसाब से खुद में बदलाव लाना चाहिए. इसी उद्देश्य से उन्होंने शंकर फाउंडेशन की स्थापना की है. वे बताती हैं कि फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य संगीत में उच्च कौशल और प्रशिक्षण देना है. इसके अलावा वे ऐसे कलाकारों को प्रोत्साहित करना और आगे बढ़ाना चाहती हैं, जो प्रतिभाशाली हों न कि सिर्फ उनको, जिन्हें संगीत विरासत में मिला हो.